राजीव गाँधी जन्मदिन विशेष: घोटाले, नरसंहार, भ्रष्टाचार और सेना की चीज पर मौज-मस्ती… लंबी है लिस्ट

राजीव गाँधी (चित्र साभार : पत्रिका)

पिछले कुछ सालों में राहुल गाँधी और अब उनकी बहन प्रियंका गाँधी वाड्रा भी केंद्र सरकार पर हर प्रकार के घोटालों के आरोप लगाते नजर आए हैं। इसके लिए उन्होंने कभी द हिन्दू अखबार की फर्जी कतरनों का सहारा लिया तो कभी चुनावी रैलियों में मनगढ़ंत आँकड़ों के जरिए एक ही झूठ को कई बार दोहरा कर यह साबित करने का प्रयास किया कि राहुल गाँधी के पिता राजीव के कार्यकाल और उसी तरह UPA के दागदार राजनीतिक सफर की तरह ही नरेंद्र मोदी सरकार में भी घोटाले हुए हैं।

इस कड़ी में राहुल गाँधी और उनकी बहन को कभी सुप्रीम कोर्ट से लताड़ लगी तो कभी उन्हें पीएम मोदी के खिलाफ इन खुले झूठों को बेचने की कीमत आम चुनावों में भारी हार के साथ चुकानी पड़ी।

अगस्त 20, 1944 को, आज ही के दिन पैदा हुए राजीव गाँधी देश के सबसे कम उम्र के प्रधानमंत्री बने थे। राजीव गाँधी की उम्र तब महज 40 साल थी और भारत के प्रधानमंत्री पद पर अक्टूबर 31, 1984 से दिसंबर 01, 1989 तक आसीन रहे।

राजीव गाँधी के राजनीतिक जीवन कई प्रकार से दागदार रहा, इसमें सबसे बड़ी वजह एक बोफोर्स घोटाला और भोपाल गैस त्रासदी से लेकर कश्मीरी पंडितों का पलायन है। इसके साथ ही कोरोना काल में राजीव गाँधी फाउंडेशन के अंतर्गत किए गए घोटाले दिवंगत पूर्व प्रधानमंत्री और भारत रत्न राजीव गाँधी के करियर में एक और अध्याय जोड़ते हैं।

राजीव गाँधी का प्रधानमंत्री रहते घोटालों और विवादों से निरंतर ही करीबी सम्बन्ध रहा। इन पर एक नजर डालते हैं –

कश्मीरी पंडितों का पलायन

केंद्र में राजीव गाँधी की सरकार के दौरान ही जेकेएलएफ के आतंकियों ने कश्मीरी हिंदूओं पर हमले शुरू कर दिए थे। जगमोहन की तैनाती राज्यपाल के तौर पर जनवरी 19, 1990 को हुई। लेकिन इससे पहले और जगमोहन के शुरूआती दिनों में हालात काबू से बाहर आ चुके थे।

सितंबर 14, 1989 को पंडित टीकालाल टपलू की हत्या कर दी गई जो कि कश्मीर घाटी के प्रमुख राष्ट्रवादी नेता थे। आतंकियों ने सबसे पहले उन्हें निशाना बनाकर अपने इरादे साफ कर दिए थे। इस हत्या के मात्र सात सप्ताह बाद ही जस्टिस नीलकंठ गंजू की हत्या कर दी गई थी।

घाटी में गवर्नर का शासन मार्च, 1986 में दूसरी बार तब लागू किया गया था, जब कॉन्ग्रेस ने गुलाम मोहम्मद शाह से समर्थन वापस ले लिया था। उस दौरान फारूक-राजीव समझौते पर काम चल रहा था और इस पर मुहर लगने और हस्ताक्षर होने के बाद फारूक मुख्यमंत्री पद पर आसीन हो गए।

1987 का विधानसभा चुनाव, नेशनल कॉन्फ्रेंस और कॉन्ग्रेस द्वारा संयुक्त रूप से लड़ा गया। कश्मीर के इतिहास में खुले धाँधली के आरोपों के साथ सबसे बड़ी धोखाधड़ी के रूप में इसे याद रखा गया। यही वो समय था, जब उग्रवाद के साथ कश्मीर का रिश्ता गहरा होता चला गया। 1987 के इस ‘फारूक-राजीव एकॉर्ड’ के बाद कश्मीर हमेशा के लिए बारूद के ढेर पर बैठ गया और कश्मीरी पंडितों का नारकीय जीवन शुरू हो गया।

बोफोर्स घोटाला

एक चुनावी रैली के दौरान उत्तर प्रदेश के बस्ती में पीएम मोदी ने कहा था, ”आपके पिताजी को आपके राग दरबारियों ने मिस्टर क्लीन बना दिया था। गाजे-बाजे के साथ मिस्टर क्लीन… मिस्टर क्लीन चला था। लेकिन देखते ही देखते भ्रष्टाचारी नंबर वन के रूप में उनका जीवनकाल समाप्त हो गया।”

पीएम मोदी का इशारा राहुल गाँधी के पिता राजीव गाँधी और उनके बोफोर्स घोटालों में सम्बन्ध की ओर ही था। इस घोटाले ने 1980 और 1990 के दशक में गाँधी परिवार और ख़ासकर तब प्रधानमंत्री रहे राजीव गाँधी की छवि को गहरा धक्का पहुँचाया था।

बोफोर्स का जिन्न राजीव गाँधी की मौत के कई साल बाद भी उनका पीछा नहीं छोड़ता। इस घोटाले में आरोप थे कि स्वीडन की तोप बनाने वाली कंपनी बोफ़ोर्स ने कमीशन के बतौर 64 करोड़ रुपए राजीव गाँधी समेत कई कॉन्ग्रेस नेताओं को दिए थे, ताकि वो भारतीय सेना को अपनी 155 एमएम हॉविट्ज़र तोपें बेच सकें।

बाद में राजीव गाँधी की पत्नी सोनिया गाँधी पर भी बोफ़ोर्स तोप सौदे के मामले में आरोप लगे थे, जब इस सौदे में बिचौलिया बने इटली के कारोबारी और गाँधी परिवार के क़रीबी ओतावियो क्वात्रोची का नाम सामने आया तो वह अर्जेंटिना भाग गया।

यूपीए सरकार के दौरान साल 2009 की शुरुआत तक भारत को आपराधिक मामलों में ओतावियो क्वात्रोची की तलाश थी, लेकिन अप्रैल 28, 2009 को सीबीआई ने क्वोत्रोची को क्लीनचिट देते हुए इंटरपोल से उस पर जारी रेडकॉर्नर नोटिस को हटा लेने की अपील की। सीबीआई की अपील पर इंटरपोल ने क्वात्रोची पर से रेडकॉर्नर हटा लिया गया। तब भाजपा ने क्वोत्रोची को क्लीनचिट देने के पीछे कॉन्ग्रेस का हाथ बताया था। 2013 में मिलान में उसकी मौत की खबरें सामने आईं थीं।

भोपाल गैस त्रासदी: 25 हजार लोगों के कातिल को बचाने वाले राजीव

भोपाल गैस त्रासदी कोई भारतीय शायद ही भूल सकता है। हजारों लोगों की मौत के जिम्मेदार एंडरसन को राजीव गाँधी ने 25 हजार रुपए के पर्सनल बॉन्ड पर भारत से बाहर भेज दिया था। भोपाल गैस त्रासदी हुई, उसके एक महीने पहले ही राजीव गाँधी प्रधानमंत्री बने थे।

2-3 दिसंबर, 1984 को भोपाल में यूनियन कार्बाइड की कंपनी से जानलेवा गैस लीक होने से हजारों लोगों की मौत हो गई थी। बताया जाता है कि 8000 लोगों की मौत इस त्रासदी के महज 2 हफ़्ते के भीतर ही हो गई थी।

अब तक अनुमान है कि तकरीबन 25,000 लोगों की इस गैस संबंधी बीमारी से मौत हो चुकी है। जबकि, हजारों लोग आज भी पीड़ित हैं। इस कंपनी के मालिक वॉरेन एंडरसन को तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गाँधी और उनकी सरकार ने सरकारी प्लेन में बैठाकर सुरक्षित भोपाल से दिल्ली पहुँचाया, जहाँ से उसे अमेरिका जाने दिया गया।

इस त्रासदी पर मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह पर कन्हैयालाल नंदन ने ‘मोहे कहाँ विश्राम’ नामक पुस्तक लिखी थी, जिसमें कहा गया कि राजीव गाँधी के मौखिक आदेश के बाद अर्जुन सिंह ने वॉरेन को भोपाल से जाने दिया था। भगौड़े एंडरसन को भारत सरकार कभी दुबारा भारत वापस ला पाने में नाकामयाब रही और 92 साल की उम्र में सितंबर 29, 2014 को अमेरिका के फ्लोरिडा में एंडरसन की मौत हो गई।

राजीव ने ठहराया था सिखों के नरसंहार को जायज

भारत में सबसे बड़े दंगे (नरसंहार ही था वो) को सरकारी छूट देने का आरोप राजीव गाँधी पर ही है। अक्टूबर 31, 1984 को इंदिरा गाँधी की हत्या के अगले दिन से ही दिल्ली और देश के दूसरे कुछ हिस्सों में भयानक सिख विरोधी दंगे भड़क उठे।

नवंबर 19, 1984 को इंदिरा गाँधी के उत्तराधिकारी उनके पुत्र राजीव गाँधी ने बोट क्लब में इकट्ठा हुए लोगों की भीड़ के सामने सिखों के क़त्ल को जायज ठहराते हुए बयान दिया था, “जब इंदिरा जी की हत्या हुई थी़, तो हमारे देश में कुछ दंगे-फ़साद हुए थे। हमें मालूम है कि भारत की जनता को कितना क्रोध आया, कितना ग़ुस्सा आया और कुछ दिन के लिए लोगों को लगा कि भारत हिल रहा है। जब भी कोई बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती थोड़ी हिलती है।”

राजीव गाँधी ने इन दंगों का शिकार हुए हज़ारों सिखों पर कोई टिपण्णी ना करते हुए उनके घावों को कुरेदने वाला यह बयान दिया था जो आज तक भी गाँधी परिवार की प्राथमिकताओं को बेनकाब करने के लिए काफी है।

‘सरकार 1 रुपया भेजती है, लोगों तक 15 पैसे पहुँचते हैं’

भ्रष्टाचार और घोटालों पर राजीव गाँधी के विचार क्या थे, इस बात का अंदाजा उनके इसी बयान से लगाया जा सकता है कि उन्हें इस बात से भी कोई ख़ास समस्या नहीं थी कि यदि केंद्र द्वारा 1 रुपया भेजा जाता है तो आम आदमी तक 15 पैसे ही पहुँच पाते हैं।

यह वर्ष 1985 की बात है, जब तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गाँधी सूखा प्रभावित ओडिशा के कालाहाँडी जिले में दौरे पर थे। यहाँ उन्होंने भ्रष्टाचार पर बात करते हुए कहा था कि सरकार जब भी 1 रुपया खर्च करती है तो लोगों तक 15 पैसे ही पहुँच पाते हैं। भ्रष्टाचार से निपटने में असमर्थता जताते हुए राजीव ने अपने उस भाषण में कहा था कि देश में बहुत भ्रष्टाचार है, जिसे दिल्ली से बैठकर दूर नहीं किया जा सकता।

राजीव गाँधी फाउंडेशन घोटाला

राजीव गाँधी का घोटालों के साथ रिश्ता उनकी मौत के इतने वर्ष बाद भी जीवित नजर आता है। ऐसे समय में जब देश कोरोना वायरस की महामारी से जूझ रहा था और भारतीय सेना लद्दाख क्षेत्र में चीन की सेना के साथ संघर्षरत थी, राजीव गाँधी फाउंडेशन द्वारा किए गए घोटाले चर्चा का विषय बन गए। ख़ास बात यह रही कि यह घोटाला तब उजागर हुआ, जब गाँधी परिवार के माँ-बेटा और बेटी की नजर PM CARES फंड पर टिकी हुई थी।

राजीव गाँधी फाउंडेशन पर चीन की कम्युनिस्ट सरकार से फंड लेकर चीन के पक्ष में लॉबिग करने का मामला भी सामने आया है। इसके अलावा, प्रधानमंत्री राहत कोष फंड (PMNRF) को राजीव गाँधी फाउंडेशन में ट्रांसफर करने भी खुलासा भी हुआ। साथ ही पता चला कि UPA के दौरान कई मंत्रालयों और सार्वजनिक उपक्रमों की ओर से भी राजीव गाँधी फाउंडेशन में पैसे ट्रांसफर किए गए। इन सभी खुलासों के बाद गृह मंत्रालय ने एक कमिटी का गठन किया है।

राजीव गाँधी के करियर में तमाम घोटालों के अलावा दंगे और सबसे अहम शाहबानो प्रकरण शामिल हैं। जब सात सालों की कठिन कानूनी लड़ाई सुप्रीम कोर्ट से जीतने के बाद संप्रदाय विशेष का विरोध इस कदर बढ़ा कि तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गाँधी ने एक कानून मुस्लिम महिला अधिनियम 1986 पास करवा दिया था।

इस कानून के चलते शाहबानो के पक्ष में आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले को भी पलट दिया गया। यहाँ से खुले तौर पर मुस्लिम तुष्टिकरण की शुरूआत हुई थी और आज ये हाल हैं कि राहुल गाँधी और उनकी कॉन्ग्रेस आज खुद को कट्टर हिन्दू साबित करने का हर सम्भव प्रयास कर रही है।

इन सबसे हटकर उस किस्से को तो शायद ही कभी यह देश भूल सकेगा, जब राजीव गाँधी ने भारत की सुरक्षा में तैनात आईएनएस विराट को अपने परिवार और इटली के ससुरालवालों की मौज मस्ती में लगा दिया था। समुद्र के बीचों-बीच 10 दिन तक मौज काटी थी। यह इस बात का बहुत छोटा सा सबूत था कि गाँधी परिवार इस देश की हर सम्पदा पर अपना पहला हक़ समझता आया था। यह सब तब घटित हो रहा था, जब दरबारी मीडिया, दरबारी विचारक और दरबारी इतिहासकार इन्हीं राजीव गाँधी को इक्कीसवीं सदी का वास्तुकार साबित करने के हर प्रयास कर रहे थे।

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