CM हेमंत सोरेन के गृह जिले में जलाई गई अंकिता, माँस-भात खाती रही ‘सरकार’: पत्थरबाज नदीम को एयर एंबुलेस, हिन्दुओं की आवाज पर 144 का पहरा

अंकिता सिंह को अगर इलाज में समय पर सरकारी मदद मिलती तो शायद वो बच सकती थीं, लेकिन हेमंत सोरेन सरकार पिकनिक मनाती रही

झारखंड के दुमका में शाहरुख़ हुसैन 5 वर्षों से एक हिन्दू छात्रा को परेशान कर रहा था। अंततः उसने पेट्रोल छिड़क कर उसे ज़िंदा जला डाला। इलाज के दौरान अंकिता सिंह की मौत हो गई। जहाँ की ये घटना है, वो जिला राज्य की सत्ताधारी पार्टी और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के परिवार का गढ़ रहा है। दुमका से वो खुद विधायक रहे हैं। उनके पिता शिबू सोरेन यहाँ से 7 बार सांसद रह चुके हैं। ऐसे में इस क्षेत्र में इस तरह की घटना होना सीधे सरकार की कार्यशैली पर सवाल खड़े करता है, क्योंकि ये उनका गृह जिला है।

अंकिता सिंह की हो गई मौत, उधर पिकनिक मनाती रही ‘सरकार’

सबसे पहले आपको ताज़ा घटना के बारे में बता देते हैं। 17 वर्ष की अंकिता सिंह 12वीं की छात्रा थी। पिता किराना दुकान चला कर परिवार का भरण-पोषण करते हैं। शाहरुख फोन पर अंकिता को परेशान करता था। स्कूल जाते वक्त रास्ते में छेड़खानी करता था, जिस कारण अंकिता को स्कूल जाना छोड़ना पड़ा। घर में घुस जाता था। तड़के 4 बजे उसने सोती हुई अंकिता पर खिड़की से पेट्रोल छिड़क आग लगा दी। एक सप्ताह तक ज़िन्दगी और मौत से जूझने के बाद हिन्दू छात्रा की मौत हो गई।

घटना के बाद स्थानीय लोगों ने आक्रोशित होकर विरोध प्रदर्शन किया। पुलिस की हिरासत में शाहरुख़ के हँसते हुए चेहरे ने आग में घी का काम किया। ये सोशल मीडिया का जमाना है, इसीलिए अब पुराने हथकंडों से न्याय की आवाज़ को दबाया नहीं जा सकता। यही कारण है कि पुलिस-प्रशासन ने लोगों को अपनी आवाज़ उठाने से रोकने के लिए धारा-144 लागू कर दिया। लेकिन, अंकिता की अंतिम यात्रा में लोगों ने शाहरुख़ को फाँसी देने के साथ-साथ प्रशासन विरोध नारेबाजी भी की।

आपको जान कर आश्चर्य होगा कि फ़िलहाल पुलिस-प्रशासन का ध्यान इस पर कम है कि शाहरुख़ हुसैन को सज़ा कैसे दिलाया जाए, और इस पर ज़्यादा है कि ‘सरकार’ की पिकनिक में इस घटना से कोई खलल न पड़े। क्या ‘झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM)’ द्वारा शासित राज्य में न्याय माँगने पर भी प्रतिबंध है? न कोई हिंसा, न कोई आगजनी, लेकिन फिर भी धारा-144 लगाने की चूल क्यों? ऐसा पहली बार नहीं, जब हिन्दुओं की आवाज़ दबाने के लिए ऐसा किया गया।

और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन कहाँ हैं? वो लतरातू में अपने विधायकों के साथ पिकनिक मना रहे हैं। खुद को ही कोयला खान आवंटित करने के मामले में उन पर हितों के टकराव का आरोप है और उनकी विधानसभा सदस्यता भी जा सकती है। इधर झारखंड का सत्ताधारी गठबंधन अपने विधायकों के साथ ‘रिसॉर्ट पॉलिटिक्स’ में व्यस्त है। 3 बसों में भर कर 43 विधायक पिकनिक के लिए ले जाए गए। खूँटी में ‘सरकार’ मटन-भात खा रही है, उधर अंकिता सिंह का गरीब परिवार अपनी बेटी की मौत के दुःख में है।

झारखंड में हिन्दुओं की हत्याओं के बाद आवाज़ दबाने का ये पहला मामला नहीं

आपको रूपेश पांडेय की हत्या याद है? हजारीबाग में सरस्वती पूजा के समय रूपेश पांडेय की मुस्लिमों ने हत्या कर दी थी। जब हिन्दुओं ने इस मामले में न्याय की माँग की तो बरही में फरवरी 2022 में धारा-144 लागू कर दी गई थी। सरस्वती पूजा के विसर्जन के दौरान 17 साल के रूपेश पांडेय की पीट-पीट कर हत्या के बाद इलाके में सांप्रदायिक तनाव भड़क गया था। धार्मिक स्थलों को भी नुकसान पहुँचाया गया था। सरकार ने क्या किया? धारा-144 लगा दी।

इसी तरह लोहरदगा में CAA समर्थक जुलूस पर ‘पाकिस्तान ज़िंदाबाद’ चिल्लाती भीड़ ने जब हमला किया, उसमें नीरज प्रजापति नामक मूर्तिकार की जनवरी 2020 में मौत हो गई थी। उनके द्वारा बनाई गई माँ सरस्वती की प्रतिमा खरीददारों की बाट जोहती रह गई। उस समय सरकार ने सिर्फ धारा-144 ही नहीं, कर्फ्यू ही लगा दिया। लेकिन, देश भर के लोगों ने गरीब पीड़ित परिवार के लिए चंदा जमा किया। उधर सरकारी कर्फ्यू के कारण लोगों के पास खाने के लिए दाल-सब्जी तक नहीं थी।

अब याद कीजिए झारखंड की राजधानी राँची में गोली मार कर VHP नेता मुकेश सोनी की हत्या का मामला। वो जेवर व्यवसायी थे, दिसंबर 2021 में जिनकी हत्या के बाद आक्रोशित हिन्दू सड़क पर उतरे थे। साजिश के तहत हुए इस हत्याकांड के बाद सरकार ने भारी संख्या में पुलिस बल को तैनात कर हिन्दुओं को न्याय के लिए आवाज़ उठाने से रोका। खलारी इलाके में रहने वाले मुकेश सोनी मैक्लुस्कीगंज में दुकान चलाते थे। तब भी हिन्दू संगठनों ने राज्य में हिन्दुओं के सुरक्षित न होने की आवाज़ उठाई थी।

पत्थरबाज नदीम के लिए एयर एंबुलेंस, उधर इलाज के लिए पैसे का जुगाड़ करते रहे अंकिता के पिता

आखिर झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार क्यों चाहती है हिन्दू मरते रहें लेकिन आवाज़ न उठाएँ? वहीं मुस्लिमों के सम्बन्ध में JMM सरकार का क्या रुख रहता है? जून 2022 में जब राँची में हुए उपद्रव में पत्थरबाज नदीम अंसारी घायल हुआ, तो उसका सरकारी खर्चे से इलाज किया गया। उसके लिए एयर एंबुलेंस की व्यवस्था की गई। नदीम को एयर एंबुलेंस से दिल्ली भेजा गया, लेकिन अंकिता सिंह को जब रिम्स रेफर किया गया तो परिवार दिन भर पैसों का जुगाड़ करता था और रात को ही ये संभव हो पाया।

एयर एंबुलेंस न सही, अगर साधारण एंबुलेंस भी समय पर मिल जाती और रिम्स में शुरू से अंकिता सिंह का इलाज होता तो शायद वो बच सकती थीं। लेकिन, पत्थरबाज नदीम की किस्मत में एम्स का इलाज था, मासूम अंकिता की किस्मत में मौत। और झारखंड सरकार के अधिकारियों पर अब भी इस मामले में लीपापोती के आरोप लग रहे हैं। जितने दिन अंकिता अस्पताल में रहीं, कोई भी मंत्री-विधायक उसकी या परिवार की सुध तक लेने नहीं गया।

अनुपम कुमार सिंह: चम्पारण से. हमेशा राइट. भारतीय इतिहास, राजनीति और संस्कृति की समझ. बीआईटी मेसरा से कंप्यूटर साइंस में स्नातक.