‘औरतों के लिए खेलकूद हराम, मर्दों के साथ पढ़ने से भटक जाएँगी’: देवबंद वाले मदनी ने माना, हिंदू-मुस्लिमों के पूर्वज एक

मौलाना अरशद मदनी ने RSS और मोहन भागवत के बयान पर दी प्रतिक्रिया (फाइल फोटो)

सहारनपुर के देवबंद में स्थित दारुल उलूम के प्रिंसिपल और जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने RSS प्रमुख मोहन भागवत के उस बयान का समर्थन किया है, जिसमें उन्होंने कहा था कि भारत में हिन्दुओं एवं मुस्लिमों, दोनों के पूर्वज एक हैं। उन्होंने कहा कि RSS का पुराना रवैया अब बदल रहा है और वो सही रास्ते पर है। उन्होंने कहा कि मुस्लिमों को अपने मुल्क से प्रेम है।

लेकिन, साथ ही वो ये भी कहना नहीं भूले कि आतंकवाद के जिन मामलों में मुस्लिम पकड़े जाते हैं, उनमें से अधिकतर झूठे होते हैं। ‘दैनिक भास्कर’ के साथ बातचीत में मौलाना अरशद मदनी ने पूछा कि अगर यह सब सच्चे हैं तो फिर निचली अदालत से सजा मिलने के बाद हाईकोर्ट या फिर सुप्रीम कोर्ट से लोग कैसे बरी हो जाते हैं? उन्होंने बताया कि उनके संज्ञान में ऐसे कई मामले आई हैं, जहाँ निचली अदालत से फाँसी पाए लोगों को सुप्रीम कोर्ट ने बरी किया।

मौलाना अरशद मदनी ने कहा, “मुल्क में एक लाख से ज्यादा मस्जिदें हैं, जहाँ 5 वक्त की अजान दी जाती है और 5 वक्त की नमाज भी पढ़ी जाती है। हमें हर मस्जिद के लिए इमाम चाहिए। इन मस्जिदों में जो बच्चे आते हैं, उनको तालीम देने के लिए मौलवी चाहिए, वरना हमारी मस्जिदें वीरान हो जाएँगी। यह हमारा निसाब-ए-तालीम है जो खालिस मजहबी है। हम छात्रों को प्रोफेसर, अधिवक्ता या डॉक्टर नहीं बनाते। हम उनको खालिस मजहबी इंसान बनाते हैं, जो नमाज पढ़ाए, मजहबी तालीम दे।”

महिलाओं को शिक्षा दिए जाने के मुद्दे पर मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि औरतों को मुजाहिद बनाने का मकसद तो न पहले कभी हमारा था और न आज है। उन्होंने कहा कि कई स्कूल-कॉलेज खुले भी, आज लड़कियाँ खूब मजहबी शिक्षा ले रही हैं, लेकिन दारुल उलूम के भीतर लड़कियों को पढ़ाने का हमने कभी मन नहीं बनाया। उन्होंने शरिया का हवाला देते हुए कहा कि महिलाएँ मर्दों से अलग रह कर ही तालीम ले सकती हैं।

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उन्होंने कहा कि जहाँ खतरा होगा, वहाँ भटकने का डर होगा। साथ ही बताया कि मर्दों के साथ पढ़ने से महिलाओं के भटकने का खतरा है, इसीलिए वहाँ औरतें नहीं जा सकतीं। उन्होंने कहा कि महिलाएँ जो भी पेशा चुनें, लेकिन परदे के साथ। उन्होंने महिलाओं को ऐसा लिबास पहनने की सलाह दी, जिससे ‘अल्लाह द्वारा ढाली गई उनकी जिस्म’ जाहिर न हो। उन्होंने शरिया के हवाले से कहा कि महिलाओं की आँखों व चेहरे के अलावा कुछ नहीं दिखना चाहिए।

मौलाना अरशद मदनी ने महिलाओं के खिलाड़ी बनने पर आपत्ति जताते हुए कहा कि औरतों को ऐसा कोई भी कार्य करने की अनुमति नहीं है, जिसमें उनका भागना-दौड़ना कोई मर्द देखे। इससे पहले उन्होंने कहा था कि अगर तालिबान गुलामी की जंजीरों को तोड़कर आजाद हो रहे हैं, तो इसे दहशतगर्दी नहीं कहेंगे। उन्होंने ये भी कहा था कि महिलाएँ बिना क्रीम, लिपस्टिक लगाए, बुर्का पहन कर बाहर औकर विरोध कर सकती हैं।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया