बिहार का युवा आज भी किसी मेट्रो सिटी के दफ्तर में बैठ कर लालू राज को याद करता होगा तो सिहर जाता होगा, औरों का पता नहीं लेकिन मैं तो सिहर ही जाता हूँ। नब्बे के दशक में जन्मा लड़का कभी नहीं चाहेगा कि लालू का वो समय दोबारा बिहार देखे, कल्पना मात्र ही मुझे भयभीत कर देती है।
बिहार ने वो समय देखा है जब माँ-बाप बच्चों को शाम के बाद घर से नहीं निकलने देते थे, हर वक़्त ये चिंता रहती थी कि पता नहीं कब कौन किडनैप हो जाएगा, लालू के समय अपहरण का ऐसा बाज़ार बना जिसने बहुतों के घर से चिराग छीन लिए और जिनके बचे उनको उसकी भारी कीमत चुकानी पड़ी थी।
बिहारियों ने फिर 2005 में लालू राज के सूरज को अस्त किया और नीतीश कुमार के हाथों में कमान सौंपी, वो नीतीश कुमार जो कभी लालू के साथ हुआ करते थे, वो नीतीश जो लालू के साथ बाद में भी आए और वो नीतीश जो अभी फिर से लालू के विरोधी हैं।
सत्ता और राजनीति के खेल में समीकरण बनते-बिगड़ते रहे लेकिन नीतीश जब से सत्ता में आए हैं, बिहार में क़ानून को सख़्ती से लागू करने में कामयाब रहे। लालू के राज में आपराधिक उगाही के बाज़ार और अपहरण एक इंडस्ट्री का रूप अख़्तियार कर चुकी थी, उसको नीतीश ने सत्ता हाथ में आते ही जड़ से खत्म कर दिया।
बिहार पुलिस के आँकडों के हिसाब से बिहार में क्राइम की स्थिति वर्तमान समय में और लालू राज के आख़िरी के पाँच सालों में कैसी थी, इसी को लेकर यह रिपोर्ट लिखी गई है। आँकड़ों के हिसाब से बिहार में, लालू के राज की तुलना में अभी अपराध पर बहुत हद तक लगाम लगी है, 2001-05 के बीच कुल मिलाकर जहाँ 18,189 हत्याएँ बिहार में हुई थी, वहीं 2014-18 के बीच हत्याओं के आँकड़ों में 25% की गिरावट देखी गई है।
इसी तरह लूट और रोड डकैती के मामले में नीतीश सरकार में क्रमशः 55% और 43% की गिरावट आई है। सरकारी आँकड़ों की मदद से लालू राज और वर्तमान समय में जो तुलना की गई है उसे आप नीचे ग्राफ में देख सकते हैं।
अपराध |
लालू राज (2001-05) |
नीतीश राज (2014-18) |
% बदलाव |
हत्या |
18189 |
14697 |
-24% |
डकैती |
12124 | 7812 | -55% |
दंगे |
42387 |
59888 |
29% |
फिरौती के लिए अपहरण | 1778 | 240 |
-641% |
बलात्कार |
4461 | 5774 | 23% |
रोड पर डकैती | 1267 | 888 |
-43% |
लालू के समय में फिरौती के लिए अपहरण राज्य भर में सबसे बड़े आतंक का रुप ले चुका था। नीतीश के हाथ में सत्ता आने के बाद अपहरण के मामलों में अप्रत्याशित कमी देखने को मिली।
2001-05 में जहाँ 1778 अपहरण हुए, यानी हर साल 356 , मतलब हर दिन एक अपहरण, वहीं इस सरकार में 2014-18 के बीच, अपहरण के आँकड़ों में 641% की कमी आई है। पिछले पाँच सालों में बिहार में ‘फिरौती के लिए अपहरण’ के सिर्फ़ 240 मामले प्रकाश में आए हैं।
इससे पहले कि आप नीतीश सरकार की पीठ थपथपाएँ, आँकड़े आपका हाथ पकड़ लेंगे क्योंकि आँकड़ों के हिसाब से नीतीश सरकार बलात्कार और दंगे जैसे अपराधों पर लगाम लगाने में पूरी तरह से विफल साबित हुई है।
बलात्कार के मामलों में जहाँ 23% की वृद्धि देखी गयी है, वहीं दंगों की घटनाओं में 29% की वृद्धि सरकार के लिए चिंता का सबब बन सकती है। इस बात को भी नकारा नहीं जा सकता है कि दंगो में विपक्षी दलों की भूमिका भी रहती है, लेकिन जब प्रशासन आपके पास है तो ये तर्क बहुत कमजोर लगते हैं।
नेशनल क्राइम रिकार्ड्स ब्यूरो के 2016 के आँकड़ों की माने तो पूरे देश में महिलाओं के प्रति अपराधों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है, आँकड़ों के मुताबिक, प्रति घंटे देश में 39 महिलाओं पर अत्याचार हो रहे है, जो कि एक चिंताजनक स्थिति है। इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2015 में जहाँ 34,651 बलात्कार के मामले रिपोर्ट हुए वहीं 2016 में ये आँकड़ा बढ़ कर 38,947 तक पहुँच गया।
नीचे के ग्राफ्स के माध्यम से दोनों सरकारों के कार्यकाल को क्राइम के आधार पर प्रस्तुत किया गया है। इससे आपको ये बात साफ़ हो जाएगी कि बिहार में कितनी बहार है?