15 शहर, 30 विश्वविद्यालय, 300 शिक्षाविद, 1 लक्ष्य: देश को मोदी चाहिए दोबारा

प्रधानमंत्री मोदी के पक्ष में लामबंद शैक्षिक-बौद्धिक वर्ग

लोकसभा चुनावों की औपचारिक घोषणा की आहट के साथ राजनीतिक सरगर्मी तेज़ हो गई है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा को पुनः चुनाव जिताने के उद्देश्य के साथ जेएनयू, पटना विश्वविद्यालय, भारतीय लोक प्रशासन संस्थान, विभिन्न आईआईटी समेत देश के सर्वोच्च विश्वविद्यालयों के 300 शिक्षकों ने एक स्वतन्त्र समूह का निर्माण किया है। “एकेडेमिक्स4नमो” (Academics4NaMo) नामक इस समूह की शुरुआत दिल्ली विश्वविद्यालय के असिस्टेंट प्रोफ़ेसर स्वदेश सिंह और उनके कुछ साथी शिक्षाविदों ने की थी, जिससे कि अब 15 विभिन्न शहरों के 30 विश्वविद्यालयों के शिक्षाविद जुड़ चुके हैं। इनका उद्देश्य प्रधानमंत्री मोदी के पक्ष में वैचारिक, शैक्षिक, और बौद्धिक जगत के ज़्यादा-से-ज़्यादा लोगों का सार्वजनिक समर्थन जुटाना और भाजपा व प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ चल रहे ‘एंटी-इंटेलेक्चुअलिज्म’ के मिथक को तोड़ना है।

यहाँ गौर करने वाली बात यह है कि केवल भारत ही नहीं, सम्पूर्ण विश्व में दक्षिणपंथी राजनीति पर अक्सर यह आरोप लगता रहा है कि यह ‘एंटी-इंटेलेक्चुअल’ या वैचारिकता/बौद्धिकता के विरोधी है। इस आरोप के ‘फ्लेवर्स’ में ‘इंटेलेक्चुअल लेज़ीनेस’ (वैचारिक आलस्य) से लेकर ‘इनेप्टिट्यूड’ (बौद्धिक दिवालियापना) तक शामिल हैं।

प्रधानमंत्री मोदी की ही अगर बात करें तो उनके भाजपा का प्रधानमन्त्री प्रत्याशी बनने के पहले से उनके खिलाफ वामपंथी बौद्धिकों का आन्दोलन शुरू हो गया था। ज्ञानपीठ सम्मान से सम्मानित कन्नड़ लेखक यूआर अनंतमूर्ति ने तो देश को यह धमकी तक दे डाली कि यदि देश ने मोदी को प्रधानमंत्री बन जाने दिया तो वे विरोधस्वरूप देश का त्याग कर देंगे हालाँकि बाद में अपने उस बयान को वस्तुतः न लिए जाने की गुज़ारिश करते हुए अनंतमूर्ति ने कहा कि वह बयान उन्होंने भावातिरेक में दिया था।

जब अख़लाक़ हत्याकाण्ड सुर्ख़ियों में आया तो उसे मोदी और हिन्दुत्ववादियों के बेलगाम हो जाने के सबूत के तौर पर प्रचारित करते हुए लगभग 40 लेखकों, फ़िल्म तकनीशियनों, बौद्धिकों ने “अवार्ड वापसी” आन्दोलन शुरू किया, जो कि भाजपा के बिहार चुनाव हारने के बाद हवा हो गया।

इस बार ‘Academics4NaMo’ समूह इसी ‘नैरेटिव’ का प्रत्युत्तर तैयार करना चाहता है

दो विश्वविद्यालयों- नरेन्द्र देव कृषि व प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, अयोध्या (तत्कालीन फैजाबाद), व बीआर अम्बेडकर समाजशास्त्र विश्वविद्यालय, इंदौर के कुलपति रह चुके आरएस कुरील के अनुसार वह नरेंद्र मोदी की गरीब-समर्थक नीतियों से खासे प्रभावित हुए हैं। अंग्रेज़ी पोर्टल “द प्रिंट” को दिए गए साक्षात्कार में उन्होंने मोदी की नीतियों और योजनाओं को गरीबों और महिलाओं के सशक्तिकरण की ओर केन्द्रित बताया।

बीएचयू में इंडोलोजी के चेयर प्रोफ़ेसर राकेश उपाध्याय के अनुसार वामपंथी विचारधारा से प्रेरित अवार्ड वापसी गैंग बहुत समय तक सार्वजनिक बहस में अकेली आवाज़ बना रहा, और यह समय (उनके जैसे विचार रखने वाले बौद्धिकों के लिए) मोदी के पक्ष में खुल कर खड़े होने और हमारी खोई हुई सांकृतिक परम्पराओं के गौरव को पुनः प्राप्त करने का है।

जेएनयू की वंदना मिश्रा कहतीं हैं कि उन्हें मोदी के महिला सशक्तिकरण के लिए उठाए गए कदमों ने आकर्षित किया। लाखों गरीब महिलाओं को उज्ज्वला योजना के लाभ, मातृत्व अवकाश को 6 महीने तक बढ़ाए जाने, महिलाओं को सशस्त्र सेनाओं में कमीशन दिए जाने आदि को वह उदाहरण के तौर पर पेश करतीं हैं।

जेएनयू में ही भाषा विभाग के सुधीर प्रताप के अनुसार प्रधानमंत्री मोदी ने समाज के हर वर्ग के जीवन में कुछ-न-कुछ सुधार लाने के अलावा सीमा सुरक्षा के क्षेत्र में भी उल्लेखनीय कार्य किया है। उनके अनुसार प्रधानमंत्री मोदी ने “अपने कार्यों के ज़रिए सशक्तिकरण, शिक्षा, रोज़गार, और उद्यम में हर वर्ग की अधिकतम भागीदारी का मार्ग प्रशस्त किया है”।

“एकेडेमिक्स4नमो” के फेसबुक पेज के अनुसार इस समूह का मानना है कि आगामी लोकसभा चुनाव भारत के भविष्य के लिए निर्णायक साबित होंगे और अतीत के भ्रष्टाचार और निराशावादी दौर बनाम नए भारत की उम्मीदों और महत्वाकांक्षाओं के अंतर को ठोस तरीके से रेखांकित व स्थापित करेंगे।

प्रधानमंत्री मोदी की चुनावी जीत में सहायता के लिए यह समूह विभिन्न विषयों पर चर्चाओं और राजनीतिक बहसों का आयोजन करने के अलावा इंटरनेट के माध्यम से विभिन्न ऑनलाइन मंचों पर अपनी बात लेखों के द्वारा रखेगा। उनका उद्देश्य अधिक से अधिक बौद्धिकों, विचारकों, पत्रकारों, आदि तक प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा के सही एजेंडे, और विभिन्न मुद्दों पर उनकी राय को रखना होगा।