12वीं की 2 बच्चियों के साथ यौन उत्पीड़न, दोनों ने की आत्महत्या: सुरक्षा बिना शिक्षा कब तक?

बे​टियाँ सुरक्षित होंगी, तभी शिक्षित होंगी

हिंदू शास्त्रों में छोटी कन्याओं और नारी को देवी का स्थान दिया गया है और उन्हें पूजनीय बताया गया है। ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमन्ते तत्र देवता: अर्थात् जिस स्थान पर नारी की पूजा होती है, वहाँ देवता भी निवास करते हैं।’ वेद नारी को अत्यंत महत्वपूर्ण, गरिमामय, उच्च स्थान प्रदान करते हैं। ऐसे में जब हम शिक्षा के मंदिर में बेटियों के अस्मत के साथ खिलवाड़ की खबरें सुनते हैं तो उस संकीर्ण मानसिकता से घिन होने लगती है, जो इस कुकृत्य को अंजाम देता है।

वर्तमान में ‘बे​टियाँ शिक्षित होंगी तभी समाज शिक्षित होगा’, यही सोचकर शहरों और ग्रामीण इलाकों में रहने वाले माता-पिता अपनी बेटियों को स्कूल भेजते हैं, ताकि वे अपने बेहतर भविष्य का निर्माण सकें। लेकिन, अभिभावक इस बात से बिल्कुल अनजान होते हैं कि वे जिस जगह को सबसे सुरक्षित मानकर अपनी बेटियों को भेज रहे हैं, वही जगह उनके लिए सबसे असुरक्षित साबित होगी। जिस गुरु के पास वह अपनी बेटी को शिक्षा लेने के लिए भेज रहे हैं, वही उनकी बेटी के सम्मान के साथ खिलवाड़ करेगा।

स्कूलों में बेटियों की अस्मत से लगातार खिलवाड़ हो रहा है। तमिलनाडु में पिछले एक हफ्ते में दो छात्राओं ने आत्महत्या की है। कोयंबटूर में 17 साल की एक लड़की ने अपने ही स्कूल के शिक्षक मिथुन चक्रवर्ती पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाते हुए आत्महत्या कर ली थी। वहीं, तमिलनाडु के ही करूर में 12वीं कक्षा की छात्रा ने 19 नवंबर की शाम को स्कूल से घर लौटते ही अपनी विधवा माँ की अनुपस्थिति में फाँसी लगाकर आत्महत्या कर ली थी। उसने भी यौन उत्पीड़न के चलते यह कदम उठाया था।

इन बच्चियों का डर ही था, जिसकी वजह से वह अपने साथ हो रहे दुर्व्यवहार को सहती रहीं। मानसिक रूप से परेशान होने के बावजूद वह इस बारे में अपने माता-पिता से कुछ भी कहने की हिम्मत नहीं जुटा पाईं। उन्हीं की तरह ऐसी और भी लडकियाँ हैं, जो अपने साथ होने वाले यौन उत्पीड़न को छिपाती हैं और डरती हैं कि अगर उन्होंने अपने परिजन से इस बारे में बात की तो वे उन्हें स्कूल भेजना बंद कर देंगे। कुछ तो बेहद तनाव में रहती हैं। उन्हें लगता है कि अगर इस बारे में स्कूल के अधिकारियों से शिकायत की तो उन्हें कहीं और ज्यादा परेशान ना किया जाने लगे।

स्कूल में यौन उत्पीड़न का शिकार होने पर लड़कियाँ डर के कारण आत्महत्या जैसा कदम उठाने को मजबूर हो जाती हैं। उस दौरान वे भूल जाती हैं कि उनके भी कुछ सपने हैं, जिन्हें वह साकार करना चाहती हैं। वे जीना चाहती हैं, समाज में एक मुकाम हासिल करना चा​हती हैं। देश की तरक्की में कुछ योगदान देना चाहती हैं। ऐसे में ना चाहते हुए भी वो मौत को गले लगाने को मजबूर हो जाती हैं, क्योंकि उन्हें उस समय केवल और केवल इस समस्या का एकमात्र समाधान यही नजर आता है।

हम महसूस कर सकते हैं कि उस समय उनके दिलो-दिमाग में क्या चल रहा होगा, जिसकी वजह से उन्होंने अपने परिवार, अपने चाहने वालों को छोड़ने का फैसला लिया होगा। यह बेहद शर्मनाक है कि कथित शिक्षित लोग जो मासूम बच्चियों को ऐसा करने के लिए मजबूर करते हैं, वे इस समाज में खुलकर और बिना किसी भय के साँस लेते हैं। उन्हें अपने किए पर तनिक भी पछतावा नहीं होता है। ऐसे लोगों को कड़ी से कड़ी सजा देनी चाहिए। इन दोषियों के अलावा माता-पिता भी अपनी बच्चियों की मौत के उतने ही जिम्मेदार हैं, जो उन्हें स्कूल भेजकर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर लेते हैं।

उन्हें स्कूल में जाकर सभी अध्यापकों, महिला शिक्षकों और प्रिंसिपल से बेटियों से जुड़ी हर एक गतिविधि के बारे में पता करना चाहिए। उनके साथ अभिभावक की बजाए एक साथी की तरह पेश आना चाहिए, ताकि वो आपको कुछ भी बताने से डरे नहीं। यदि समय रहते ये बच्चियाँ अपने साथ होने वाले यौन शोषण के बारे में अपने माता-पिता को बता देतीं तो शायद ही उन्हें आत्महत्या जैसा कदम उठाना पड़ता।