Tanishq विज्ञापन में हिंदू लड़का-मुस्लिम लड़की होती तो… बम फेंका जाता, शहर जलते… बॉम्बे फिल्म याद है न!

क्या होता है जब लड़की मुस्लिम हो और लड़का हिंदू निकले!

तनिष्क के विज्ञापन ने सोशल मीडिया पर बड़ी बहस छेड़ दी है। लोगों का कहना है कि अपने प्रचार के जरिए तनिष्क ने लव जिहाद को बढ़ावा देने का प्रयास किया है। इस वीडियो को देखकर लोगों का सवाल है कि इसमें आखिर क्यों हिंदु युवती की ही गोद भराई मुस्लिम परिवार में हो रही है, क्या ऐसी कल्पना भी मुस्लिम महिला को केंद्र में रख कर की जा सकती है।

कई स्वघोषित सेकुलर इस पर अपने सवाल खड़े कर रहे हैं। इनका पूछना है कि आखिर तनिष्क को इतना क्यों घेरा जा रहा है? क्या ऐसा तब भी होता जब प्रचार में धर्म को रिवर्स कर दिया जाता?

शायद ऐसे लोगों को यह ज्ञान नहीं है कि बीते समय में जब भी ऐसी कोशिशें हुईं तो ‘नाराज’ मजहबी भीड़ ने शहर के शहर जला डाले और अपना गुस्सा घरों पर बम फेंक कर निकाला है।

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मणि रत्नम की बॉम्बे फिल्म

साल 1995 में फिल्म निर्माता मणिरत्नम ने अरविंद स्वामी और मनीषा कोएराला के साथ अपनी फिल्म ‘बॉम्बे’ बनाई थी। यह फिल्म साल 1992 में बाबरी घटना के बाद हुए दंगों पर आधारित थी। स्वामी ने इसमें हिंदू पत्रकार का रोल अदा किया था और मनीषा गाँव की एक मुस्लिम लड़की बनी थी। दोनों की प्रेम कहानी और उसके कारण उपजे पारिवारिक विरोध को इस फिल्म के जरिए दिखाया गया था।

इसमें बताया गया था कि दोनों एक दूसरे से शादी करके मुंबई आते हैं। वहाँ उनके दो बच्चे होते हैं और उन्हें दोनों धर्मों के मुताबिक पाला जाता है। कई भावनात्मक क्षणों के बाद यह फिल्म ह्यूमन चेन के साथ समाप्त होती है। कुल मिलाकर यदि लिबरल नजरिए से देखें तो इस फिल्म की भी पर्फेंक्ट सेकुलर एंडिंग होती है। मगर, वास्तविकता में समुदाय विशेष के बीच में संदेश वैसा नहीं जाता जिसे फिल्म निर्माता ने देने की कोशिश की।

समुदाय का विरोध और बॉम्बे फिल्म

रजा अकादमी के मुस्लिम नेता, जो आजाद मैदान में हुए दंगों के आरोपित हैं, उन्होंने इस फिल्म की रिलीज के ख़िलाफ़ प्रदर्शन किया था। हालत ऐसी हो गई थी कि फिल्म को आधिकारिक तौर पर रिलीज किए जाने से पहले उसकी स्पेशल स्क्रीनिंग हुई। मुस्लिम नेताओं ने आरोप लगाया कि ऐसी प्रेम कहानी दिखा कर उनकी संस्कृति और मजहब का अपमान किया जा रहा है। रजा अकादमी के मुख्य सचिव इब्राहिम ताय ने ऐसी हिंदू मुस्लिमों की शादियों को ‘नाजायज’ तक कहा था।

गौर दीजिए कि जावेद अख्तर जो अपने आप को नास्तिक बताते हैं, वह भी फिल्म में बदलाव लाने के समर्थन में खड़े हुए थे और कहा था, “मुझे लगता है कि सेंसर द्वारा पास की गई कोई भी फिल्म को रिलीज किया जाना चाहिए। लेकिन ठाकरे द्वारा सेंसर किए जाने के बाद रत्नम ने इस पर से अपना अधिकार खत्म कर दिया है। इसलिए वह कुछ मुल्लों के द्वारा भी इसे सेंसर करवा सकते हैं।”

दरअसल इस फिल्म में एक कैरेक्टर था, जो शिवसेना के बाल ठाकरे से जुड़ा था और अन्य फिल्मों की भाँति जरूरी था कि ठाकरे और शिवसेना को उस फिल्म को दिखाया जाए। इसमें दर्शाया गया था कि जो व्यक्ति पहले दंगों को भड़काता है, वह बाद में उसका पश्चताप करता है। पर, चूँकि बाल ठाकरे को अपने किए का पछतावा नहीं था और कथित तौर पर उन्होंने कहा भी था कि उन्हें किसी तरह का खेद नहीं है तो उन्होंने उस सीन को फिल्म से अल्टर करवा दिया था। इसी आधार पर जावेद ने अपना बयान दिया था।

उल्लेखनीय है कि इस फिल्म के खिलाफ़ प्रदर्शन केवल मुंबई और महाराष्ट्र में ही नहीं हुआ था । ठाणे, भोपाल, हुबली, मेरठ में भी इसका एक रूप देखने को मिला था। मणिरत्नम के घर तक पर बम फेंका गया था, जिसके कारण उन्हें अस्पताल में भर्ती करवाना पड़ा था। बाद में पता चला कि हिंदू नेताओं पर हमला करने वाले अल उम्माह नाम का मुस्लिम समूह इस पूरे अटैक के पीछे था।

तो, शायद इस उदाहरण से यह बात समझी जा सकती है कि तथाकथित सेकुलर जिस ‘रिवर्स’ की बात कर रहे हैं, वो केवल सोशल मीडिया तक की बातें हैं, वास्तविकता में उतरते ही इनका भयानक रूप समय समय पर देखने को मिलता रहा है।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया