यदि PM मोदी ‘पनौती’ हैं तो भारत को ‘पनौती’ प्रधानमंत्री ही चाहिए

फाइनल मैच के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारतीय क्रिकेटरों से की मुलाकात (फोटो साभार: इंडिया टुडे)

  1. क्या आपको पता है आज भारत का खेल बजट कितना है?
  2. क्या आप ‘TOPS’ यानी टारगेट ओलंपिक पोडियम स्कीम के बारे में जानते हैं?
  3. क्या आप ‘खेलो इंडिया’ के तहत देशभर में तैयार हो रहे टैलेंट पूल के बारे में जानते हैं?

इन सवालों का जवाब तीन कारणों से जानना जरूरी है। पहला, इससे आपको पता चलता है कि कैसे मोदी सरकार ने उस देश में स्पोर्टस का एक ‘इको सिस्टम’ तैयार कर दिया है, जो देश मानता था कि पढ़ोगे-लिखोगे तो बनोगे नवाब, खेलोगे-कूदोगे तो होगे खराब। जिस देश की सरकारें मानती थीं कि खेल ही है, उसके लिए कैसा सिस्टम

दूसरा, जिस देश में गली-गली में टैलेंट दम तोड़ देते थे, उस देश के गली-गली से निकले टैलेंट अब विश्व स्तरीय प्रशिक्षण पाकर अंतरराष्ट्रीय मंचों पर देश को गौरवान्वित होने का क्षण दे रहे हैं। इसी साल भारत ने एशियाई खेलों का अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया है। ‘खेलो इंडिया’ अभियान से निकले करीब सवा सौ खिलाड़ी एशियाई खेलों का हिस्सा बने थे। इनमें से 36 ने मेडल भी जीत लिए।

इन सवालों के जवाब जानने का तीसरा कारण तात्कालिक है। क्योंकि 2014 और 2019 के जनादेश से घृणा करने वाला वर्ग क्रिकेट विश्व कप के फाइनल की हार के बाद आपके प्रधानमंत्री को ‘पनौती’ बता आपके वोट को अपमानित करने का काम कर रहा है।

किसी देश में खेल का ‘इको सिस्टम’ कितना बेहतर है, इसका पता ओलंपिक में उस देश की तरफ से क्वालिफाई करने वाली खिलाड़ियों की संख्या से पता चलता है। 2012 में लंदन में हुए ओलंपिक के लिए भारत के 83 एथलीट ने क्वालिफाई किया था। लेकिन, मोदी सरकार के रहते हुए दो ओलंपिक रियो डी जेनेरियो 2016 और टोक्यो 2020 ओलंपिक के लिए क्रमश: 117 और 126 खिलाड़ियों ने क्वालिफाई किया है।

अब मोदी सरकार में खेल का ढाँचा बनाने के लिए उठाए गए कदमों पर गौर करिए। 9 साल पहले के मुकाबले खेल बजट आज तीन गुणा हो चुका है। इस साल के लिए केंद्र सरकार ने युवा और खेल मंत्रालय को 3389.32 करोड़ रुपए का बजट दिया है। लक्ष्य है खिलाड़ियों को बेहतर सुविधाएँ और प्रशिक्षण उपलब्ध कराकर 2024 के पेरिस ओलंपिक और पैरालंपिक में प्रदर्शन और बेहतर करना।

उल्लेखनीय है कि 2007-08 में भारत का खेल बजट महज 708 करोड़ रुपए का था। हालाँकि 2009-10 में यह बजट 3670 करोड़ रुपए हो गया था। पर इसका कारण खेल का इको सिस्टम विकसित करना न होकर, 2010 के दिल्ली राष्ट्रमंडल खेलों की तैयारी था। इसके बाद से खेल बजट में फिर से कमी आने लगी। लेकिन मोदी सरकार इस क्षेत्र के बजट में लगातार उल्लेखनीय वृद्धि कर रही है।

इस पैसे को खर्च करने के लिए बकायदा एक रोडमैप तैयार किया गया है। खेलो इंडिया, TOPS जैसी योजना तैयार की गई है। इसके तहत स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालय के स्तर पर प्रतिभाशाली खिलाड़ियों की पहचान की जा रही है। फिर उनके प्रशिक्षण, डाइट और अन्य चीजों पर सरकार खर्च कर रही है।

खेलो इंडिया के तहत टैलेंट पूल तैयार करने का काम किया जा रहा है। इस समय देशभर के करीब तीन हजार खिलाड़ियों को इस योजना के तहत प्रशिक्षण दिया जा रहा है। इन खिलाड़ियों को 8 साल के लिए सालाना 5 लाख रुपए भी दिए जा रहे हैं। इसी तरह TOPS के तहत यह सुनिश्चित किया जा रहा है कि देश के शीर्ष खिलाड़ियों को दुनिया का श्रेष्ठ प्रशिक्षण मिले।

इसका फायदा ओलंपिक से लेकर एशियाई खेलों तक भारत के प्रदर्शन में आए सुधार तक में देखने को मिला है। यह सब उस देश में हो रहा है, जहाँ खेल का क्षेत्र हमेशा से सरकारी उपेक्षा और लालफीताशाही का शिकार रहा है। जिसके कारण कभी-कभार किसी अभिनव बिंद्रा ने स्वर्णिम प्रदर्शन किया भी तो वह देश के खेल ढाँचे की सफलता से अधिक उनकी व्यक्तिगत अर्जित सफलता थी।

आज ग्रामीण स्तर तक खेल के ढाँचे को लेकर केंद्र सरकार पैसा दे रही है। राष्ट्रीय खेल महासंघों को सहायता मिल रही है। अंतराष्ट्रीय स्पर्धाओं के विजेता हो या उनके कोच, उन्हें पुरस्कृत किया जा रहा है। राष्ट्रीय खेल पुरस्कार, उत्कृष्ट खिलाड़ियों को पेंशन, पंडित दीनदयाल उपाध्याय राष्ट्रीय खेल कल्याण कोष, राष्ट्रीय खेल विकास कोष, भारतीय खेल प्राधिकरण (SAI) के जरिए प्रशिक्षण केंद्रों का संचालन हो रहा है। पैसे का आवंटन योजनाओं के क्रियान्वयन के आधार पर हो रहा न कि राज्यों के राजनीतिक रसूख को नाप-तौल कर।

ऐसा भी नहीं है कि यह सब मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में शुरू हुआ है। खेल को लेकर 2014 में आते ही इस सरकार का विजन स्पष्ट था। इस सरकार का मानना रहा है कि देश की प्रगति इस बात से भी जुड़ी हुई है कि देश में खेल का ढाँचा कितना व्यापक और कितना मजबूत है। यही कारण है कि मोदी सरकार ने अपने पहले कार्यकाल में भी खेल विकास योजनाओं के तहत 6801 करोड़ 30 लाख रुपए जारी किए थे।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसी साल गोवा में 37वें राष्ट्रीय खेलों को संबोधित करते हुए कहा भी था, “किसी भी देश के खेल क्षेत्र की प्रगति का सीधा नाता उस देश की अर्थव्यवस्था की प्रगति से भी जुड़ा होता है। नकारात्मकता और निराशा भले मैदान में ही क्यों न हो, उसका असर जीवन के हर क्षेत्र पर दिखता है। खेल क्षेत्र की सफलता को भारत की सफलता से अलग कर नहीं देखा जा सकता है।”

खेल और अर्थव्यवस्था के बीच जो लिंक प्रधानमंत्री बता रहे हैं, उसे बाजार भी मानता है। क्रिकेट विश्व कप के आयोजन से भारतीय अर्थव्यवस्था में करीब 22 हजार करोड़ रुपए आने का अनुमान है। सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि 2036 के जिस ओलंपिक की मेजबानी हासिल करने को मोदी सरकार प्रयास कर रही है, वह मिलने पर अर्थव्यवस्था को कितना बड़ा बूस्ट मिलेगा।

अब लौटते हैं 19 नवंबर 2023 को अहमदाबाद के नरेंद्र मोदी स्टेडियम में। 50 ओवर के विश्व कप क्रिकेट के फाइनल में भारत और ऑस्ट्रेलिया की टीम मुकाबिल थी। भारतीय टीम पूरे टूर्नामेंट में अपराजेय रही। फाइनल में खिलाड़ियों का उत्साहवर्धन करने प्रधानमंत्री मोदी भी स्टेडियम पहुँचे। इसमें कुछ भी नया नहीं था। पूर्व में भी हम प्रधानमंत्री मोदी को विभिन्न क्षेत्रों के खिलाड़ियों का इस तरह से उत्साहवर्धन करते देख चुके हैं। लेकिन भारतीय टीम की हार के बाद जिस तरह की टिप्पणियाँ की गई, उससे प्रतीत होता है कि मोदी से घृणा करने वाला वर्ग अपने ही देश की हार की प्रतीक्षा में बैठा था।

क्रिकेट वह खेल है, जिसके प्रशासन और ढाँचे में सरकार का कोई दखल नहीं होता है। देश के गली-गली में क्रिकेट को पहुँचाने का श्रेय भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) को जाता है। समय-समय पर बीसीसीआई के प्रशासनिक रवैए को लेकर विवाद होते रहे हैं, बावजूद इसके यह खेल देश में समय के साथ अपना असर बढ़ाते गया। 1983 में पहली बार क्रिकेट वर्ल्ड कप जीतना हो या फिर 2011 में दोबारा से 50 ओवर के क्रिकेट का विश्व विजेता बनना, यह बीसीसीआई के ही प्रशासनिक नेतृत्व में हुआ है। यह महज संयोग था कि उस समय प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी और मनमोहन सिंह थे। यदि खेलों को लेकर ये सरकारें गंभीर होती तो 2008 तक मिले 17 ओलंपिक मेडल में से 11 देने वाली हॉकी ही बेसहारा नहीं होती।

खेल के क्षेत्र में किसी सरकार के काम का मूल्यांकन इस बात पर होता है कि उसने कैसा देशव्यापी ढाँचा खड़ा किया। जमीन पर जाकर प्रतिभा की पहचान करने की व्यवस्था किस तरह तैयार की। प्रतिभाओं को कैसे तराशा। उन्हें विश्वस्तरीय मुकाबलों के लिए कैसे तैयार किया। इन्हीं क्षेत्रों में कार्य से कोई देश खेल की महाशक्ति बनता है। लेकिन पूर्व की सरकारों ने इस दिशा में गंभीर कार्यों को लेकर कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। इस दिशा में काम 2014 के बाद शुरू हुए हैं।

खेल की दुनिया में महाशक्ति बनने के लिए भारत को अभी लंबी यात्रा करनी होगी। मोदी सरकार इस यात्रा के लिए वह जमीन तैयार कर रही है, जिस पर चलकर अमेरिका, रूस, चीन जैसे देश खेल की महाशक्ति बने। यदि इस जमीन को तैयार करने वाला प्रधानमंत्री ‘पनौती’ है तो वह हमें स्वीकार है। अहमदाबाद की एक खराब शाम या एक कप के हाथ से फिसल जाने से हम किसी ऐसे नेतृत्व को स्वीकार नहीं कर सकते, जिनका किसी कप के हाथ में आने के समय सत्ता में होना महज संयोग था। हम जानते हैं कि संयोग की यात्रा पर एक दिन पूर्णविराम लगता है। पर मजबूत जमीन कई पीढ़ियों का भविष्य बदल देती है। वह तब भी स्वर्णिम मार्ग पर ले जाती है, जब जमीन तैयार करने वाला सूरज अपनी यात्रा पूर्ण कर चुका होता है। वह देश को गौरवान्वित होने के असंख्य क्षण बार-बार प्रदान करता रहता है।

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