जिस हत्यारे को छत्तीसगढ़ सरकार ने 2019 में छोड़ा, उस पर 2022 में आया सुप्रीम कोर्ट का फैसला: न्यायिक व्यवस्था का एक नमूना यह भी

सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो)

साल था 2004। छत्तीसगढ़ के दुर्ग में दिनदहाड़े एक युवती की चाकू मारकर हत्या कर दी गई। इस घटना को उसके कथित प्रेमी सुरेश यादव उर्फ गुड्डू ने अंजाम दिया। 2004 में उसे एडिशनल सेशन कोर्ट ने दोषी करार देते हुए सजा सुनाई। छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने भी इसे बरकरार रखा। फिर यादव ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। करीब 10 साल बाद शीर्ष अदालत का फैसला अब आया है। भारतीय न्यायिक व्यवस्था की यह देरी नई नहीं है। लेकिन इस मामले में हैरत की बात यह है कि सुरेश यादव को छत्तीसगढ़ की सरकार ने 2019 में ही रिहा कर दिया था।

छत्तीसगढ़ सरकार के रिहाई के निर्णय से पहले यादव 16 साल जेल की सजा काट चुका था। रिपोर्ट के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस विक्रमनाथ की बेंच ने उसकी याचिका खारिज करते हुए छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट के उम्रकैद के फैसले को बरकरार रखा। साथ ही इस मामले में दायर की गई आपराधिक अपील को भी खारिज कर दिया। शीर्ष अदालत ने यह भी स्पष्ट किया है कि उसके फैसले का प्रभाव छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा यादव को रिहा करने के निर्णय पर नहीं पड़ेगा।

क्या है पूरा मामला

रिपोर्ट के अनुसार अपनी कथित प्रेमिका को किसी से बात करते देख सुरेश यादव ने 2004 में उसकी हत्या कर दी थी। उसने 21 इंच के चाकू से लड़की के शरीर पर 12 वार किए। चाकू से उसके पेट और फेफड़े में छेद हो गया और वो मर गई। घटना के दो साल बाद दुर्ग की एक निचली अदालत ने 2006 में यादव को आईपीसी की धारा 302 के तहत दोषी ठहराया। उम्रकैद और आर्म्स एक्ट की धारा 25 और 27 के तहत अलग-अलग अवधि के कारावास की सजा सुनाई। बाद में छत्तीसगढ़ HC ने यादव की अपील पर सबूतों की फिर से जाँच की और 2010 में उसकी सजा को बरकरार रखा।

इसके बाद यादव ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। उसके मामले की सुनवाई के लिए कोई वकील नहीं था इसलिए 2 जुलाई 2012 को शीर्ष अदालत ने राज्य सरकार को नोटिस जारी कर न्याय मित्र नियुक्त करने को कहा। सुप्रीम कोर्ट ने 30 अगस्त 2013 को यादव की अपील को स्वीकार किया। 2014 में अपील को सुनवाई के लिए लिस्टेड हुई। अब जाकर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया है। शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में बचाव पक्ष की दलील खारिज करते हुए कहा है कि गवाही सिर्फ इस आधार पर रद्द नही कि जा सकती कि गवाह ने मृतका की हत्या के समय उसे बचाने का प्रयास नही किया।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया