‘मुझे मेरी मस्जिद वापस चाहिए, औरंगज़ेब का सबसे बड़ा साम्राज्य था, वो इस्लामी कट्टरपंथी नहीं था’

ओवैसी जब भी मुँह खोलते हैं, जहर ही उगलते हैं! (फाइल फोटो)

राम जन्मभूमि के फ़ैसले के ख़िलाफ़ अपना रुख़ जारी रखते हुए AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि 9 नवंबर को सुनाया गया अयोध्या का फ़ैसला ‘क़ानून पर विश्वास की जीत’ है और वह ‘अपनी मस्जिद वापस चाहते हैं’। आउटलुक को दिए एक साक्षात्कार में, ओवैसी ने कहा कि राम जन्मभूमि मामला दो पक्षों के बीच एक दीवानी मुक़दमा (Civil Suit) था, जहाँ क़ानून पर विश्वास ने जीत पाई।

ओवैसी ने कहा,

“अगर मस्जिद को (1992 में) ध्वस्त नहीं किया जाता, तब भी क्या यही फ़ैसला आता? हमारी लड़ाई ज़मीन के टुकड़े के लिए नहीं थी। यह सुनिश्चित करना था कि मेरे क़ानूनी अधिकारों का ध्यान रखा जाए। SC ने यह भी स्पष्ट कहा कि मस्जिद बनाने के लिए किसी मंदिर को नहीं गिराया गया। मुझे अपनी मस्जिद वापस चाहिए।”

सदियों से चले आ रहे एक विवाद को समाप्त करने वाले ऐतिहासिक फ़ैसले में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने 9 नवंबर को विवादित राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि हिन्दू पक्ष को सौंप दी। इससे हिन्दू भक्तों के लिए भगवान राम के जन्मस्थान पर एक भव्य मंदिर का निर्माण प्रशस्त हो सका। शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार को 1992 में बाबरी मस्जिद के पुनर्निर्माण के लिए अयोध्या में एक प्रमुख स्थान पर सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड को एक वैकल्पिक स्थान पर 5 एकड़ भूमि प्रदान करने का भी आदेश दिया।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ASI की रिपोर्ट में पर्याप्त सामग्री थी, जिसके तहत निम्नलिखित निष्कर्ष निकाले जा सके- खाली ज़मीन पर बाबरी मस्जिद का निर्माण नहीं किया गया था। विवादित ढाँचे में अंतर्निहित एक संरचना थी। अंतर्निहित संरचना एक इस्लामी संरचना नहीं थी। यह विवाद ज़मीन के मालिक़ाना हक को लेकर था।

इसके अलावा, अपने साक्षात्कार में, मुगल सम्राट औरंगज़ेब का बचाव करते हुए, जो कि हिंदुओं पर अत्याचार के लिए जाना जाता है, ओवैसी ने कहा कि भारत के सम्राट के रूप में, औरंगज़ेब का सबसे बड़ा साम्राज्य था। “और ये दक्षिणपंथी उसे एक इस्लामी कट्टरपंथी कहते हैं। अब क्या इतनी बड़ी संख्या में नमाज़ मस्जिद में नहीं होगी?” ओवैसी ने कहा कि औरंगजेब की ‘धर्मनिरपेक्षता’ एक कारण है, जो वो इस फ़ैसले से असहमत हैं।

AIMIM प्रमुख ने इससे पहले राम जन्मभूमि के फ़ैसले पर प्रकाश डाला। फ़ैसले के ठीक बाद एक सार्वजनिक रैली में बोलते हुए, असदुद्दीन ओवैसी ने कहा था,

“अगर बाबरी मस्जिद वैध थी तो इसे (भूमि) उन लोगों को क्यों सौंप दिया गया, जिन्होंने इसे ध्वस्त किया था। अगर यह ग़ैर-क़ानूनी थी तो केस क्यों चल रहा है और आडवाणी के ख़िलाफ़ केस वापस लिया जाए। और अगर यह क़ानूनी है तो मुझे दे दो।”

जनसभा को संबोधित करने के दौरान, ओवैसी ने भीड़ से कहा था, “हिम्मत मत हारो।” मजबूत रहो, हमें संघर्ष करना है, हमें एकजुट रहना है। दुनिया यहीं ख़त्म नहीं होने वाली है।”

बाद में, रविवार को, ओवैसी ने कहा था, “आज एक मुस्लिम क्या देखता है? इतने सालों तक वहाँ एक मस्जिद खड़ी रही, जिसे ध्वस्त कर दिया गया। अब अदालत एक इमारत को उस जगह पर आने की अनुमति दे रही है, जहाँ कथित तौर पर पाया गया था कि यह ज़मीन रामलला की है।”

दिलचस्प बात यह है कि ओवैसी के लिए, आक्रमणकारियों द्वारा निर्मित एक मस्जिद पवित्र थी, जबकि ASI के निष्कर्षों के बावजूद हिन्दू विश्वास का मज़ाक उड़ाने और इसे ‘कथित खोज’ कहने में उन्हें कोई समस्या नहीं हुई।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया