MP के मिशनरी स्कूल में ‘तिलक-कलावे’ पर प्रतिबंध: NCPCR जाँच करने पहुँचा तो लैब में मिला ‘मानव भ्रूण’, प्रिंसिपल बोली- ये तो प्लास्टिक का है

बीना का मिशनरी स्कूल (साभार: ऑर्गनाईजर)

मध्य प्रदेश के सागर जिले के बीना (Bina, Sagar, Madhya Pradesh) में ईसाई मिशनरी द्वारा संचालित निर्मल ज्योति कान्वेंट स्कूल की प्रयोगशाला में मानव भ्रूण मिलने पर बवाल हो गया है। पुलिस ने इस भ्रूण को जब्त कर जाँच के लिए कहा है। इसका खुलासा मध्य प्रदेश बाल संरक्षण आयोग की जाँच में हुआ है।

यह मानव भ्रूण कहाँ कहाँ से आया और कितना पुराना है, इसका जवाब स्कूल के पास नहीं है। इस संबंध में जब बाल आयोग के सदस्यों ने स्कूल की प्राचार्या से पूछा तो वह भी संतोषजनक जवाब नहीं दे पाई। पुलिस सोमवार (10 अप्रैल 2023) को भ्रूण जाँच के लिए एफएसएल को भेजेगी।

दरअसल, स्कूल का फीस जमा नहीं करने पर प्राचार्य ने एक छात्र को स्कूल से निष्कासित कर दिया था। कहा जा रहा है कि ईसाई मान्यताओं को नहीं मानने के कारण उस पर अधिक फीस लगाया गया था। हालाँकि, छात्र के परिजन ने इसे देने से इनकार कर दिया था। इसके बाद छात्र को निष्कासित कर दिया गया था।

स्कूल द्वारा निष्कासित करने बाद छात्र के परिजनों ने इस संबंध में 3 फरवरी 2023 को पुलिस प्रशासन से शिकायत की। इसके साथ ही इसकी शिकायत मध्य प्रदेश बाल संरक्षण आयोग से भी शिकायत की गई थी। बच्चे के पिता राकेश कुशवाहा का कहना था कि उनका बच्चा 10 में पढ़ता है और उसे स्कूल नहीं जाने दिया जा रहा है।

ऑर्गनाइजर के अनुसार, कई छात्रों का आरोप है कि स्कूल में ईसाई धर्म की मान्यताओं का पालन करने के लिए मजबूर किया जाता था। उन्हें स्कूल में तिलक और कलावा नहीं लगाने दिया जाता था। जो भी छात्र इसे पहनकर आते थे, उन्हें स्कूल निलंबित कर देता था। इसके लिए उन्होंने स्कूल के शिक्षिका डोमनिका मैडम और सिस्टर ग्रेस पर आरोप लगाया था।

राकेश कुशवाहा की शिकायत के बाद बाल संरक्षण आयोग के सदस्य ओमकार सिंह और निवेदिता शर्मा गुरूवार (6 अप्रैल 2023) को स्कूल की जाँच के लिए बीना पहुँचे। आयोग के सदस्यों ने स्कूल का रजिस्टर चेक किया और स्कूल का निरीक्षण भी शुरू किया। प्रयोगशाला में निरीक्षण के दौरान आयोग के सदस्यों को एक जार में मानव भ्रूण रखा हुआ मिला।

आयोग के सदस्यों ने जब इसके बारे में पूछताछ की तो प्राचार्य सही जानकारी नहीं दे पाई। प्राचार्य ने इसे प्लास्टिक से बना हुआ कृत्रिम भ्रूण बताया। जब आयोग ने पूछा कि प्लास्टिक के भ्रूण को संरक्षित क्यों किया गया है, तब प्राचार्य सही जवाब नहीं दे पाई। यह मानव भ्रूण लगभग दो महीने पुराना है।

इस दौरान आयोग के सदस्यों ने यह भी पाया कि स्कूल के परिसर में ही गेस्ट रूम बना हुआ है। जब आयोग के सदस्य वहाँ जाने लगे तो उन्हें रोक दिया गया। आयोग के सदस्यों का कहना है कि स्कूल के परिसर में गेस्ट रूम नहीं होना चाहिए। इसके अलावा, स्कूल की प्रयोगशाला में कई जीवों के नमूने रखे हुए हैं, जो सही ढंग से संरक्षित नहीं करने के कारण सड़ गए हैं।

आयोग के सदस्यों ने यह भी पाया कि स्कूल के सभी स्टाफ का पुलिस वेरिफिकेशन नहीं कराया गया है। इसके साथ ही स्कूल की जमीन का डायवर्सन अन्य व्यवसाय के लिए कराया गया था। यह नियम के खिलाफ है। स्कूल छात्रों पर फीस को लेकर भारी दबाव बनाता रहता है, जिसके कारण वे मानसिक रूप से दबाव महसूस करते हैं।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया