‘अमित शाह दुनिया छोड़ो’: मजहबी नारों और हिंसा के बाद जामिया में मोदी को हिटलर बताते स्लोगन

जामिया कैंपस की दीवारों पर लिखे गए भड़काऊ नारे

राजधानी दिल्ली के जामिया मिलिया इस्लामिया में बीते शुक्रवार (13 दिसंबर) को नागरिकता संशोधन क़ानून के विरोध के नाम पर जमकर उत्पात मचाया गया था। इस दौरान मजहबी नारे भी लगे थे। अब यूनिवर्सिटी कैंपस से जो तस्वीरें आई है उनमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को लेकर आपत्तिजनक नारे दिख रहे हैं। इन नारों में मोदी की तुलना हिटलर से तो शाह के मरने की कामना की गई है।

प्रदर्शन के दौरान छात्रों ने पुलिस पर पत्थरबाजी और आगजनी की थी। प्रदर्शन के कुछ वीडियो सामने आए थे। इसमें छात्र ‘अल्ला-हु-अकबर‘ और ‘नारा-ए-तकबीर’ के नारे लगाते हुए दिखाई पड़ रहे हैं। “तेरा मेरा रिश्ता क्या- ला इलाहा इल्लल्लाह, ये शहर जगमगाएगा- नूर-ए-इलाहा से”, जैसे भी नारे लगे थे। अमूमन ऐसे नारे कश्मीर में पाकिस्तान के समर्थन में आतंकी लगाते सुनाई पड़ते रहे हैं।

हालॉंकि यूनिवर्सिटी प्रशासन ने बाद में सफाई देते हुए कहा था कि प्रदर्शन में शामिल ज्यादातर लोग बाहरी थे। लेकिन, कैंपस की दीवारों पर लिखे नारे कुछ और ही कहानी बयॉं कर रहे हैं। कैंपस की दीवारों पर पीएम मोदी की तुलना हिटलर से करते हुए चित्र बनाए गए हैं और उनके ख़िलाफ़ स्लोगन लिखे गए हैं। वहीं, अमित शाह के मरने की दुआ करते हुए कैंपस की दीवारों पर लिखा गया कि ‘अमित शाह दुनिया छोड़ो’।


विश्वविद्यालय कैंपस की दीवार पर गृह मंत्री अमित शाह की मृत्यु की कामना करते हुए भड़काऊ नारे लिखे गए

विश्वविद्यालय की एक दीवार पर लिखे नारों के ज़रिए सरकार के ख़िलाफ़ विद्रोह बढ़ाने और देश में अराजकता फैलाने का प्रयास किया गया है। कैंपस की एक दीवार पर स्लोगन लिखा है कि ‘ज़िंदा कौम 5 साल इंतज़ार नहीं करती।’ ऐसे नारे न केवल देश की लोकतांत्रिक रूप से चुनी हुई सरकार की वैधता पर सवाल खड़ा करता है, बल्कि लोगों को हिंसा के लिए भी उकसाता है।


कैंपस की एक दीवार पर लिखा ‘ज़िंदा कौम 5 साल इंतज़ार नहीं करती’

कैंपस की दीवारों पर एक चित्र जो सबसे विचित्र था, उसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और जर्मन तानाशाह एडोल्फ हिटलर के बीच तुलना करने की कोशिश की गई है। जामिया में की दीवारों पर बने इस चित्र में आधा चेहरा पीएम मोदी का दर्शाया गया और आधा हिटलर के रूप में प्रदर्शित किया गया है।


प्रधानमंत्री मोदी और जर्मन तानाशाह एडोल्फ हिटलर के बीच तुलना

रविवार (15 दिसंबर) को जामिया के जनसम्पर्क अधिकारी अहमद अज़ीम ने कहा, “विश्वविद्यालय परिसर में न तो प्रदर्शन हुआ और न ही यह विरोध जामिया का था। बड़ी संख्या में स्थानीय लोगों ने इसमें भाग लिया। हमने छात्रों के साथ बातचीत की, अब वे शांतिपूर्ण तरीके से विरोध कर रहे हैं।”

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जामिया में शुक्रवार को हुए प्रदर्शन में 12 से अधिक लोग घायल हो गए थे। प्रदर्शनकारियों ने पुलिसकर्मियों पर पथराव किया था। छात्रों ने कैंपस और बाहर सड़क पर फजर (सुबह की पहली नमाज) की नमाज के बाद 8 से 10 बजे के बीच सेमेस्टर परीक्षाएँ लेने पहुँचे शिक्षकों को विभागों से बाहर निकाल ताला लगा दिया था। लेकिन, प्रशासन का दावा है कि इन प्रदर्शनकारियों में छात्रों की संख्या बेहद कम थी। ज्यादातर बाहरी थे।

कौन हैं वे ‘बाहरी’ जिनके हाथों में खेले जामिया के छात्र: लगाए मजहबी नारे, किया बलवा

जामिया में मजहबी नारे ‘नारा-ए-तकबीर’, ‘ला इलाहा इल्लल्लाह’ क्यों लग रहे? विरोध तो सरकार का है न?

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ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया