Tuesday, April 23, 2024
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1600 PFI दंगाइयों पर से केस वापस लेने वाली कॉन्ग्रेस अब ‘बजरंग दल’ के पीछे पड़ी: वोटों के लिए किया था राष्ट्रीय सुरक्षा से खिलवाड़, SDPI से भी हुई थी ‘डील’

जहाँ तक KFD की बात है, मैसूर में सांप्रदायिक दंगों से लेकर IISC बेंगलुरु में गोलीबारी जैसी घटनाओं तक में इसका नाम सामने आया। मैसूर के एक कॉलेज में 2 छात्रों की हत्या का सीधा आरोप इसी संगठन पर लगा।

देश की सुरक्षा से खिलवाड़ करना कॉन्ग्रेस पार्टी के लिए कोई नई बात नहीं है। मुस्लिम तुष्टिकरण तो तभी से चला आ रहा है जब से पार्टी का जन्म हुआ था। PFI जिस तरह से फैला-फूला, उसमें कॉन्ग्रेस पार्टी का भी बड़ा योगदान है। मोदी सरकार ने बड़ी तैयारी के साथ ‘पॉपुलर फ्रंट ऑफ़ इंडिया’ को बैन किया। इसने 2047 तक भारत को इस्लामी मुल्क बनाने की साजिश के साथ हथियारों के प्रशिक्षण से लेकर विदेशी फंडिंग जुटाने तक के प्रयास तेज कर दिए थे।

अब कॉन्ग्रेस पार्टी अपने घोषणापत्र में ‘बजरंग दल’ की तुलना PFI से करते हुए इसे प्रतिबंधित करने का वादा कर रही है। ‘बजरंग दल’ का नाम आज तक न तो किसी देश विरोधी गतिविधि में आया है और न ही राष्ट्रीय सुरक्षा के खिलाफ जाकर इसने कुछ किया है। संगठन हिन्दुओं को सुरक्षा देने का कार्य करता है। पीड़ित हिन्दुओं की आवाज़ उठाता है। ऐसे में बजरंग बली की जन्मभूमि पर ‘बजरंग दल’ को बैन करने का वादा करना कॉन्ग्रेस की हिन्दू विरोधी मानसिकता को बताता है।

ये वही कॉन्ग्रेस पार्टी है, जिसने केंद्र में सत्ता में रहते लिंगायत समाज को अलग धर्म की मान्यता देने का प्रयास कर के हिन्दू धर्म को तोड़ने की कोशिश की थी। लिंगायत समाज भगवान शिव की पूजा करता है। कॉन्ग्रेस पार्टी का हमेशा से प्रयास रहा है कि हिन्दुओं को कमजोर किया जाए और मुस्लिम तुष्टिकरण कर के अपने पक्ष में हिन्दू विरोधी वोटों का ध्रुवीकरण किया जाए। लेकिन, लोग अब पार्टी के इस प्रयास को समझ गए हैं और यही कारण है कि जनता ने कई राज्यों की सत्ता से उसे उखाड़ फेंका।

1600 PFI सदस्यों के खिलाफ केस वापस लिया था कॉन्ग्रेस सरकार ने

कर्नाटक में मई 2013 से मई 2018 तक सिद्धारमैया मुख्यमंत्री रहे और कॉन्ग्रेस सत्ता में रही। इसके बाद भी अगले 1 वर्ष तक JDS के एचडी कुमारस्वामी मुख्यमंत्री रहे और कॉन्ग्रेस सत्ताधारी गठबंधन का हिस्सा रही। इन 6 वर्षों में PFI को पनपने के बड़ा अवसर दिया गया। इसका सबसे बड़ा उदाहरण समझने के लिए हमें चलना होगा जून 2015 में। तब सिद्धारमैया की सरकार ने 1600 PFI आतंकियों के खिलाफ सारे केस वापस लेने का निर्णय लिया था।

सोचिए, ये कितना खतरनाक निर्णय था। एक ऐसा संगठन जिसके दर्जनों ठिकानों पर NIA की छापेमारी में हथियार और देश विरोधी साहित्य से लेकर विदेशी फंडिंग के सबूत तक मिले, उसके सदस्यों के साथ इतनी नरमी? ये अदूरदर्शिता का नहीं, बल्कि जानबूझ तक तुष्टिकरण और वोटों के लिए देश की सुरक्षा से खेलने का मामला था। आज इस संगठन की तुलना ‘बजरंग दल’ से कर के कॉन्ग्रेस विपक्ष में बैठ कर भी यही काम कर रही है।

PFI के अलावा ‘कर्नाटक फोरम फॉर डिग्निटी (KFD)’ के सदस्यों पर से भी केस वापस लिए गए थे। ये दोनों ही संगठन SIMI से निकले थे, जिसका गठन उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में अप्रैल 1977 में हुआ था। ये एक आतंकी संगठन था, जिसके लोगों ने बाद में ‘इंडियन मुजाहिद्दीन’ बनाया। जयपुर, इलाहाबाद, दिल्ली, पुणे, पटना और बोधगया से लेकर हैदराबाद तक बम विस्फोटों में इस संगठन का नाम सामने आया। SIMI के लोग ही बैन के बाद PFI का हिस्सा बन गए।

जहाँ तक KFD की बात है, मैसूर में सांप्रदायिक दंगों से लेकर IISC बेंगलुरु में गोलीबारी जैसी घटनाओं तक में इसका नाम सामने आया। मैसूर के एक कॉलेज में 2 छात्रों की हत्या का सीधा आरोप इसी संगठन पर लगा। ये सब सिद्धारमैया की सरकार बनने से पहले की घटनाएँ हैं, अर्थात सब कुछ जानबूझ कर किया गया। तब कर्नाटक के कानून मंत्री रहे TB जयचंद्र ने केस वापस लेने के फैसले का बचाव करते हुए कहा था कि ये शांतिपूर्ण लोग हैं जो सिर्फ विरोध प्रदर्शन के लिए जमा हुआ थे, लेकिन इनका नाम चार्जशीट में डाल दिया गया।

बिना किसी जाँच के उन्होंने ऐलान कर दिया कि वो भीड़ का हिस्सा थे और हिंसा में उनका कोई हाथ नहीं था। तब भाजपा ने 1600 PFI कार्यकर्ताओं पर से 175 मामले वापस लेने के फैसले का विरोध करते हुए कहा था कि देश की सुरक्षा की कीमत पर ये सब किया जा रहा है। पार्टी ने आरोप लगाया था कि इन संगठनों को लेकर जो आरोप हैं, उन्हें नज़रअंदाज़ किया जा रहा है जिससे राज्य में सांप्रदायिक तनाव और बढ़ेगा। इन पर कोई साधारण आरोप नहीं थे, बल्कि मैसूर और शिवमोगा सहित कई इलाकों में दंगे के आरोप थे।

अक्टूबर 2022 में भाजपा ने फिर से जनता को इस फैसले की याद दिलाने के लिए अभियान शुरू किया था, जिसमें बताया गया था कि तत्कालीन DGP और कानून विभाग के सचिव की राय के विरुद्ध जाकर कॉन्ग्रेस की सरकार ने ये निर्णय लिया था। कॉन्ग्रेस महासचिव किसी वेणुगोपाल ने बयान दिया था कि PFI को बैन करने का कोई सवाल ही नहीं उठता। कॉन्ग्रेस विधायक तनवीर सैत द्वारा सरकार को लिखे पत्र में केस वापस लेने की माँग की गई थी, जिसके बाद ये निर्णय हुआ।

PFI के साथ ‘डील’, जिहादी मानसिकता से समाज को बचाने वाले ‘बजरंग दल’ से दिक्कत: कॉन्ग्रेसी मानसिकता

इतना ही नहीं, कॉन्ग्रेस ने कई सीटों पर PFI और इसके छात्र संगठन SDPI के साथ एक गुप्त डील भी की थी, जिसके तहत 2018 के विधानसभा चुनाव में इन्होंने कॉन्ग्रेस के खिलाफ अपने उम्मीदवार नहीं उतारे थे। केरल और तमिलनाडु के मुकाबले PFI कर्नाटक में तेजी से पाँव पसार रहा था और इसने हिन्दू धर्म के बड़े चेहरों की हत्या के लिए हिटलिस्ट भी बना ली थी। RSS नेता इनका निशाना थे। पुत्तुर में एक पूरा का पूरा कम्युनिटी हॉल हथियारों का गोदाम बना दिया गया था, जिसे NIA ने सीज भी किया था।

जो कॉन्ग्रेस पार्टी कल तक PFI के साथ डील करती थी और उसके सदस्यों को कानून से बचाती थी, आज वही ‘बजरंग दल’ को बदनाम करने के लिए PFI के साथ उसका नाम जोड़ रही है। VHP ने इसे पार्टी की जिहादी मानसिकता करार दिया है। राहुल गाँधी कह चुके हैं कि 2008 में मुंबई को दहलाने वाले आतंकियों से ज्यादा हिन्दू संगठन खतरनाक हैं। उनकी पार्टी के नेता दिग्विजय सिंह ने मुंबई हमले को RSS की साजिश करार दिया था।

इससे ही पता चल जाता है कि कॉन्ग्रेस किस कदर हिन्दू विरोधी मानसिकता में डूब चुकी है। ‘गजवा-ए-हिन्द’ बनाने वालों की तुलना उनसे की जा रही है जो इस्लामी कट्टरपंथी विचारधारा से समाज को सुरक्षित रखने के कार्य में लगे हुए हैं। PFI 17 राज्यों में फ़ैल गया, इसके श्रेय कॉन्ग्रेसी मानसिकता को जाता है। ‘बजरंग दल’ को बिना सबूत आतंकी संगठन बताने वाली कॉन्ग्रेस को तथ्यों के साथ बात करनी चाहिए। या फिर, ये बार-बार ऐसी हरकतों से ये जताती रहे कि ये राहुल गाँधी की पार्टी है।

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अनुपम कुमार सिंह
अनुपम कुमार सिंहhttp://anupamkrsin.wordpress.com
चम्पारण से. हमेशा राइट. भारतीय इतिहास, राजनीति और संस्कृति की समझ. बीआईटी मेसरा से कंप्यूटर साइंस में स्नातक.

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