भारत के सोलर और वृक्षारोपण से धरती पर बढ़ी हरियाली, ट्रम्प अपना ठेंगा रख सकते हैं अपने पास

NASA द्वारा जारी की गई भारत और चीन में हरियाली की तस्वीर (Image Credit: https://earthobservatory.nasa.gov/images/144540/china-and-india-lead-the-way-in-greening)

आज पूरे विश्व भर में 16 साल की एक बच्ची के कारण 105 देश के स्कूली छात्र पर्यावरण को बचाने के लिहाज़ से हड़ताल पर बैठने वाले हैं। जाहिर हैं कि पर्यावरण को लेकर चिंता अब एक वैश्विक स्तर का विषय बन चुकी है। चूँकि आज जलवायु परिवर्तन की स्थिति को बद से बदतर करने के पीछे मनुष्य और उसके लोभ ही मुख्य कारण हैं। ऐसे में साल 2017 में अमेरिका ने जलवायु परिवर्तन के लिए भारत और चीन को दोषी ठहराया था, जो कि भारत के औद्योगिक विकास पर गहरा सवाल बना था। आज ऐसे मौकों पर हमारा देश भले ही कुछ लोगों के कारण बदनाम हो रहा हो, लेकिन हमें भूलना नहीं चाहिए कि स्वच्छता हमारी जरूरतों में नहीं संस्कारों में निहित है। इसलिए जरूरी है कि जानें कि ट्रम्प का बयान किस परिपेक्ष्य में आया था और इसमें कितनी सच्चाई है?

पर्यावरण के लिए पेरिस समझौता और भारत-चीन पर ‘ग्लोबल वार्मिंग’ बढ़ाने का इल्जाम

भारत में पिछले चार सालों में स्वच्छता के लिहाज़ से काफ़ी कारगर कदम उठाए गए, जिसके लिए खुद प्रधानमंत्री मोदी ने देश को जागरूक किया। साल 2015 में फ्रांस की राजधानी पेरिस में एक क्लाइमेट समझौता हुआ जिसका उद्देश्य दुनिया में बढ़ती ग्लोबल वार्मिंग को रोकना था। अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी, इटली, भारत-चीन समेत कुल 195 देशों ने समर्थन इस प्रस्ताव पर सहमति जताते हुए हस्ताक्षर किए थे।

इस समझौते में दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था और विकसित राष्ट्र होने के नाते अमेरिका की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण थी। उस समय अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के नेतृत्व में 26 फीसदी कार्बन उत्सर्जन स्वेच्छा से कम करने की हामी भरी गई, साथ ही इस समझौते में शामिल गरीब देशों के लिए भी 3 बिलियन डॉलर की मदद करने का आश्वासन दिया गया।

लेकिन 2017 में ट्रंप के नेतृत्व वाली सरकार ने इस समझौते से अपने हाथ वापस खींच लिए जिससे इसमें निहित मूल उद्देश्य को झटका लगना तय था, क्योंकि अमेरिका दुनिया में सबसे ज्यादा कार्बन उत्सर्जन करने वाला देश माना जाता है।

समझौते से पीछे हटते हुए अमेरीकी राष्ट्रपति ने भारत और चीन पर निशाना साधा और कहा कि इन दोनों देशों की अर्थव्यवस्था इस समय सबसे तेजी से बढ़ रही है जिसके कारण औद्योगिक उत्पादन के साथ कॉर्बन उत्सर्जन में भी काफी तेजी आई है। ट्रंप ने कहा था कि सबसे ज्यादा कॉर्बन उत्सर्जन जब भारत और चीन द्वारा किया जाता है तो इसका खामियाजा अमेरिका क्यों भुगते?

उस समय भारत और चीन के पास आश्वासन देने की सिवा कोई रास्ता नहीं था। इसलिए उन्होने पूरी प्रतिबद्धता के साथ 2030 तक कार्बन उत्सर्जन में 30-35 प्रतिशत कमी लाने का संकल्प लिया।

NASA की रिपोर्ट ने उठाए ट्रंप पर सवाल

विगत दो दशक में भारत में पर्यावरण को संरक्षित रखने के लिहाज़ से कई कारगर कदम उठाए गए। प्रधानमंत्री मोदी ने देश इस संबंध में देश को जागरूक करने का बीड़ा उठाया। आज अमेरिका जैसे कुछ आलोचक भले ही इस बात को अस्वीकार दें और देश की आलोचना करें, लेकिन हकीक़त का खुलासा NASA ने स्वयं अपनी रिपोर्ट में किया है। कुछ समय पहले NASA द्वारा जारी की गई तस्वीर और रिपोर्ट में बताया कि आज हमारी धरती 20 साल पहले के मुकाबले ज्यादा हरी-भरी है और इसका श्रेय भारत और चीन को जाता है।

आपको शायद इस बात में विरोधाभास की झलकियाँ दिखाई दे रही हों। क्योंकि यही समझा जाता है कि इन दोनों देशों ने औद्योगीकरण और आर्थिक उन्नति के चलते जमीनों को बंजर कर डाला है साथ ही पानी और संसाधनों का गलत इस्तेमाल किया है। लेकिन NASA कहता है कि पिछले दो दशकों में भारत और चीन ही ऐसे दो देश रहे हैं जहाँ पर वृक्षारोपण का कार्य बहुत बड़े स्तर पर हुआ है। पर्यावरण पर मंडरा रहे खतरे के लिहाज़ से यह बेहद तसल्ली देने वाली खबर है।

भारत आज पेड़ लगाने के मामले में विश्व के सभी रिकॉर्ड तोड़ रहा है। केवल 24 घंटों में ही भारत में 5 करोड़ पेड़ लगाए जाते हैं। हाल ही में NASA की रिसर्च और नेचर सस्टेनेबिलिटी में छपे लेख के अनुसार आज के समय की तस्वीर और 1990 के मध्य के समय की तस्वीर को साथ देखा गया, जिसके बाद उपर्युक्त निष्कर्ष सामने आए। हालाँकि शुरुआत में तस्वीरों को देखने भर से यह स्पष्ट नहीं था कि तस्वीरों में दिख रही हरियाली का मुख्य कारण क्या है? अंदाजा लगाया जा रहा था कि कहीं कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ने के कारण तो ऐसा नहीं हो रहा या कहीं अधिक बारिश के कारण वनस्पति विकसित हो रही है। लेकिन गहन शोध के बाद पता चला कि हरियाली भारत और चीन में स्थिर रूप से बनी हुई है।

केवल हरियाली ही नहीं, ‘सोलर’ भी दिखा रहा है कमाल

इस पॉजिटिव खबर के साथ ही बता दें कि पर्यावरण को बचाने के लिए प्रधानमंत्री द्वारा देश में सौर ऊर्जा के विस्तार पर काफ़ी जोर दिया गया है। राष्ट्रीय सौर मिशन की शुरुआत करने के बाद से भारत ने इस क्षेत्र में अपनी महत्वाकांक्षा में पाँच गुना तक बढ़ोतरी की है। साल 2022 तक भारत ने जो 175GW स्वच्छ ऊर्जा उत्पादन का लक्ष्य रखा है उसमें करीब 100GW हिस्सा सौर उर्जा से प्राप्त हो।

इस दिशा में विश्व बैंक ने भारत को बड़े स्तर पर छतों में लगने वाले सौर ऊर्जा पैनलों से लेकर नई और हाइब्रिड तकनीक और ऊर्जा के भंडारण और ट्रांसमिशन लाइनों तक तमाम क्षेत्रों में मदद का प्रस्ताव दिया है। जिसका फायदा उठाते हुए भारत जर्मनी की तरह अपना लक्ष्य हासिल करने की ओर अग्रसर हो रहा है। बता दें कि जर्मनी सौर और पवन ऊर्जा के मामले में दुनिया के अगुवा देशों में से एक है और उसके अनुभव से हम यह सीख सकते हैं कि अपने यहाँ इस क्षेत्र में एक नई जान कैसे फूंकी जाए।

इसके अलावा भारत में पर्यावरण के लिहाज से सौर उर्जा के प्रयोग पर हम ऐसे अंदाजा लगा सकते हैं कि कोचिन इंटरनेशनल एयरपोर्ट दुनिया में पूरी तरह से सौर ऊर्जा से संचालित होने वाला पहला एयरपोर्ट है जो भारत के लिए बड़ी कामयाबी है।

आज जहाँ पूरे विश्व के स्कूली छात्र जलवायु परिवर्तन से परेशान होकर इतनी बड़ी हड़ताल कर रहे हैं, वहाँ हम भारतीयों को भी समझने की आवश्यकता है कि हमें उस पर्यावरण को संरक्षित करने के लिए अपनी गति को रुकने नहीं देना है क्योंकि लोभ के लिए मानव निर्मित संसाधन कुछ समय बाद नष्ट हो जाएँगे लेकिन प्राकृतिक संसाधनों का फायदा पीढ़ी दर पीढ़ी तक देखने को मिलेगा। सरकार द्वारा स्वच्छता के लिए उठाए कदमों से और अपने प्रयासों पर काम करते हुए हमें अमेरिका को जवाब भी देना है और जलवायु में हो रहे परिवर्तन को भी संतुलित रखना है।