बेल चाहिए तो इस्लामी और ईसाई संगठन दोनों को दो ₹25-25 हजार: सेल्वाकुमार को HC का आदेश

मद्रास हाईकोर्ट (फ़ाइल फोटो)

मद्रास हाईकोर्ट ने फेसबुक पर आपत्तिजनक पोस्ट करने को लेकर एक युवक को जमानत लेने के लिए शर्त रखी है कि उसे एक इसाई तथा एक इस्लामिक संगठन को 25-25 हज़ार रुपये देने पड़ेंगे। स्वराज्य मैगजिन में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक तमिलनाडु में रहने वाले 26 वर्षीय सिल्वाकुमार ने अपनी एक फेसबुक पोस्ट में हिन्दुओं से आग्रह किया था कि वे उन दुकानदारों का बहिष्कार करें, जिन्होंने अपनी दुकान मयिलाडूथुरई शहर में 6 फरवरी को एक दिवसीय बंद के दिन भी खुली रखी थी। यह बंद इस्लामिक कट्टरपंथी संगठन पीएफआई के गुडों द्वारा पट्टाली मक्कल काची (पीएमके) नेता वी रामालिंगम की हत्या के विरोध में बुलाया गया था। बता दें कि जबरन धर्म परिवर्तन के खिलाफ आवाज़ उठाने पर रामालिंगम की निर्मम हत्या कर दी गई थी।

इस सम्बन्ध में सेल्वाकुमार ने एक फेसबुक पोस्ट लिखी थी जिसमें हत्यारों के प्रति सहानुभूति रखने का इशारा किया गया था। उस पोस्ट का संज्ञान लेते हुए पास ही के मनालमेदु थाने के इंस्पेक्टर ने पोस्ट करने वाले लड़के के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर ली थी। इसके बाद जब सेल्वाकुमार ने जब अपनी बेल के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया तो उसे भारी-भरकम धनराशि देने की बात कही गई।

अपनी याचिका में सेल्वाकुमार ने कहा कि जिस फेसबुक पोस्ट के लिए उन्हें दोषी ठहराया जा रहा है वह दरअसल उसने लिखी भी नहीं बल्कि किसी और की लिखी पोस्ट को दोबारा पोस्ट किया है। अपनी याचिका में उन्होंने आगे कहा कि आदेश के बाद उसने अपनी पोस्ट फेसबुक से भी डिलीट कर दी मगर मद्रास हाईकोर्ट को इससे कोई फर्क नहीं पड़ा।

सबसे ज्यादा परेशान करने वाली बात ये है कि सेल्वाकुमार को अदालत द्वारा यह कहा गया कि वह ‘तमिलनाडु मुस्लिम मुन्नेत्र कड़गम’ (टीएमएमके) नामक एक इस्लामिक संगठन के खाते में इसके लिए 25000 रुपए जमा करे। बता दें कि यह वही संगठन है, जिसने कश्मीर में सरकार द्वारा अनुच्छेद 370 हटाए जाने पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और अमित शाह को धमकी दी थी। इसी मामले में संगठन के एक आदमी की अगस्त में गिरफ़्तारी भी हुई थी। 2012 में यही संगठन उस षड्यंत्र में शामिल था, जिसके तहत चेन्नई स्थित यूएस कांसुलेट जनरल के ऑफिस पर हमला हुआ था। 2013 में इसी संगठन ने माँग की थी कि कमल हासन की फिल्म विश्वरूपम पर बैन लगा दिया जाए।

टीएमएमके संगठन उन तमाम मुस्लिम संगठनों से एक है, जिसने 2016 में सरकार से यह माँग की थी कि कट्टरपंथी इस्लामिक विचारों को फ़ैलाने वाले जाकिर नाइक को आतंकवादी न कहा जाए। इसके बाद यह खुलासा हुआ था कि दूसरे मजहब के युवा जाकिर नाइक से प्रेरित पाए गए थे जो इस्लामिक स्टेट ज्वाइन करने की इच्छा रखते हैं।

मद्रास हाईकोर्ट का यह जजमेंट उस विवादित जजमेंट की याद दिलाता है जो राँची की कोर्ट ने जुलाई में दिया था। बता दें कि राँची की एक निचली अदालत ने जजमेंट में फेसबुक पर अपत्तिजनक पोस्ट करने वाली ऋचा भारती को कुरान की प्रतियाँ बाँटने का आदेश दिया गया था। हालाँकि भारी विरोध और प्रदर्शनों के बाद कोर्ट ने खुद ही इस हास्यास्पद फैसले को वापस ले लिया था।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया