‘मुस्लिमों को कैसा लगेगा’: राम मंदिर जैसा दुर्गा पूजा पंडाल देख दशानन की तरह जला ‘द वायर’, वामपंथी प्रलाप के बाद आर्थिक बहिष्कार की माँग

कोलकाता में श्रीराम मंदिर की तर्ज पर बना दुर्गा पूजा पंडाल (चित्र साभार: @kaushkrahul/X)

वामपंथी प्रोपगैंडा पोर्टल द वायर में छपे एक लेख में एक बंगाली प्रोफ़ेसर ने ज्ञान दिया है कि कोलकाता में श्रीराम मंदिर की तर्ज पर बना दुर्गा पूजा पंडाल सही नहीं है। लेख लिखने वाले पार्थो सारथी रे का दावा है कि श्रीराम मंदिर एक समुदाय के शोषण का प्रतीक है और यह त्यौहार के मूल्यों के विरुद्ध है।

जैसा कि आप जानते हैं कोलकाता में हर वर्ष दुर्गा पूजा के दौरान कई भव्य पंडाल बनाए जाते हैं जिनमें अलग-अलग तरह की थीम अपनाई जाती है। इस बार संतोष मित्रा चौराहे पर एक पंडाल ऐसा बनाया गया है जिसकी थीम अयोध्या में बन रहे श्रीराम मंदिर पर आधारित है। इस पंडाल का उद्घाटन केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने किया है।

यह पंडाल अब कोलकाता में लोगों को काफी पसंद आ रहा है और आमजन से लेकर राज्य के राज्यपाल सीवी आनंद बोस जैसी हस्तियाँ भी यहाँ दर्शन के लिए पहुँची हैं। यह वर्तमान में कोलकाता की दुर्गा पूजा के आकर्षण का केंद्र है।

हालाँकि, वामपंथी और हिन्दू विरोधी पोर्टल द वायर को हिन्दुओं की पहचान से जुड़ी किसी भी काम से समस्या होती है। लेख लिखने वाले पार्थो का दावा है कि यह पंडाल एक ऐसे स्थान के आधार पर बनाया गया है जो दूसरे धर्म के पूजा स्थल को तोड़ कर बनाया जा रहा है। यह कोलकाता के दुर्गा पूजा पंडालों के केंद्र में नहीं हो सकता।

द वायर के लेख का स्क्रीनशॉट

वामपंथी प्रोफेसर पार्थो का इशारा बाबरी मस्जिद की तरफ है जिसे 6 दिसम्बर, 1992 को कारसेवकों ने गिरा दिया था और उसी स्थान पर श्रीराम मंदिर का निर्माण हो रहा है। पार्थो का दावा है कि श्रीराम मंदिर एक अन्य मजहबी स्थल को तोड़ कर बनाया जा रहा है जो कई स्तर पर गलत है क्योंकि बाबरी मस्जिद स्वयं ही प्राचीन हिन्दू मंदिर तोड़ कर बनाई गई थी।

यह बात पुरातत्व विभाग की खुदाई में साबित हो चुकी है। ऐसे में असल शोषित तो हिन्दू समाज है। वहीं कौन सा पंडाल आकर्षण का केंद्र बनेगा और कौन नहीं इसका फैसला हिन्दू भक्त स्वयं करेंगे, इसमें भला उन्हें किसी वामपंथी से प्रमाण पत्र लेने की आवश्यकता क्यों है?

प्रोफ़ेसर सभी बातों को किनारे रखते हुए दावा करते हैं कि श्रीराम मंदिर का निर्माण ऐसी घटनाओं के आधार पर हो रहा है जो कि अपने आप में अवैध हैं। वह बात अलग है कि कोर्ट में सभी चीजों को आधार बना कर ही हिन्दू पक्ष को यह जमीन दी गई थी। इसमें वैध अवैध का प्रश्न कहाँ से उठता है यह वामपंथी प्रोफ़ेसर पार्थो ही बता सकते हैं। कौन सी घटनाएँ वैध और अवैध हैं इसका निर्धारण भला कोई वामपंथी प्रोफेसर कैसे कर सकता है जब देश की सर्वोच्च अदालत इस विषय में अपना निर्णय दे चुकी है।

आगे वह दावा करते हैं कि कोई भी ‘सही सोचने वाला हिन्दू’ श्रीराम मंदिर पर गर्व नहीं करेगा। यह वामपंथी गिरोह की पुरानी तकनीक रही है कि वह अपने जैसा ना सोचने वाले को गलत हिन्दू बताते हैं। हालाँकि, वामपंथी पार्थो किस हिन्दू को ‘सही सोच वाला’ मानते हैं उन्होंने यह नहीं स्पष्ट किया।

यह हास्यास्पद बात है कि धर्म को अफीम बताने वाले वामपंथी और मार्क्सवादी अब कोई हिन्दू कैसा है और वह अपने इष्ट और आराध्य के मंदिर के विषय में क्या सोचता है इसके लिए डिक्री जारी कर रहे हैं। यह एक प्रकार की खीझ ही दर्शाता है।

जहाँ तक सही सोचने वाले हिन्दुओं की बात है तो लेख लिखने वाला स्वयं को सोचने के पैमाने पर ठीक ही पाता है और उसे 500 वर्षों के संघर्ष के बाद अयोध्या नगरी में बन रहे श्रीराम मंदिर पर पूरा गर्व है।

वह इसे अन्याय से लड़ कर अपने धर्म की रक्षा के लिए बनाया गया गया प्रतीक भी मानता है। ऐसे में वामपंथी पार्थो के खुद को ‘सही सोचने वाले हिन्दू’ की अकेली ‘लाइसेंसिंग अथॉरिटी’ घोषित करने को वह हास्यास्पद भी मानता है।

लेख में सबसे हास्यास्पद बात यह लिखी है कि आखिर इस पंडाल में आने वाले मुस्लिम परिवारों को कैसा लगेगा? इस पर प्रश्न उठाया जाना चाहिए कि आखिर कितने मुस्लिम परिवार दुर्गा पूजा में रुचि रखते होंगे क्योंकि बुत की पूजा करना तो इस्लाम में हराम है।

दूसरी बात यह है कि इसी आधार पर प्रश्न उठाया जाना चाहिए कि देश के करोड़ों हिन्दुओं को तब कैसा लगता होगा/है जब उनके तीन देवों के मंदिरों (काशी, मथुरा और अयोध्या) पर सदियों से मुस्लिम कब्ज़ा करके बैठे हैं।

असल में वामपंथियों की पूरी कवायद यह है कि ऐसा कोई भी त्यौहार जो कि हिन्दुओं को गर्व की अनुभूति करवाता है या फिर उन्हें एकता के सूत्र में बाँधता है उसकी छवि धूमिल की जाए। इसीलिए पूरे लेख में वामपंथी पार्थो दुर्गा पूजा को एक हिन्दू त्यौहार नहीं बल्कि ‘सेक्यूलर’ त्यौहार बताने की कोशिश करते हैं। ऐसे प्रयास इससे पहले ओणम और यहाँ तक दिवाली को ‘दक्षिण एशियाई तोहार’ बता कर किए जा चुके हैं।

“दुर्गा पूजा को सेक्यूलर त्यौहार बनाने के लिए उसमें राम मंदिर का समावेश ना हो, यहाँ मुस्लिमों की भावनाओं का ख्याल रखा जाए और इसे एक हिन्दू उत्सव की तरह ना मनाया जाए।” पार्थो के इस पूरे लेख का यही ध्येय है। वह बात अलग है कि पूर्व में ऐसे भी दुर्गा पूजा पंडाल बंगाल के भीतर ही बनाए गए हैं जिनमें नमाज तक पढ़ी गई है, आखिर तब हिन्दुओं की भावनाओं की चिंता क्यों नहीं की गई?

हिन्दू देवी देवताओं, रीति रिवाजों और परम्पराओं को धूमिल करने वाले त्योहारों पर हमला करने वाले किसी भी विचार को सबसे पहले प्लेटफार्म उपलब्ध करवाने में वायर जैसे पोर्टल आगे रहते हैं। अब सोशल मीडिया पर इनके आर्थिक बायकाट की माँग हो रही है।

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