सफूरा जरगर ने राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे में डाला: दिल्ली पुलिस ने कहा, बेल पर सुनवाई टली

सफूरा जरगर (फोटो साभार: अलजजीरा)

सफूरा जरगर की जमानत याचिका पर दिल्ली हाई कोर्ट ने 23 जून तक सुनवाई स्थगित कर दी। सफूरा के वकील द्वारा जमानत याचिका के बाद हाई कोर्ट ने इस मामले में दिल्ली पुलिस से रिपोर्ट माँगी थी।

दिल्ली पुलिस ने 22 जून 2020 को हाई कोर्ट में सफूरा जरगर और उसके दिल्ली दंगों में संलिप्तता संबंधित रिपोर्ट पेश किया। पुलिस ने कोर्ट को बताया कि पूर्वोत्तर दिल्ली में हुए दंगों से जुड़े एक मामले में गिरफ्तार की गई छात्र सफूरा ज़रगर ने अशांति पैदा की और राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे में डाला था।

अपनी स्टेटस रिपोर्ट में, दिल्ली पुलिस ने कहा कि अभियुक्त सफूरा ज़रगर न केवल घृणा पैदा करने के लिए षड्यंत्रकारी डिजाइन का हिस्सा थी, बल्कि उसका षड्यंत्र किसी भी तरह के उपयोग से लोगों की मृत्यु और घायल होने का कारण बनता।

उत्तर पूर्वी दिल्ली में हुए हिंदू विरोधी दंगों की आरोपित और जामिया मिलिया इस्लामिया की छात्रा सफूरा जरगर के वकील ने चौथी बार उनकी जमानत के लिए कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। इससे पहले तीन बार सफूरा की बेल याचिका खारिज की जा चुकी थी।

आज 22 जून को दिल्ली हाई कोर्ट में उनकी याचिका पर सुनवाई है। लेकिन, यहाँ तक पहुँचने से पहले बता दें कि सफूरा की बेल याचिका पर सुप्रीम कोर्ट विचार करने से मना कर चुका है। वहीं लोअर कोर्ट में भी यह याचिका खारिज हो चुकी है। मगर, इस बार सफूरा जरगर ने मामले में निचली अदालत के 4 जून के आदेश को चुनौती दी है, जिसमें अदालत ने उसे जमानत देने से इनकार कर दिया था।

कोर्ट ने कब-कब खारिज की सफूरा की जमानत याचिका

सबसे पहले 18 अप्रैल को सफूरा पर UAPA लगने से पूर्व एक याचिका दायर की गई थी। लेकिन 21 अप्रैल तक उसके ऊपर आतंकवाद विरोधी कानून लगने के कारण उसकी याचिका को खारिज कर दिया गया। उस समय मेट्रोपोलिटियन मजिस्ट्रेट वसुंधरा छौंकर ने सफूरा को आरोपों को मद्देनजर राहत देने से मना कर दिया था।

इसके बाद 2 मई को दोबारा बेल के लिए अर्जी दी गई। मगर, इस बार भी लंबी बहस के बाद सफूरा को जमानत नहीं मिल पाई।

4 जून को सफूरा ने मेडिकल ग्राउंड पर दिल्ली के ट्रॉयल कोर्ट में फिर याचिका दायर की। इस याचिका में सफूरा को पॉलीसिस्टिक ओवेरी सिंड्रोम से पीड़ित बताकर रियायत की माँग की गई। लेकिन कोर्ट ने 4 जून को भी सफूरी की बेल के लिए मंजूरी नहीं दी। बल्कि जेल प्रशासन को यह आदेश दिया कि वह सफूरा को उपयुक्त मेडिकल सुविधाएँ उपलब्ध करवाएँ।

अपना आदेश सुनाते हुए कोर्ट ने कहा था, “जब आप अंगारे के साथ खेलना चुनते हैं, तो आप हवा को दोष नहीं दे सकते कि चिंगारी थोड़ी दूर तक पहुँच जाए और आग फैल जाए।”

ट्रायल कोर्ट ने दंगों के मद्देनजर कहाकि जाँच के दौरान एक बड़ी साजिश की जाँच की गई और अगर किसी साजिशकर्ता द्वारा किए गए षड्यंत्र, कृत्यों और बयानों के सबूत थे, तो यह सभी के खिलाफ स्वीकार्य है।

अदालत ने सफूरा पर फैसला सुनाते हुए कहा था कि भले ही आरोपित (सफूरा) ने हिंसा का कोई काम नहीं किया था, लेकिन वह गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के प्रावधानों के तहत अपने दायित्व से नहीं बच नहीं सकती।

सफूरा कब और क्यों हुई थी गिरफ्तार?

जामिया की छात्रा सफूरा जरगर के खिलाफ दिल्ली विरोधी दंगों के मद्देनजर यूएपीए के तहत मामला चल रहा है। उसे 10 अप्रैल को दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तार किया था। उसपर आरोप है कि उसने जाफराबाद-सीलमपुर में 50 दिनों के हंगामा की साजिश रची थी और वहाँ महिलाओं-बच्चों को बिठाने के लिए पूरा जोर लगाया था।

इसके अलावा दिल्ली पुलिस ने सफूरा के मामले पर सुनवाई के दौरान कोर्ट को यह भी बताया था कि सफूरा जरगर ने भीड़ को उकसाने के लिए कथित तौर पर एक भड़काऊ भाषण दिया था, जिसके बाद फरवरी में दंगे हुए थे। इतना ही नहीं, सफूरा जरगर की एक वीडियो भी सामने आई थी। जिसमें उन्हें कहते सुना गया था, ‘दिल्ली तेरे खून से इंकलाब आएगा।’

सफूरा जरगर को रिहा कराने के लिए मीडिया गिरोह हुआ सक्रिय

सफूरा जरगर की गिरफ्तारी के बाद से ही उसके गर्भवती होने को लेकर मीडिया गिरोह लगातार विक्टिम कार्ड खेल रहा था। कभी उसके हालातों को गौर करवाते हुए भावनात्मक पोस्ट लिखे जा रहे थे। कभी गर्भवती हथिनी के समान रखते हुए भारत में मातृत्व के प्रति सम्मान पर सवाल उठाए जा रहे थे।

गिरफ्तारी से लेकर अब तक के अंतराल में स्क्रॉल,द प्रिंट, द वायर लगातार इन कोशिशों में जुटे थे कि किसी तरह उसके ख़िलाफ़ लिए एक्शन को गलत साबित कर दिया जाए और उसे रिहाई दिलवाई जाए। लेकिन सफूरा पर लगे आरोप इतने संगीन थे कि 2 महीने तक उनकी जमानत संभव न हो सकी और कोर्ट से हर बार सफूरा को निराशा मिली।

इसके अलावा सफूरा के लिए फर्जी व उन्मादी रिपोर्टिंग करने पर द वायर को भी दिल्ली पुलिस से फटकार मिली थी। क्योंकि द वायर ने अपनी रिपोर्ट में बिना तथ्यों के आधार पर लिख दिया था कि दिल्ली पुलिस ने एक हिंदू और एक मुस्लिम को गिरफ्तार किया और बाद में दोनों के साथ अलग-अलग बर्ताव किया।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया