शाहीन बाग़ में लंगर, ‘किसान आंदोलन’ में हिंसा: जिसके खिलाफ भड़काया, उसने ही सिखों को तालिबान से बचा कर निकाला

अफगानिस्तान से गुरु ग्रन्थ साहिब की 3 प्रतियाँ वापस लाई गईं

दिल्ली की सीमाओं पर चल रहे ‘किसान आंदोलन’ को लगभग एक साल होने को ही हैं। जिस तरह से पंजाब में किसानों को मोदी सरकार के खिलाफ भड़काया गया, वो सबने देखा। पंजाब के इन किसानों में अधिकांश सिख ही हैं। उन्हें भड़का कर दिल्ली लाया गया और फिर हिंसा हुई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को खुले मंच से ‘इंदिरा गाँधी वाला हश्र’ करने की धमकी दी गई। जनहित के एक कानून को रोकने के लिए मजहब का सहारा लिया गया।

लेकिन, केंद्र सरकार लगातार लोगों को ये समझाने में लगी रही कि तीनों कृषि कानून किसानों के फायदे के लिए हैं, उनके लिए पूरे देश का बाजार खोलने के लिए। उधर सिखों को भड़का कर लाल किले पर हिंसा करवाई गई, ‘किसान आंदोलन’ में तलवार चलाने की घटनाएँ आम हो गईं और दिल्ली पुलिस को इससे निपटने के लिए विशेष तैयारियाँ करनी पड़ीं। इधर, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरु तेग बहादुर के 400वें प्रकाश पर्व पर शीशगंज गुरुद्वारे में दर्शन किया

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अक्सर ‘मन की बात’ से लेकर अन्य कार्यक्रमों में सिखों की बातें करते रहे हैं और गुरु नानक देव की शिक्षाओं की याद दिलाते रहे हैं। योगराज सिंह जैसों ने खुले मंच से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को गालियाँ तक बकीं, लेकिन केंद्र सरकार ने हमेशा नरमदिली से किसानों से बात की और उनकी बातें सुनीं। उधर 2022 के पंजाब विधानसभा चुनाव के लिए माहौल तैयार करने के लिए विपक्षी दल सिखों के गुस्से का फायदा उठाते रहे।

आज अफगानिस्तान में हालात चिंताजनक हैं। अफगानिस्तान में सिख सुरक्षित नहीं हैं। 18वीं शताब्दी के मध्य में एक ऐसा समय था जब सिख साम्राज्य मुगलों से आज़ाद हो चुका था और अफगान का दुर्रानी साम्राज्य नादिर शाह के पर्शियन से। तब दोनों के बीच खूब टकराव हुआ था। अहमद शाह दुर्रानी ने लाहौर पर कब्ज़ा किया और अमृतसर की तरफ बढ़ा। इस दौरान कई सिखों का उसने कत्लेआम मचाया।

हालाँकि, सिखों ने भी इसके बाद अहमद शाह दुर्रानी के बेटे तैमूर दुर्रानी और लाहौर में उसके शासक जहाँ खान को हरा कर अपनी ताकत दिखाई। कहने का अर्थ ये है कि इस्लामी कट्टरवादी कभी भी सिखों के खून के ही प्यासे रहे हैं। पाकिस्तान में सिख लड़कियों का अपहरण कर के उनका धर्मांतरण कर दिया जाता है। पाकिस्तान के नानकाना साहिब गुरुद्वारे को घेर कर हमला हुआ था। कश्मीर में सिख लड़कियों के ‘लव जिहाद’ के मामले आए।

इन सबके बीच सिखों के ठेकेदार क्या कर रहे थे? वो भारत सरकार के एक ऐसे कानून का विरोध कर रहे थे, जिससे पाकिस्तान व अफगानिस्तान से प्रताड़ित होकर आए सिखों को भारत की नागरिकता व अधिकार मिलें। आज भले ‘दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमिटी’ के अध्यक्ष मनजिंदर सिंह सिरसा नागरिकता संशोधन कानून (CAA) का कटऑफ डेट बढ़ाने की माँग कर रहे हों, लेकिन उनकी ही पार्टी CAA में मुस्लिमों को घुसाने की माँग करती रही है।

कुछ यही हाल पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टेन अमरिंदर सिंह का भी है। हाल ही में उन्होंने अफगानिस्तान में फँसे सिखों को वहाँ से बचा कर लाए जाने की गुहार मोदी सरकार से लगाई। लेकिन पहले? जनवरी 2020 में पंजाब के मुख्यमंत्री ने कहा था कि वो केरल सरकार की तर्ज पर CAA के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाएँगे। इतना ही नहीं, केरल के बाद पंजाब की विधानसभा ही थी जिसने CAA के खिलाफ प्रस्ताव पारित किया था। इस कानून को ‘विभाजनकारी’ और ‘स्वच्छ लोकतंत्र के खिलाफ’ बताया गया था।

कॉन्ग्रेस का हाल इससे जुदा नहीं है। कॉन्ग्रेस नेता जयवीर शेरगिल ने खुद को ‘सिख समुदाय का एक जिम्मेदार भारतीय नागरिक’ बताते हुए मोदी सरकार से गुहार लगाई कि वो अफगानिस्तान में फँसे सिखों को बचाए, लेकिन इसी तरह का एक पत्र वो अपनी पार्टी की अध्यक्ष सोनिया गाँधी व राहुल गाँधी को लिखने की हिम्मत नहीं जुटा पाए कि वो CAA का विरोध न करें। जयवीर के भीतर का सिख तब नहीं जागा, जब भारत सरकार CAA लेकर आई थी। 

ये तो अकाली दल, पंजाब सरकार और कॉन्ग्रेस जैसे दलों का हाल है। अब बात करते हैं उस ‘लंगर’ की, जिसके माध्यम से मुस्लिम-सिख एकता की बड़ी-बड़ी बातें की थीं। कई ऐसे सिख थे, जो शाहीन बाग़ के प्रदर्शनकारियों को लंगर खिला रहे थे। ‘हमारी लड़ाई ज़िंदाबाद, हमारी एकता ज़िंदाबाद’ लिख कर शाहीन बाग़ की बूढ़ी दादी और एक पगड़ी वाले सिख के पोस्टर लगाए गए थे। यानी, सिखों के लिए बने कानून के खिलाफ प्रदर्शन करने वालों को कुछ सिखों ने ही लंगर खिलाए।

इसी क्रम में एक एडवोकेट डीएस बिंद्रा का नाम सामने आया, जिसके बारे में खूब प्रचारित किया गया कि शाहीन बाग़ के प्रदर्शनकारियों की मदद के लिए उसने अपना घर ही बेच डाला। दिल्ली दंगों में कॉन्स्टेबल रतन लाल की हत्या में इस व्यक्ति का नाम सामने आया था। वो असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM का दिल्ली महासचिव था। इसमें ही ‘सिख-मुस्लिम एकता’ की चाशनी डाल कर सिखों को मोदी सरकार के खिलाफ खड़ा करने की कोशिश हुई थी।

आज मोदी सरकार ने अफगानिस्तान में फँसे सभी सिखों को भारत लाने में सफलता पाई है। इसके लिए भारतीय वायुसेना व एयर इंडिया ने मिल कर अभियान चलाया। वहाँ के एक सिख सांसद नरेंदर सिंह खालसा को भी अपनी सारी संपत्ति छोड़ कर भारत आना पड़ा। उन्होंने पीएम मोदी को धन्यवाद दिया। यहाँ तक कि पवित्र गुरु ग्रन्थ साहिब की 3 प्रतियाँ भी भारत सरकार ने ससम्मान भारत मँगाई। केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने इसे नई दिल्ली में रिसीव किया।

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अंत में, अफगानिस्तान में सिखों का इतिहास भी जान लीजिए। ये पहली बार नहीं है, जब अफगानिस्तान से सिखों को भागना पड़ा हो। कोई आधिकारिक आँकड़ा तो मौजूद नहीं है, लेकिन 45 वर्ष पहले अफगानिस्तान में सिखों की संख्या 50,000 के आसपास थी। 2016 तक मुल्क में सिर्फ 363 सिख परिवार बचे थे। अकेले 2015 में 150 सिख परिवारों को अफगानिस्तान छोड़ना पड़ा था। 1989-96 के सिविल वॉर और 1996-2001 के तालिबानी शासन में बड़ी संख्या में सिखों को भागना पड़ा।

पंजाब में विधानसभा चुनाव आने वाले हैं। कॉन्ग्रेस के नवजोत सिंह सिद्धू प्रदेश अध्यक्ष बने हैं, जिनके सलाहकार पाकिस्तान के खिलाफ न बोलने की सलाह देते हैं। खुद सिद्धू करतारपुर व इस्लामाबाद में इमरान खान की जी-हुजूरी में मशगूल दिख चुके हैं। सिखों के ठेकेदारों को भले अफगानिस्तान के हालात देख कर CAA की याद आई हो, इससे पता चलता है कि मोदी सरकार हमेशा पड़ोसी इस्लामी मुल्कों में अल्पसंख्यकों की मदद के लिए गंभीर है।

अनुपम कुमार सिंह: चम्पारण से. हमेशा राइट. भारतीय इतिहास, राजनीति और संस्कृति की समझ. बीआईटी मेसरा से कंप्यूटर साइंस में स्नातक.