आपस में लड़ते-कटते शिया, सुन्नी, अहमदिया… आखिर कौन है सच्चा मुस्लिम? रब भी न जानें!

आखिर कौन है 'सच्चा मुस्लिम', किसके पास है जवाब!

कट्टरपंथियों द्वारा कमलेश की नृशंस हत्या कर देने के बाद से ही समुदाय विशेष में हिंदुत्व के खिलाफ उमड़ रही नफरत पर से ध्यान भटकाने की कोशिशें आजकल ज़ोरों पर है। इन्ही सब के बीच चल रही सुगबुगाहट में से एक यह भी है कि आखिर ‘सच्चा मुस्लिम कौन है?’

ट्विटर पर शाहिद सिद्दीकी नामक व्यक्ति द्वारा की गई टिप्पणी बेहद आपत्तिजनक मालूम होती है। शाहिद का किया हुआ ट्वीट कई धाराओं में बँटे हुए मुस्लिमों से ज्यादा गैर-मुस्लिमों पर निशाना साधने के इरादे से किया गया है।

https://twitter.com/shahid_siddiqui/status/1185734220976574465?ref_src=twsrc%5Etfw

समस्या और भी गंभीर तब हो जाती है जब पता चलता है कि यह तथ्य इस्लाम की अंदरूनी कलह का द्योतक है। इसीलिए, जहाँ एक ही पंथ में एकता की एक झलक भी दिखाई नहीं देती, वहाँ मुस्लिमों के लिए यह सवाल उभरता है कि वे किसे सिद्धान्तवादी मुस्लिम कहेंगे और किसे नहीं?

जैसे कि सुन्नी, शिया समुदाय को सच्चा मुस्लिम नहीं मानते। ठीक उसी तरह शिया भी सुन्नियों को सच्चा मुस्लिम नहीं मानते। मगर शिया और सुन्नी समुदाय के बीच चलने वाले विवाद की जड़ें दरअसल मध्य-पूर्व से जुड़ी हुई हैं। सालों या दशकों नहीं बल्कि सदियों से लड़ा जा रहा ‘शांतिप्रिय समुदाय’ का यह अंदरूनी युद्ध कभी ख़त्म नहीं होता और न ही इसके ख़त्म होने के आसार दिखाई पड़ते हैं।

कई आपसी मतभेदों के बावजूद ये दोनों ‘अहमदिया’को सच्चा मुस्लिम नहीं मानते। बता दें कि मुस्लिमों की अहमदिया प्रजाति पाकिस्तान में पूरी तरह प्रतिबंधित है। उन्हें अपने पंथ का प्रदर्शन करना तक मना है और अगर वे ऐसा करते हैं तो उन्हें भारी उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है। इसी तरह एक प्रजाति ‘उइगर’ है, इन्हें भी ‘सच्चे मुस्लिम’ होने की श्रेणी से बाहर रखा जाता है क्योंकि उइगर मुस्लिमों की पूरी प्रजाति सभी चीन के आगे नतमस्तक है।

इसके बाद बारी आती है ISIS (इस्लामिक स्टेट फॉर इराक एंड सीरिया) की, जो एक आतंकवादी संगठन है। मुस्लिमों की इस प्रजाति का यह मानना है कि जो लोग इनका समर्थन नहीं करते, वह सच्चे मुस्लिम नहीं हो सकते। इस मजहब का यह वह भाग है जिसे अपने खिलाफ के लोगों का खून बहाने पर कोई मलाल नहीं होता। हालाँकि ऐसी प्रवृत्ति वाला यह कोई इकलौता आतंकी संगठन नहीं है।

तत्पश्चात आते हैं शाहिद सिद्दीकी जो अपने आप में एक अलग प्रजाति कहे जा सकते हैं। इनका मानना है कि हर कट्टरपंथ का समर्थन करने वाला हर व्यक्ति मुस्लिम नहीं हो सकता। वे कहते हैं कि आतंकी संगठनों के सबसे बड़े खैर-ख्वाह गैर मुस्लिम हैं। ऐसे संगठनों को मुस्लिमों से ज्यादा समर्थन वह सम्प्रदाय देते हैं जो गैर मुस्लिम हैं।

लोगों के बीच बड़ा भ्रम जिसे खूब फैलाया गया है वह यह है कि गैर-मुस्लिमों के क़त्ल के लिए उनसे ज्यादा ज़िम्मेदार और कोई नहीं है। इसमें कट्टरपंथी इस्लामिक आतंकवादी संगठनों को दोष देना ठीक नहीं। वे यह मानने से भी इनकार करते हैं कि आतंकवादियों और उनके प्रति सहानुभूति रखने वाले लोगों की नजर में मारे गए मुस्लिम ‘सच्चे मुस्लिम’ नहीं हैं। ऐसे लोग इस तथ्य का ध्यान नहीं रखते कि कट्टरपंथी इस्लामिक आतंकवादी ‘सच्चा मुस्लिम’ शब्द पर एकाधिकार रखते हैं। जैसा दावा उनका खुद का भी है।

यह संगठन तीन आवश्यक तर्कों के आधार पर दुनिया भर में मुस्लिमों की हत्या को सही ठहराते हैं। इनमें पहला तर्क यह है कि मार दिए गए मुस्लिम आतंकवादियों के लिए ‘सच्चे मुस्लिम’ नहीं होते। उनका पक्ष लेने वाले ‘काफिर’ होते हैं। दूसरा, कि अगर किसी ‘सच्चे मुस्लिम’ की हत्या हो भी जाए तो अल्लाह के लिए लड़ी जाने वाली इस जंग में उसे भला कौन टाल सकता है। यही वजह है कि जिहादियों की मौत को भी किसी बड़ी क्षति के तौर पर नहीं देखते।

वहीं आतंकवादियों के मुताबिक उनका तीसरा आवश्यक तर्क यह है कि अगर कोई मुस्लिम जिहाद के लिए अपनी जान देता है उसे उसके किए का इनाम जन्नत में मिलता है। इसीलिए शाहिद जैसे घिनौनी सोच वाले लोग इस्लामिक आतंकवादियों द्वारा मारे गए मुस्लिमों तक को जायज़ ठहरा देते हैं।

‘सच्चा मुस्लिम’ शब्द इस्लामी जगत में पहले ही बहुत खून-खराबा करवा चुका है। इसीलिए यह भी कहना ठीक नहीं होगा कि इस पर सिर्फ शाहिद जैसे मुस्लिम ही एकाधिकार रखते हैं। इसीलिए जब कोई गैर-मुस्लिम इनके ‘सच्चा मुस्लिम’ वाले दावे को इनके आधिकारिक आँकड़े के बावजूद ख़ारिज कर देता है तो उसकी वजह कट्टरता नहीं है।

शाहिद सिद्दीकी जैसे लोग अगर वास्तव में मानवता की भलाई के लिए कोई योगदान देना चाहते हैं तो उन्हें वहाबी कट्टरता का खुला समर्थन करने से ज्यादा यह देखना चाहिए कि वे इस प्रकार की बातें मुस्लिमों के बीच पहुँचाएँ, जिससे मुस्लिमों में फैली आतंकवाद की भयंकर बीमारी पर काबू करने की ओर विचार किया जा सके।

शाहिद सिद्दकी जैसे भारत में बैठे लोग घृणा फैला रहे हैं क्योंकि इस्लाम और उसको मानने वाले यहाँ-वहाँ बिखरे पंथ ‘सच्चा मुस्लिम’ शब्द की परिभाषा को जीने के पीछे लगे हैं। इसमें कोई दो राय नहीं कि विभिन्न मत और पंथ में बिखरे मज़हब इस्लाम के इतिहास की जड़ें खून में सनी हुई हैं।

K Bhattacharjee: Black Coffee Enthusiast. Post Graduate in Psychology. Bengali.