वो कार्टूनिस्ट थे, ये कार्टून डालने पर पीटते हैं: ‘नीच मानुष’ के साथ सत्ता भोग रहे उद्धव, पिता को जेल भेजने वाले को बना रखा है मंत्री

शिवसेना के संस्थापक बाल ठाकरे अपने बेटे उद्धव के साथ (फाइल फोटो साभार: India Today/Getty Images)

बाला साहब ठाकरे उर्फ़ बाल ठाकरे ने आज से 56 वर्ष पहले 19 जून, 1966 को शिवसेना की स्थापना की थी। ‘मराठा मानुष’ को अपने हक़ दिलाने और महाराष्ट्र में ‘बाहरी लोगों’ के प्रभाव को कम करने के लिए बने इस राजनीतिक दल का जन्म तब बॉम्बे में चल रहे एक आंदोलन से हुआ था। धनुष-तीर इसका चुनाव चिह्न है, जो इसकी विचारधारा से भी मेल खाता था। 70 के दशक में शिवसेना ने हिंदुत्व की विचारधारा अपनाई और 80 के दशक के अंत में इसका भाजपा के साथ गठबंधन हुआ।

लेकिन, उद्धव ठाकरे की शिवसेना अलग है। 2014 में महाराष्ट्र में जो विधानसभा चुनाव हुए थे, उसमें भी भाजपा-शिवसेना का गठबंधन टूट गया था और दोनों दलों ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था। हालाँकि, चुनाव के बाद देवेंद्र भाजपा के फडणवीस मुख्यमंत्री बने और शिवसेना भी सरकार में साथ रही। लेकिन, दोनों दलों के रिश्ते काफी तनातनी भरे रहे। 2019 में ये गठबंधन फिर से पूरी तरह टूट गया, जब शिवसेना ने अपने राजनीतिक दुश्मनों NCP और कॉन्ग्रेस के साथ मिल कर सरकार बना ली।

यहाँ हम बात करेंगे कि कैसे उद्धव ठाकरे ने अपने पिता की विचारधारा को ताक पर रख दिया और उनकी पार्टी ने कैसे बाल ठाकरे की विरासत का बार-बार अपमान किया। भगवा वस्त्र और रुद्राक्ष पहनने वाले बाल ठाकरे एक जननेता थे और साथ ही निडर होकर बोलने में न हिचकने वाले भी। हिंदुत्व के मुद्दों पर वो खुल कर बोलते थे। मुख्यमंत्री का पद जब शिवसेना को मिला तो उन्होंने पहले मनोहर जोशी और फिर नारायण राणे को चुना, खुद अपने परिवार के लिए ये पद नहीं लिया।

बाल ठाकरे ने अपने जीवन में कोई चुनाव नहीं लड़ा। उनके बेटे उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री बनने के बाद कुर्सी सुरक्षित रखने के लिए विधान पार्षद बने। आदित्य ठाकरे को वर्ली विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ाया गया और अपने पिता की सरकार में उन्हें कैबिनेट मंत्री बनाया गया। उन्हें पर्यावरण विभाग मिला। मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के बैठकों में उनकी पत्नी के भाई के बेटे की मौजूदगी को लेकर भी बवाल हो चुका है। इस तरह शिवसेना भी अब कॉन्ग्रेस से अलग नहीं है, जहाँ एक परिवार को ही सब कुछ चाहिए और बाकियों का कोई मान नहीं।

हम आगे बढ़ेंगे, लेकिन उससे पहले जरा त्रिपुरा में मस्जिद जलाए जाने की झूठी अफवाह के कारण जलते महाराष्ट्र को याद कीजिए, जहाँ ‘रजा एकेडमी’ के आह्वान पर मुस्लिम भीड़ सड़कों पर उत्पात मचा रही है। फिर सोचिए, कि क्या बाल ठाकरे के रहते इस्लामी भीड़ की आगजनी की हिम्मत होती? बाल ठाकरे सत्ता में रहते या विपक्ष में, फर्क नहीं पड़ता। सत्ता में होते तो किसी की ऐसे निकलने की हिम्मत नहीं होती और जो उत्पात करता वो जेल में होता। विपक्ष में रहते, तो अपने संसाधनों के साथ प्रतिकार करते, सड़क पर उतर जाते।

कार्टूनिस की पार्टी के कार्यकर्ता कार्टून बनाने पर करते हैं पिटाई

जैसा कि अधिकतर लोग जानते हैं, बाल ठाकरे का ‘सेन्स ऑफ ह्यूमर’ जबरदस्त था और इसका कारण ये भी था कि वो एक कार्टूनिस्ट थे। जनवरी 1926 में मुंबई में उन्होंने ‘फ्री प्रेस जर्नल’ में कार्टून बनाने के साथ अपने करियर की शुरुआत की थी। ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ अख़बार के रविवार संस्करण में भी उनके कार्टून प्रकाशित होते थे। 1960 में अपने भाई के साथ मिल कर उन्होंने ‘मार्मिक’ नामक साप्ताहिक कार्टून पत्रिका की स्थापना की। गरीबी, महँगाई, कॉन्ग्रेस, वामपंथियों और ‘बाहरी’ प्रवासियों – इन सब पर तंज कसते हुए वो कार्टून्स बनाते थे।

वहीं उनकी पार्टी अब क्या करती है? सितंबर 2020 में मुंबई में शिवसेना कार्यकर्ताओं ने सेवानिवृत्त नेवी ऑफिसर मदन शर्मा पर हमला बोल दिया। उनका गुनाह क्या था? उन्होंने शिवसेना सुप्रीमो उद्धव ठाकरे का एक कार्टून सोशल मीडिया पर फॉरवर्ड कर दिया था। शिवसेना के स्थानीय ‘शाखा प्रमुख’ ने पूर्व नेवी अधिकारी को संपर्क किया और उन्हें उनकी बिल्डिंग से नीचे आने को बोला। जैसे ही वो अपनी बिल्डिंग से नीचे उतरे, करीब 8 लोगों ने उन्हें मारना शुरू कर दिया

क्या एक कार्टूनिस्ट द्वारा स्थापित पार्टी इतनी ज्यादा असहिष्णु हो गई है कि उसे अब कार्टूनों से भी दिक्कत होने लगी? कोई व्हाट्सएप्प से उसके नेता का कार्टून किसी को भेज भर दे तो ये उग्र हो जाते हैं। ऊपर से क्या बाल ठाकरे अभी होते तो वो एक पूर्व सैन्य अधिकारी पर इस हमले को बर्दाश्त करते? बाल ठाकरे तो कहते थे कि अगर उन्हें सेना का नियंत्रण मिल गया तो वो देश की सारी समस्याएँ ख़त्म कर देंगे। 86 वर्ष की उम्र में उनका ये बयान बताता है कि इन मामलों में वो कितने कड़े थे। उन्होंने कहा था कि मुस्लिम कट्टरवादियों को वो नहीं बख्शेंगे।

जिस शरद पवार को उन्होंने कहा था ‘नीच मानुष’, बेटे ने उन्हें के आशीर्वाद से बना ली सरकार

शिवसेना-NCP-कॉन्ग्रेस के गठबंधन वाली ‘महा विकास अघाड़ी’ सरकार के ‘सुपर सीएम’ के रूप में शरद पवार का नाम लिया जाता है। ‘राष्ट्रवादी कॉन्ग्रेस पार्टी (NCP)’ के संस्थापक इस सरकार के संकटमोचक भी हैं, जो बिना किसी संवैधानिक पद ने पुलिस-प्रशासन के बड़े से बड़े अधिकारियों को तलब करते हैं और विभिन्न मुद्दों पर कार्रवाई की दिशा तय करते हैं। अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की संदिग्ध मौत और पत्रकार अर्णब गोस्वामी की गिरफ़्तारी के समय उनकी पार्टी के नेता अनिल देशमुख राज्य के गृह मंत्री थे।

अब जब अनिल देशमुख हवालात काट रहे हैं, NCP के ही दिलीप वलसे पाटिल गृह मंत्री हैं। आर्यन खान ड्रग्स मामले में भी उनके ही आवास पर शरद पवार ने पुलिस अधिकारियों की बैठक बुलाई थी। उन्हें इस गठबंधन का शिल्पकार कहा जाता है, जिनकी बदौलत शिवसेना और कॉन्ग्रेस आपस में जुड़े हुए हैं। लेकिन, क्या आपको पता है कि बाल ठाकरे और शरद पवार की कभी नहीं जमी। राजनीति के दाँवपेंच में माहिर जो शरद पवार 2029 विधानसभा चुनाव के बाद विपक्ष में बैठने की बातें कर रहे थे, उन्होंने सरकार भी बना ली।

शरद पवार ने शिवसेना को मजबूर किया कि वह मोदी कैबिनेट के अपने इकलौते मंत्री अरविंद सावंत का इस्तीफा दिलवाए। फिर हिंदुत्व का पहरेदार होने का दंभ भरने वाली पार्टी को अपना रुख नरम करने को मजबूर किया। चर्चा यह भी थी कि सरकार बनाने के लिए शिवसेना मुस्लिमों को आरक्षण देने और वीर सावरकर को भारत रत्न देने की मॉंग से भी पीछे हट गई। सत्ता भोगना साधारण काम नहीं था। बाल ठाकरे क़रीबी सम्बन्ध होने के बावजूद राजनीतिक रूप से पवार से दूरी बना कर ही चलते थे।

उन्होंने साफ़-साफ़ कहा था कि शरद पवार जैसे ‘लुच्चे’ के साथ तो वो कभी नहीं जा सकते। बाल ठाकरे के भाषण सुन कर राजनीतिक में आए छगन भुजबल ने 1990 में शिवसेना तोड़ दी थी। मनोहर जोशी को नेता प्रतिपक्ष बनाए जाने के बाद कॉन्ग्रेस में आए भुजबल को मंत्री बनाया गया था। ठाकरे को लगा कि पवार व्यक्तिगत संबंधों के कारण इस टूट के ख़िलाफ़ होंगे लेकिन पवार ने चुप्पी साध ली। बाल ठाकरे ने इस धोखे को याद रखा। ये वही शरद पवार हैं, जिन्होंने 1978 में वसंतदादा पाटिल की सरकार तोड़ दी और राज्य के सबसे युवा मुख्यमंत्री बने थे। ठाकरे मानते थे कि शरद पवार ने अपने मेंटर यशवंतराव चव्हाण को भी धोखा दिया है।

तभी तो बालासाहब ने शरद पवार से चिढ कर उन्हें ‘नीच मानुष’ करार दिया था। आज छगन भुजबल उन्हीं बाल ठाकरे के बेटे उद्धव की सरकार में मंत्री हैं, जिन्होंने 2000 में गृह मंत्री रहते बाल ठाकरे को गिरफ्तार करवाया था। उन्हें उपभोक्ता एवं उपभोक्ता मामलों का मंत्रालय सौंपा गया है। NCP के ही मंत्री नवाब मलिक पिछले कई सप्ताह से अपने सरकार की फजीहत करा रहे हैं। पहले वो कहते थे बाल ठाकरे के दाऊद से सम्बन्ध हैं। इस सरकार में वही NCP हावी है, जिसके संस्थापक को बाल ठाकरे ने ‘नीच मानुष’ कहा था। उद्धव ठाकरे की मजबूरी है कि सत्ता के लिए उन्हें इन लोगों का साथ और शरद पवार का ‘आशीर्वाद’ चाहिए ही चाहिए।

उस शिवसेना ने ओढ़ लिया सेक्युलरिज्म का चोला, जिसके संस्थापक भगवा वस्त्र पहनते थे

बाल ठाकरे खुलेआम मानते थे कि अयोध्या में बाबरी ढाँचे के विध्वंस में उनका और उनकी पार्टी का हाथ है। भगवा वस्त्र और रुद्राक्ष में उन्होंने कभी अपनी हिन्दू पहचान छिपाई नहीं, उलटा इस पर गर्व किया। कभी संविधान से ‘धर्मनिरपेक्षता (Secularism)’ शब्द हटाने की माँग करने वाले शिवसेना के मुखिया अब सत्ता मिलने के बाद कहते हैं कि ‘संविधान में जो है, सो है।’ जो बाल ठाकरे कहते थे कि सोनिया गाँधी के सामने ‘हिजड़े’ झुकते हैं, आज उनकी ही पार्टी के साथ शिवसेना सरकार में है।

शिवसेना ने जनवरी 2020 में ही ‘फ्री कश्मीर’ का प्लेकार्ड लहराने वाली महिला का समर्थन किया था। इस महिला का बचाव करने के लिए संजय राउत ने कहा था कि केंद्र सरकार ने कश्मीर में कई तरह के प्रतिबंध लगा रखे हैं और इन प्रतिबंधों से मुक्त कराने के भाव से ही वह पोस्टर लहराया गया था। बाल ठाकरे क्या कभी इस चीज को बर्दाश्त करते? पालघर में साधुओं की भीड़ द्वारा हत्या पर क्या बाल ठाकरे चुप बैठते? ये पार्टी पूरी तरह से बाल ठाकरे के आदर्शों के विरुद्ध चल रही है।

आज उद्धव ठाकरे के लिए सत्ता ही सब कुछ है अपने परिवार को मिलने वाले पद ही सब कुछ है। मीडिया को दबाना, सेक्युलरिज्म का समर्थन, कार्टून बनाने पर पूर्व सैन्य अधिकारी की पिटाई, कॉन्ग्रेस-NCP के साथ गठबंधन, साधुओं के हत्या आरोपितों को जमानत, ड्रग्स गिरोह को बचाने की कोशिश, हिंदुत्व का समर्थन करने वालों से लड़ाई, कहीं मस्जिद जलने की झूठी अफवाह पर अपने राज्य को जलने देना – ये सब वो घटनाएँ हैं, जो बताती हैं कि ये अब बाल ठाकरे वाली शिवसेना नहीं रही।

अनुपम कुमार सिंह: चम्पारण से. हमेशा राइट. भारतीय इतिहास, राजनीति और संस्कृति की समझ. बीआईटी मेसरा से कंप्यूटर साइंस में स्नातक.