ख्वाब ‘दुल्हा’ बनने के, विपक्ष की बारात से ‘फूफा’ बन निकले नीतीश कुमार: BJP को दगा दिया, फिर भी ‘INDIA’ ने न नाम पर सुना – न बेंगलुरु में दिया भाव

नीतीश कुमार को लगता है कि विपक्षी बैठक में कॉन्ग्रेस उनका सारा क्रेडिट खा गई, इसीलिए हैं नाराज़? (फोटो: बेंगलुरु की बैठक में सोनिया गाँधी से मिलते CM नीतीश)

विपक्षी नेताओं ने कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु में मंगलवार (18 जुलाई, 2023) को बैठक कर अपने नए गठबंधन का नाम ‘INDIA’ रखा। विपक्षी नेताओं ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर बड़ी-बड़ी बातें की और ‘लोकतंत्र की हत्या’ का आरोप लगाते हुए अगली विपक्षी बैठक मुंबई में होने की बात कही। इसी बीच खबर आई कि नीतीश कुमार नाराज़ हो गए हैं। इन अटकलों को हवा तब मिली जब नीतीश कुमार बिना प्रेस कॉन्फ्रेंस अटेंड किए ही पटना के लिए निकल गए।

प्रेस कॉन्फ्रेंस में लालू यादव और तेजस्वी यादव भी नहीं दिखाई दिए। राजद ने ‘INDIA’ को लेकर जो ट्वीट किया था, उसे भी डिलीट कर लिया। इसके बाद चर्चा चलने लगी कि आखिर नीतीश कुमार और लालू यादव किस बात से नाराज हैं? सबसे पहली बात तो ये छन कर सामने आई कि गठबंधन का नया नाम रखने को लेकर नीतीश कुमार की सलाह को दरकिनार कर दिया गया। वो नहीं चाहते थे कि ‘INDIA’ इस गठबंधन का नाम हो, वो हिंदी में कुछ नाम रखना चाहते थे।

ANI ने भी अपने सूत्रों के हवाले से कहा है कि नीतीश कुमार ने अंत में जब अन्य नेताओं को उनकी सलाह को दरकिनार करते हुए देखा तो कह दिया कि ठीक है, अगर आपलोगों की यही इच्छा है तो कोई दिक्कत नहीं। लेकिन, सबको पता है कि नीतीश कुमार जैसे नेता के लिए ये एक ‘अपमानजनक’ बात हो गई। नीतीश कुमार 2005 से ही बिहार की सत्ता पर काबिज हैं और 2025 के विधानसभा चुनाव तक सत्ता में उनके 2 दशक हो जाएँगे। उससे पहले वो केंद्र सरकार में मंत्री थे।

आपको ये तो याद ही होगा कि नीतीश कुमार पिछले 11 महीनों से विपक्षी गठबंधन बनाने के लिए पहल कर रहे थे और इसके लिए उन्होंने दिल्ली से लेकर लखनऊ, भुवनेश्वर और चेन्नई तक का दौरा किया था। उन्होंने 11 महीने तक दौरा कर-कर के माहौल बनाया, लेकिन अंत में उन्हें ही किनारे कर दिया गया। पटना में विपक्ष की जो पहली बैठक हुई थी, उसकी मेजबानी भी नीतीश कुमार ने ही की थी। साथ ही उसमें विपक्षी नेता काफी हँसी-ख़ुशी वाले माहौल में मिलते हुए दिखे थे।

लेकिन, बेंगलुरु में हुई दूसरी बैठक में ये नजारा नहीं दिखा। यहाँ प्रेस कॉन्फ्रेंस में भी अधिकतर नेता मुँह बनाए हुए दिखे। ऊपर से नीतीश कुमार की गैर-मौजूदगी ने सबका ध्यान खींचा। गठबंधन के नाम में सहमति न होने वाली तो एक बात है, दूसरी और सबसे बड़ी बात ये है कि विपक्षी गठबंधन का संयोजक कौन होगा, इस पर कोई एकमत नहीं बन पाया। नीतीश कुमार की इच्छा थी कि वो संयोजक बनाए जाएँ, लेकिन इसके लिए सभी दल राजी नहीं हुए।

बताया जाता है कि अंत में भारत के 4 अलग-अलग हिस्सों का प्रतिनिधित्व करते हुए 4 संयोजक बनाए जाने की चर्चा चली, लेकिन छोटे विपक्षी दलों ने इस पर भी ऐतराज जताया। अंत में घोषणा कर दी गई कि 11 सदस्यों की एक समिति बनेगी जो ‘कॉमन मिनिमम प्रोग्राम’ का ड्राफ्ट तैयार करेगी और साथ ही संयोजक के नाम का ऐलान भी मुंबई की बैठक में किया जाएगा। साफ़ है, ‘संयोजक’ बनने के लिए ही नीतीश कुमार ‘नाराज फूफा’ बन कर मुँह फुलाए हुए हैं।

भाजपा विधायक हरिभूषण ठाकुर का इस संबंध में बयान देखिए। उनका कहना है कि कॉन्ग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गाँधी ने नीतीश कुमार की सारी मेहनत को कॉन्ग्रेस पार्टी के खाते में डाल दिया। जिस तरह से बेंगलुरु में KC वेणुगोपाल सक्रिय दिखे और कॉन्ग्रेस नेताओं की मौजूदगी बड़े पैमाने पर रही, उससे साफ़ है कि नीतीश कुमार को ऐसा लग रहा है कि उनके हिस्से का एटेंशन किसी को मिल रहा है। नीतीश कुमार की बेचैनी के और भी कारण हैं।

उन्हें पता है कि वो मुख्यमंत्री हैं और पुराने नेता हैं, लेकिन ये सच्चाई भी उन्हें मन ही मन पता ही है कि बिहार में उनकी पार्टी तीसरे नंबर की है और सांसदों या विधायकों की संख्या गिनी जाए तो उनका कोई खास महत्व नहीं बनता। हालाँकि, उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ माहौल बनाने की कोशिश पूरी की। गठबंधन तोड़ कर फिर से राजद के साथ जा मिलने के बाद से ही वो लगातार उप-मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के साथ मिल कर राज्य-राज्य घूमते रहे।

कुछ नेताओं ने कहा है कि नीतीश कुमार की फ्लाइट का समय हो गया था, इसीलिए वो चले गए थे। इस पर भी सवाल उठ सकते हैं कि ये नेता तो चार्टर्ड प्लेन से बेंगलुरु गए थे, फिर कैसा शेड्यूल? चार्टर्ड प्लेन का शेड्यूल तो फिर से तय किया जा सकता है। क्या ऐसे नेताओं के लिए पैसा कोई समस्या है? बिलकुल नहीं। चार्टर्ड प्लेन भी हो तो ये दिन भर में 20 बार टिकट बुक कर सकते हैं। इसीलिए, कॉन्ग्रेस पार्टी का ये बयान बिलकुल ही बचकाना लगता है कि नीतीश कुमार की फ्लाइट का समय हो गया था।

नीतीश कुमार की नाराजगी का तीसरा कारण – बेंगलुरु में ‘The Unstable Prime Ministerial Candidate’ बताते हुए उनके नामों के साथ पोस्टर लगाए गए। साथ ही इन पोस्टरों में बिहार में ध्वस्त हुए पुलों के बारे में भी बताया गया। बता दें कि बिहार में हाल ही में सुल्तानगंज और सहरसा समेत कई इलाकों में पुल ध्वस्त हुए हैं। कॉन्ग्रेस की सरकार के रहते इस तरह के पोस्टर्स का लग्न नीतीश कुमार को रास नहीं आया।

अब राजद और जदयू के नेता डैमेज कंट्रोल में जुटे हुए हैं। जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह ने नीतीश कुमार को विपक्षी एकता का सूत्रधार बताते हुए कह दिया कि जिस व्यक्ति ने सबको साथ लाया हो वो नाराज़ नहीं हो सकता। उन्होंने ‘INDIA’ नाम के पीछे भी सबकी सहमति होने की बात कही। इसी तरह राजद प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी ने विपक्षी बैठक की सफलता की बात करते हुए कहा कि भाजपा 2024 में साफ़ हो जाएगी। इन पार्टियों के नेता लगातार साबित करने में लगे हुए हैं कि कोई मनमुटाव नहीं है।

यहाँ सवाल ये भी उठता है कि नीतीश कुमार के साथ-साथ लालू यादव और तेजस्वी यादव भी बैठक से क्यों चले गए? असल में लालू यादव की भी यही इच्छा है कि विपक्षी एकता गठबंधन का संयोजक नीतीश कुमार को बनाया जाए। वो चाहते हैं कि इसके बाद नीतीश कुमार CM की कुर्सी तेजस्वी यादव को दे दें। अपने बेटे के लिए मुख्यमंत्री की कुर्सी सुनिश्चित करने में ही लालू का सारा ध्यान है। खुद नीतीश कुमार भी तेजस्वी को भविष्य बता चुके हैं।

अंत में सवाल ये भी उठ सकता है कि क्या नीतीश कुमार ‘संयोजक’ का पद पाने और विपक्षी बैठकों में अटेंशन के लिए इस तरह की पैंतरेबाजी कर रहे हैं? ऐसे नेताओं द्वारा इस तरह के तिकड़म आजमाए जाते हैं, ताकि उनकी महत्ता बनी रहे। इससे मीडिया में चर्चा मिलती है और मनाने की कोशिशें की जाती हैं बाकियों द्वारा। अब नीतीश कुमार को भी मनाने की कोशिश की जाएगी। हो सकता है वो गठबंधन के पक्ष में कोई बयान भी दे दें, लेकिन देखना ये है कि उनकी नाराजगी रहती है या वो संयोजक बनाए जाते हैं।

अनुपम कुमार सिंह: चम्पारण से. हमेशा राइट. भारतीय इतिहास, राजनीति और संस्कृति की समझ. बीआईटी मेसरा से कंप्यूटर साइंस में स्नातक.