साक्षरता और शिक्षा के बीच का फ़र्क़ भूल ‘सबसे बड़े दलित नेता’ ने BJP के वोटरों को कहा अशिक्षित

कॉन्ग्रेस नेता उदित राज बयानवीर हैं

भाजपा से कॉन्ग्रेस में गए नार्थ-वेस्ट दिल्ली के सांसद उदित राज ने नया राग छेड़ा है। भाजपा द्वारा उनका टिकट काटने के पीछे का एक कारण यह भी था कि वह ग़लतबयानी को लेकर मशहूर हो चुके थे। अपने ही पार्टी के बड़े नेता योगी आदित्यनाथ पर निशाना साधने से लेकर भाजपा के विरोध में आयोजित रैली का हिस्सा बनने तक, ख़ुद को देश का सबसे बड़ा दलित नेता बताने वाले उदित राज को भाजपा ने भाव देना बंद कर दिया और अंततः उन्हें पार्टी छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा। उदित राज के जाने से भाजपा को कोई नुकसान नहीं हुआ क्योंकि शायद ही किसी क्षेत्र में उनका जनाधार हो। लेकिन हाँ, इससे कॉन्ग्रेस को सिद्धू के अलावा एक नया बयानवीर ज़रूर मिल गया। उदित राज ने अब फिर से बिना सिर-पैर वाली बात की है।

उन्होंने ट्विटर पर लिखा कि केरल में भाजपा आज तक एक भी सीट इसीलिए नहीं जीत पाई क्योंकि वहाँ के लोग अंधभक्त न होकर शिक्षित हैं। ऐसे अजीबोग़रीब कारण देने के साथ ही उदित राज ने यह भी साबित कर दिया कि उन्हें साक्षरता (Literacy) और शिक्षा (Education) के बीच का कोई अंतर पता नहीं है। अर्थात, किसे शिक्षित कहा जाता है और किसे साक्षर, इस बारे में उन्हें कुछ नहीं पता। सबसे पहले उन्हें इन दोनों का अर्थ समझना चाहिए, उसके बाद हम उनके इस बिना सिर-पैर वाले बयान के दूसरे पहलुओं की चर्चा करेंगे। असल में राजनीति में लगभग अप्रासंगिक हो चुके उदित राज ने राजनाथ सिंह से भाजपा का टिकट पाने के लिए पैरवी भी की थी लेकिन वो असफल रहे। अगर जेएनयू से पढ़ कर ऐसे बयान देना शिक्षित होने की पहचान है तो उदित राज जैसी शिक्षा किसी को न मिले।

https://twitter.com/Dr_Uditraj/status/1130400682345811968?ref_src=twsrc%5Etfw

उदित राज अब शिक्षित हो गए हैं। फरवरी 2014 से लेकर अप्रैल 2019 तक वह अशिक्षित थे। जी हाँ, आपने बिलकुल सही सुना। शिक्षा की उदित राज वाली परिभाषा के अनुसार वे अब कॉन्ग्रेस में जाकर शिक्षित हुए हैं। अगर भाजपा को वोट भर देने वाला व्यक्ति अशिक्षित है तो फिर भाजपा में पाँच वर्ष रह कर मलाई चाँपने वाले को क्या कहा जाए? क्या उदित राज अपनी परिभाषा में ख़ुद को फिट करते हुए स्वयं को सबसे बड़ा मूर्ख, अज्ञानी और अशिक्षित समझते हैं? साक्षरता दर को शिक्षा और शिक्षित से जोड़ कर कन्फ्यूजन के पुजारी बन चुके उदित राज का ये ट्वीट उनके बड़बोलेपन के सिवा और कुछ नहीं।

साक्षर होने का अर्थ होता है लिखने एवं पढ़ने की क्षमता होना। अर्थात, अगर मैं अपनी भाषा में लिखने और पढ़ने की क्षमता रखता हूँ, तो मैं साक्षर कहलाऊँगा। वहीं दूसरी तरफ़ शिक्षित होने का अर्थ है कि किसी व्यक्ति के पास कौन-सा स्किल है और उसने किस कक्षा या कोर्स की पढ़ाई कहाँ तक की है। इसका मतलब यह हुआ कि हर शिक्षित व्यक्ति साक्षर होता है लेकिन ज़रूरी नहीं है कि प्रत्येक साक्षर व्यक्ति शिक्षित हो ही हो। केरल साक्षरता के मामले में पूरे भारत में पहले स्थान पर आता है, शिक्षा के मामले में नहीं। उच्च शिक्षा के मामले में केरल टॉप पर नहीं आता।

अगर उच्च शिक्षा में ग्रॉस एनरोलमेन्ट रेश्यो (Gross Enrollment Ratio) की बात करें तो तमिलनाडु पूरे देश में नंबर एक पर आता है। इसके बाद दिल्ली और चंडीगढ़ का स्थान आता है। दिल्ली में अभी लोकसभा की सातों सीटों पर भाजपा काबिज़ है, यहाँ भाजपा की सरकार भी रही है और चंडीगढ़ में भी भाजपा की सांसद हैं। लेकिन, क्या किसी पार्टी के जीतने या न जीतने का यही पैमाना होता है क्या? अगर उदित राज की ही परिभाषा चुनें तो हम कह सकते हैं कि उच्च शिक्षा प्राप्त लोग भाजपा को पसंद करते हैं। लेकिन नहीं, ये परिभाषा ही ग़लत है। अगर साक्षरता की भी बात करें तो केरल के बाद टॉप पाँच में आने वाले राज्य जैसे कि गोवा और त्रिपुरा में भाजपा की सरकार है। शीर्ष पाँच में एक अन्य राज्य मिजोरम में राजग की सरकार है।

केरल की साक्षरता को भाजपा द्वारा वहाँ विफल रहने को जोड़ने उदित राज की राजनीतिक नासमझी के साथ-साथ साक्षरता और शिक्षा के बीच अंतर न समझ पाने की क्षमता का भी परिचायक है। दिल्ली में तो लोगों ने भाजपा के टिकट पर उन्हें जीत दिलाई, इसका अर्थ उन्हें वोट करने वाली जनता शिक्षित नहीं थी क्या? उदित राज ने यह नहीं लिखा कि केरल के लोग ज्यादा शिक्षित हैं और न ही ये लिखा कि वहाँ साक्षरता दर ज्यादा है, उन्होंने लिखा कि ‘केरल के लोग शिक्षित हैं’। तो क्या उनका इशारा यह था कि बाकी भारत के लोग अशिक्षित हैं? अगर भाजपा को वोट करने वाले अशिक्षित हैं तो पूरे भारत की जनता ही उनकी नज़र में अशिक्षित हो गई?

भारत में एक बड़ी आबादी अभी भी साक्षरता से दूर है, शिक्षा से दूर है, उच्च शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाती है। ख़ुद को दलित नेता बताने वाले उदित राज को उनका मज़ाक नहीं उड़ाना चाहिए। इसमें एक बड़ी संख्या दलितों की है। अगर वह ख़ुद को सबसे बड़ा दलित नेता मानते हैं तो उनके भले के लिए, उनके लिए चल रही योजनाओं के लिए आवाज़ उठानी चाहिए। अशिक्षा को भाजपा व किसी पार्टी से जोड़ने से पहले उन्हें जानना चाहिए कि व्यक्ति शिक्षित हो या अशिक्षित, उसे अपनी समझ के आधार पर किसी भी पार्टी को वोट देने का अधिकार है। हो सकता है कि किसी निरक्षर या व्यक्ति को बरगला लिया जाए लेकिन ऐसी भी कोई रिसर्च सामने नहीं आई है जहाँ ये लिखा हो कि साक्षर व्यक्ति पैसे लेकर वोट नहीं करता।

साक्षरता से पढ़ने और लिखने की क्षमता आती है, शिक्षा से समझ आती है। आज उदित राज भले ही अशिक्षा को भाजपा से जोड़ रहे हों लेकिन ऐसे भी लोग हैं जिन्होंने आतंकवाद और नक्सलवाद को भी अशिक्षा से जोड़ा है। जब उन्हें दुनिया भर के शीर्ष आतंकियों की डिग्रियों और अकादमिक रिकॉर्ड्स के बारे में बताया जाता है तो उनकी घिग्घी बंध जाती है। अगर उच्च शिक्षा प्राप्त व्यक्ति भी आतंक का रुख कर सकता है तो क्या ये कहना सही है कि अशिक्षा के कारण आतंकवाद फ़ैल रहा है। ठीक इसी तरह, अगर कोई मतदाता भाजपा को वोट देता है तो वह शिक्षित है या अशिक्षित, इस बात का पता कैसे लगाया जा सकता है?

अगर केरल में साक्षरता दर सबसे ज्यादा है तो खूँखार वैश्विक आतंकी संगठन आईएसआईएस से जुडी गतिविधियाँ भी इसी राज्य में सबसे ज्यादा देखी जा रही हैं। अगर केरल की साक्षरता दर सबसे ज्यादा है तो भारत में आईएसआईएस में शामिल होने वालों की संख्या भी इसी राज्य से सबसे ज्यादा है। 2016 में राज्य के 21 लोग आतंकी बन गए थे, जिनमें से 5 आईएस के लिए लड़ते हुए मारे गए। क्या साक्षरता दर से इन समस्याओं का समाधान हो जाता है? क्या भाजपा को वोट देने या न देने से इसका कोई सम्बन्ध है?

अनुपम कुमार सिंह: चम्पारण से. हमेशा राइट. भारतीय इतिहास, राजनीति और संस्कृति की समझ. बीआईटी मेसरा से कंप्यूटर साइंस में स्नातक.