राजस्थान जलने के पीछे आदिवासी-मिशनरी नेक्सस? केंद्र से गहलोत ने लगाई गुहार, 3 दिन से राजमार्ग ठप्प

राजस्थान के डूंगरपुर में हिंसा और आगजनी (फोटो साभार: Bharatonnews)

एसटी आरक्षण की माँग के कारण राजस्थान का एक बड़ा हिस्सा जल रहा है। क्या उदयपुर और डूंगरपुर में आगजनी के पीछे वही आदिवासी-ईसाई नेक्सस है, जो झारखण्ड में पत्थलगड़ी को अंजाम देता है और पालघर में साधुओं की हत्या करता है? राजस्थान में चल रहे दंगे व आगजनी को रोकने में विफल गहलोत सरकार अब आदिवासी क्षेत्रों के लोगों को बातचीत के टेबल पर लाना चाहती है, लेकिन क्या मिशनरियों का आदिवासी-ईसाई गठजोड़ ऐसा होने देगा?

राजस्थान में अध्यापक पात्रता परीक्षा को लेकर चल रहा विरोध-प्रदर्शन इतना उग्र हो गया है कि अब अशोक गहलोत की सरकार केंद्र से ‘रैपिड एक्शन फोर्स (RAF)’ की माँग कर रही है। इस विरोध-प्रदर्शन से राजस्थान का उदयपुर और डूंगरपुर सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ है। राज्य के पूरे दक्षिणी हिस्से की क़ानून-व्यवस्था एक तरह से राज्य सरकार के नियंत्रण से बाहर चली गई है।

डूंगरपुर में गोली लगने के कारण शनिवार (सितम्बर 26, 2020) की शाम एक व्यक्ति की मौत भी हो गई। साथ ही कई घायल भी हुए। इस प्रदर्शन में न सिर्फ सम्पत्तियों को नुकसान पहुँचाया गया, बल्कि कई वाहनों को भी फूँक दिया गया। पुलिस ने कहा है कि उसे रबर की गोलियाँ दागनी पड़ीं। राज्य के पुलिस महानिरीक्षक एमएल लाठड़ को सीएम ने डूंगरपुर भेजा है। सीएम लगातार लोगों से शांति-व्यवस्था बनाए रखने की अपील कर रहे हैं।

राज्यपाल कालराज मिश्र की भी पूरे घटनाक्रम पर नजर है और उन्होंने मुख्यमंत्री से फोन पर बात कर स्थिति के बारे में जाना। गुरुवार की शाम को ये प्रदर्शन तब उग्र हो गया, जब युवाओं ने पुलिस के साथ संघर्ष किया। पुलिस दल पर पथराव के साथ-साथ पुलिस के वाहनों को भी आग के हवाले कर दिया गया था। जनप्रतिनिधियों ने भी आंदोलनकारी युवाओं के साथ बैठकें की, लेकिन इसका कोई परिणाम निकल नहीं पाया।

दरअसल, प्रदर्शनकारियों की माँग है कि तृतीय श्रेणी शिक्षक भर्ती परीक्षा-2018 में जनजाति बहुल (एसटी) क्षेत्र में रिक्त रहे सामान्य वर्ग के 1167 पदों को जनजाति वर्ग (एसटी) के अभ्यर्थियों से ही भरा जाए और इस पर एससी, ओबीसी या सामन्य वर्ग के अभ्यर्थियों की भर्ती न होने पाए। सोशल मीडिया से भी भड़काऊ वीडियो जारी कर राजस्थान सरकार को चुनौती दी जा रही है। जंगलों और पहाड़ियों के कारण पुलिस प्रदर्शनकारियों से निपटने में असफल रही है।

हालत इतने बेकाबू हो गए कि शनिवार की रात राज्य सरकार को कई वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को हेलीकॉप्टर से डूंगरपुर भेजने के लिए मजबूर होना पड़ा। हालाँकि, सीएम कह रहे हैं कि उनकी सरकार प्रदेश के हर वर्ग के हितों की रक्षा के लिए संकल्पबद्ध है तथा समाज के किसी भी वर्ग की कानून-सम्मत व न्यायोचित माँगों पर विचार करने या संवाद के लिए हर समय तैयार है। उन्होंने टीएसपी क्षेत्र के विद्यार्थियों एवं युवाओं से अपील की है कि वे हिंसा को छोड़े और सरकार के समक्ष अपनी बात रखने के लिए आगे आएँ।

जनजाति क्षेत्र विकास मंत्री अर्जुन बामणिया और उदयपुर से पूर्व सांसद रघुवीर मीणा को सीएम गहलोत ने कई अन्य जनप्रतिनिधियों के साथ उदयपुर भेजा, जहाँ उनकी विरोध-प्रदर्शन कर रहे युवाओं के साथ लगभग 3 घंटे तक बैठक हुई। पूर्व-सांसदों और वर्तमान विधायकों के अलावा कॉन्ग्रेसी जनप्रतिनिधियों के साथ कुछ वकील भी मौजूद थे। भारतीय ट्राइबल पार्टी के विधायक राजकुमार रोत ने पुलिस-प्रशासन को ही कोसा है।

उन्होंने कहा कि भले ही आंदोलन की शुरुआत युवाओं ने की हों, लेकिन उनके पास सूचनाएँ हैं कि पुलिस ने स्थानीय ग्रामीणों को निशाना बनाया और उन्हें गिरफ्तार किया, जिससे ये विरोध-प्रदर्शन और ज्यादा उग्र हो गया। उन्होंने कहा कि अब ये मामला ग्रामीण बनाम पुलिस-प्रशासन का हो गया है। एनएच 7-8 पर वाहनों को जलाया गया। एक युवक की मौत पर पुलिस का कहना है कि गोली कहाँ से चली, उसे कुछ नहीं पता।

कहा जा रहा है कि पिछले 2 दिनों में ही 20 से ज्यादा गाड़ियों को आग के हवाले किया गया है। पेट्रोल पंप और एक होटल में लूटपाट की भी खबर आई है। पुलिस का कहना है कि डूंगरपुर के एसपी का भी वाहन नहीं बख्शा गया। 35 पुलिसकर्मियों के घायल होने की सूचना है, जिसके बाद क़रीब 30 लोगों को वहाँ गिरफ्तार किया गया। क़रीब 25 किलोमीटर तक राजमार्ग पर आवागमन पूरी तरह ठप्प हो चुका है।

उदयपुर रेंज की आईजी विनीता ठाकुर ने कहा है कि क्षेत्र में अतिरिक्त पुलिस बल की तैनाती की गई है, ताकि स्थिति को नियंत्रित किया जा सके। इंटरनेट बंद कर दिया गया है। खेरवाड़ा और ऋषभदेव में भी विरोध-प्रदर्शन जारी है। टोल प्लाजा को भी जलाने का प्रयास किया गया। क़रीब 20 किलोमीटर तक प्रदर्शनकारियों द्वारा पत्थर बिछाए जाने के बाद उदयपुर-अहमदाबाद हाइवे 3 दिनों से जाम है।

वहीं राजस्थान पुलिस का कहना है कि झारखण्ड से आए विशेष विचारधारा के गुट ने हिंसा भड़काई है। पुलिस का कहना है कि जहाँ कुछ लोग हिंसा भड़का कर चले गए हैं, वहीं कुछ अभी भी आसपास के गाँवों में छिपे हुए हैं। झारखण्ड में फ़िलहाल हेमंत सोरेन के नेतृत्व में जो सकरार चल रही है, उसमें कॉन्ग्रेस भी भागीदार है। राज्य में कॉन्ग्रेस के 4 मंत्री हैं, जो वित्त, कृषि, स्वास्थ्य और ग्रामीण विकास जैसे मंत्रालय सँभाल रहे हैं। फिर भी कॉन्ग्रेस अपने में भी ब्लेम-गेम खेल रही है।

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ध्यान देने वाली बात ये है कि प्रदेश भाजपा ने भी पुलिस के बयान का समर्थन किया है। प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनियाँ ने कहा कि आशंका पहले लग रही थी, अब प्रशासन ने भी पुष्टि कर दी है कि ये बाहरी तत्व कौन हैं? उन्होंने कहा कि ये लोग झारखंड से आए, कुछ चले गए, कुछ अभी भी छुपे हैं, जो हमेशा से हमारे आदिवासी क्षेत्रों में शांति और सद्भाव को बिगाड़ने का कुत्सित प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने आशा जताई कि ये लोग सफल नहीं होंगे, लेकिन साथ ही चेताया कि उनको जल्द बेनकाब किया जाना चाहिए।

हमने इस संबंध में कुछ स्थानीय लोगों से बातचीत की। उन्होंने कहा कि मेवाड़ क्षेत्र को नक्सलियों का अड्डा बनाने की साजिश चल रही है और इस कार्य में झारखण्ड के पत्थलगड़ी आंदोलन से जुड़े लोगों की भागीदारी है। पत्थलगड़ी ईसाई-आदिवासी नेक्सस का एक ऐसा उदाहरण है, जो देश का क़ानून नहीं मानता। लोगों ने दबे जुबान से बताया कि राजस्थान के कुछ स्थानीय जनप्रतिनिधि भी इस खेल में शामिल हैं, भले ही वो किसी भी पार्टी के हों।

एक प्राध्यापक अभ्यर्थी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि राज्य लोक सेवा आयोग ने प्राध्यापक भर्ती में सामान्य वर्ग के छात्रों के साथ अन्याय किया है, और ऐसे कई उदाहरण हैं, जिन्हें छिपाने के लिए ये सब किया जा रहा है। उसने कहा कि राज्य में 5000 पदों के लिए 2018 में विज्ञप्ति निकाली निकली थी और EWS आरक्षण की घोषणा के बाद प्रक्रियाधीन नियुक्तियों में 14% अतिरिक्त पद सृजित करने की घोषणा हुई थी, लेकिन बिना 700 पद बढ़ाए ही दोगुने अभ्यर्थियों को बुला लिया गया।

जहाँ एक तरफ मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ढिंढोरा पीट रहे हैं कि उनकी सरकार ने पार्टी के चुनावी घोषणा-पत्र में 501 घोषणाओं में से 252 को पूरा कर दिया है और राहुल गाँधी सोशल मीडिया पर ‘प्रदर्शनकारी किसानों’ के समर्थन में लगे हुए हैं, कॉन्ग्रेस को इस सवाल का जवाब देना होगा कि दक्षिणी राजस्थान में चल रहे उग्र हिंसक प्रदर्शन को रोकने में, युवाओं को समझाने में एवं बाहरी तत्वों को चिह्नित कर उन पर कार्रवाई करने में उसकी सरकार नाकाम क्यों रही है?

गुरुवार को राजस्थान में हिंसा भड़कने के बावजूद इसके अगले ही दिन अशोक गहलोत किसानों के मुद्दे पर प्रेस कॉन्फ्रेंस कर रहे थे। वो राजग सरकार द्वारा ‘बनाए गए हालत’ को पूरे देश के किसानों के ‘सड़कों पर आने’ के लिए जिम्मेदार ठहरा रहे थे। राजस्थान प्रदेश कॉन्ग्रेस के सभी प्रमुख पदाधिकारी वहाँ मौजूद थे। जयपुर में प्रेस कॉन्फ्रेंस चलती रही, उधर उदयपुर और डूंगरपुर जलता रहा।

राजस्थान ही नहीं, बल्कि अन्य राज्यों से भी लोगों के आकर स्थानीय युवाओं को भड़काने की बातें पुलिस-प्रशासन ने कही है। सड़क पर शराब की बोतलों से भरे एक ट्रक तक को लूट लिया गया। हालाँकि, कई एसटी अभ्यर्थी कह रहे हैं कि ये उनका काम नहीं है, वो हिंसा नहीं कर सकते। कहा गया है कि बगल के गुजरात के आदिवासी क्षेत्रों से भी कुछ भड़काऊ लोग आए हैं। सरकार अब अपनी अक्षमता का पूरा ठीकरा बाहरी राज्यों पर फोड़ने के लिए तैयार है।

ऐसी कोई घटना हो और उस पर राजनीति न हो, ये तो हो ही नहीं सकता। नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया ने जब इसके लिए कॉन्ग्रेस सरकार को पूरी तरह फेल करार दिया तो कॉन्ग्रेस की राष्ट्रीय कार्यसमिति के सदस्य एवं पूर्व सांसद रघुवीर मीणा ने हिंसक प्रदर्शनों के लिए भाजपा तथा भारतीय ट्राइबल पार्टी (BTP) के नेताओं को जिम्मेदार ठहरा डाला। जैसा कि हमने बताया, BTP इसके लिए पुलिस को दोषी ठहरा रही है।

ऐसा नहीं है कि प्रदर्शनकारियों द्वारा जो माँगें उठाई जा रही हैं, उन्हें लेकर वो कोर्ट नहीं गए थे। हाईकोर्ट पहले ही उनकी याचिका रद्द कर चुका है। इसके बाद कांकरी डूंगरी में एसटी अभ्यर्थी धरने पर बैठे थे, जो अब खुद के इस आगजनी का हिस्सा न होने की बातें कर रहे हैं। उनका कहना है कि ये काम ‘उत्पाती आदिवासियों’ का है। शिक्षा मंत्री गोविन्द सिंह डोटासरा ने शांति की अपील करते हुए कहा कि बहकावे में आकर ऐसी हरकतें की जा रही हैं।

राजस्थान में नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया का बयान

भाजपा प्रदर्शनकारियों के समर्थन में नहीं है। नेता प्रतिपक्ष कटारिया का कहना है कि चूँकि इन माँगों को माने जाने में ही क़ानूनी अड़चनें हैं, गहलोत सरकार को अभ्यर्थियों को इसके बारे में अच्छी तरह समझाना चाहिए, जिसमें वो विफल रहे हैं। उन्होंने कहा कि निर्दोष पिसे जा रहे हैं, परेशान हो रहे हैं। उन्होंने इस बात पर आश्चर्य जताया कि सारे वरिष्ठ अधिकारियों की मौजूदगी में ही 200 आंदोलनकारियों ने इतना नुकसान कर दिया।

उन्होंने क़ानून-व्यवस्था के लिए सख्ती की ज़रूरत पड़ने पर वो भी करने की अपील की है और छात्रों को समझाया है कि आगजनी करने से किसी समस्या का समाधान नहीं होता। उन्होंने भी गुजरात, झारखण्ड और मध्य प्रदेश के भड़काऊ लोगों को यहाँ आकर स्थिति बिगाड़ने के लिए जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने कहा कि इनमें अधिकतर ‘कन्वर्टेड आदिवासी’ शामिल हैं, जो ईसाई मिशनरियों के चक्कर में आकर धर्मान्तरण कर चुके हैं।

भाजपा ये समझाने में लगी हुई है कि अनुसूचित जनजाति वर्ग के क्षेत्रों में इसी वर्ग को नौकरी के लिए ज्यादा आरक्षण देने का फैसला भैरों सिंह शेखावत के मुख्यमंत्रित्व काल में ही हुआ था और वसुंधरा राजे ने इसे आगे बढ़ाया। इससे कई युवाओं की नौकरी लगी। भाजपा ने इस बात से निराशा जताई है कि आज ये नौकरीपेशा लोग भी अपने समुदाय के इन युवाओं को समझा नहीं पा रहे। भाजपा इस मामले में फ़िलहाल फूँक-फूँक कर क़दम रख रही है।

अनुपम कुमार सिंह: चम्पारण से. हमेशा राइट. भारतीय इतिहास, राजनीति और संस्कृति की समझ. बीआईटी मेसरा से कंप्यूटर साइंस में स्नातक.