जो बजरंग दल राम भक्तों की रक्षा के लिए बना, जो इस्लामी कट्टरपंथ से है लड़ता; उस पर कर्नाटक में प्रतिबंध का वादा कॉन्ग्रेस की हिंदू घृणा का एक और नमूना

पीएफआई से बजरंग दल की तुलना के बाद देशभर में काॅन्ग्रेस का हो रहा विरोध (फोटो साभार: यूनाइटेड हिंदू फ्रंट)

कर्नाटक की 224 सदस्यीय विधानसभा (Karnataka Assembly election 2023) के लिए 10 मई 2023 को वोट पड़ने हैं। चुनावों में सत्ताधारी बीजेपी और कॉन्ग्रेस के बीच कड़ी टक्कर बताई जाती है। इस चुनाव में कॉन्ग्रेस ‘मुस्लिम तुष्टिकरण’ वाला कार्ड चलकर ध्रुवीकरण की कोशिशों में लगी है। पहले उसने मुस्लिम आरक्षण (Muslim Reservation) को फिर से बहाल करने का वादा किया। जब घोषणा-पत्र (Congress Manifesto) जारी किया तो उसमें हिंदुवादी संगठन बजरंग दल की तुलना कट्टर इस्लामी संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) से की। बजरंग दल (Bajrang Dal) पर प्रतिबंध लगाने का वादा किया। इतना ही नहीं कुछ महीने पहले पीएफआई ने कर्नाटक में अल्पसंख्यकों के नाम पर जितना फंड माँगा था, घोषणा-पत्र में काॅन्ग्रेस ने उतना ही देने का वादा भी किया है।

पिछले साल ही उन साजिशों का खुलासा हुआ था, जिससे पता चला कि पीएफआई 2047 तक भारत को इस्लामी मुल्क बनाने के मिशन पर काम कर रहा है। इसके लिए वह मुस्लिम युवाओं को ट्रेनिंग दे रहा था। देशभर में हिंसा के मामलों में इस इस्लामी संगठन की संलिप्तता भी सामने आती रही है। केंद्र सरकार अब इस कट्टरपंथी संगठन को प्रतिबंधित कर चुकी है। दूसरी तरफ बजरंग दल ऐसा संगठन है जो इस्लामी कट्टरपंथ के खतरों से लड़ता है। जैसा कि मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान कहते हैं, “बजरंग दल एक राष्ट्रवादी संगठन है। यह संगठन आतंकवाद और लव जिहाद का विरोध करता है। समाज सेवा में विश्वास करता है।”

जाहिर है कि पीएफआई और बजरंग दल की नीति और नीयत में दूर-दूर तक कोई समानता नहीं है। बावजूद कॉन्ग्रेस का बजरंग दल पर प्रतिबंध की बात करना बताता है कि वह पीएफआई पर केंद्र की मोदी सरकार की कार्रवाइयों से खार बैठी है। इसे इस बात से भी समझा जा सकता है कि कर्नाटक में जब कॉन्ग्रेस की सरकार थी तो पीएफआई के 1600 आतंकियों के खिलाफ केस वापस लिए गए थे। तो क्या कर्नाटक चुनाव के बहाने इस्लामी कट्टरपंथियों को कॉन्ग्रेस यह संदेश देने की कोशिश कर रही है कि यदि वह सत्ता में आती है तो वे बेरोकटोक फिर से अपनी गतिविधियों में लग सकते हैं? इसके लिए जरूरी नहीं है कि वे पीएफआई के ही नाम से काम करें। हम पहले भी देख चुके हैं कि कैसे सिमी पर प्रतिबंध के बाद उसी कट्टरपंथी एजेंडे को पीएफआई के रूप में विस्तार मिला। कॉन्ग्रेस की इस छिपी हुई रणनीति के संकेत छत्तीसगढ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के भी ताजा बयान से मिलते हैं। बघेल ने अपने राज्य में भी बजरंग दल पर प्रतिबंध लगाने पर विचार की बात कही है। दिलचस्प यह है कि इस साल के अंत तक छत्तीसगढ़ में भी चुनाव होने हैं।

कब, कैसे, क्यों बना बजरंग दल

विश्व हिंदू परिषद (VHP) ने 1984 में ‘श्रीराम जानकी रथ यात्रा’ शुरू की। राम भक्तों को लगातार धमकियाँ मिल रही थी। लेकिन उस समय की उत्तर प्रदेश सरकार ने सुरक्षा देने से इनकार कर दिया। उस समय प्रदेश में नारायण दत्त तिवारी के नेतृत्व में उसी काॅन्ग्रेस की सरकार थी जो आज प्रतिबंध लगाने की बात कर रही है। ऐसे में रामभक्तों की सुरक्षा के लिए 8 अक्टूबर 1984 को बजरंग दल की स्थापना की गई। हिंदुवादी नेता विनय कटियार इसके संस्थापक संयोजक थे। उसके बाद से रामजन्मभूमि मुक्त आंदोलन में इस संगठन ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

बजरंग दल पर पहले भी प्रतिबंध लगा चुकी है कॉन्ग्रेस

6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में विवादित ढाँचा ध्वस्त हो गया। उसके बाद केंद्र की तत्कालीन काॅन्ग्रेस सरकार ने बजरंग दल पर प्रतिबंध लगा दिया। एक साल बाद प्रतिबंध हटा लिया गया। सवाल है कि यदि काॅन्ग्रेस के लिए पीएफआई की कट्टरता और बजरंग दल की हिंदुवादिता एक जैसी ही है तो उसने पहले ऐसी नौबत क्यों आने दी जो इस संगठन की नींव पड़ी? जब उसने बजरंग दल पर प्रतिबंध लगाया तो फिर उसे एक ही साल में क्यों हटाया? जाहिर है कि बजरंग दल बस एक बहाना है। काॅन्ग्रेस का असली मकसद इस बहाने से हिंदुओं को नीचा दिखाना और इस्लामी कट्टरपंथियों को तुष्ट करना है।

बजरंग दल का मौजूदा संगठन

बजरंग दल की वेबसाइट बताती है कि 1993 में ही उसका सांगठनिक विस्तार हो चुका था। सभी राज्यों में उसकी ईकाई बन गई थी। आज भी यह संगठन देश भर में सक्रिय है। देश भर के 13 लाख युवा संगठन से जुड़े बताए जाते हैं। धार्मिक स्थानों की सुरक्षा, गौरक्षा के लिए संगठन काम कर रही है। घुसपैठ, लव जिहाद, लैंड जिहाद जैसी चुनौतियों से लड़ रही है। भूकंप, दुर्घटना जैसी प्राकृतिक आपदाओं में उसके कार्यकर्ताओं को राहत एवं बचाव कार्यों में भी शामिल देखा जा सकता है। इसके अलावा भी संगठन कई सामाजिक कार्यों को आगे बढ़ा रही है।

काॅन्ग्रेस की वही पुरानी नफरत

यह काॅन्ग्रेस की तुष्टिकरण ही जिसने सिमी और पीएफआई जैसे इस्लामी कट्टरपंथी संगठनों को भारत में फलने-फूलने की जगह दी। यह काॅन्ग्रेस की तुष्टिकरण ही है जिसने हिंदू, उनके धार्मिक स्थानों, उनके हितों की रक्षा के लिए बजरंग दल जैसे संगठनों की आवश्यकता को पैदा किया। यह काॅन्ग्रेस की तुष्टिकरण ही है जो वह कभी राम को तो कभी बजरंग बली को अपमानित कर हिंदुओं को नीचा दिखाने का काम करती है। यह जगजाहिर है कि अयोध्या में राम मंदिर के राह में काॅन्ग्रेस ने कितनी अड़चनें पैदा की। यहाँ तक कि नेहरू रामलला को ही बेघर करने पर अमादा थे। ऐसे समय में जब अयोध्या में भव्य राम मंदिर का स्वरुप आकार ले रहा है तो काॅन्ग्रेस बजरंग दल को निशाने पर लेकर अपनी तुष्टिकरण का प्रदर्शन कर रही है।

राम मंदिर का निर्माण रोकने में विफल रही काॅन्ग्रेस अब हिंदुओं से वह सुरक्षा कवच छीनना चाहती है जो राम भक्तों की, उनके धार्मिक स्थलों की सुरक्षा के लिए बनी है। इसलिए जरूरी है कि केवल कर्नाटक ही नहीं देश के हर कोने में ‘काॅन्ग्रेस मुक्त भारत’ की भावना और बलवती हो ताकि फिर कोई पीएफआई भारत राष्ट्र के धर्मांतरण की साजिश न रच सके।

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