लोकसभा निर्वाचनों के अंतिम दौर में हर दल बेशक अपनी सारी ताकत झोंक देगा और कोई पार्टी किसी भी पैंतरे से पीछे नहीं रहेगी, पर बंगाल के हाल जितने बदतर हो रहे हैं, वहाँ की एक अलग ही दास्ताँ है। जहाँ जम्मू-कश्मीर जैसे आतंकवादियों से भरे पड़े प्रांत में मोटा-मोटी शांतिपूर्ण मतदान हो गया, वहीं बंगाल ने इस बार हिंसा और हत्या की हर हद को पार कर दिया है। पैंतीस साल के कॉमरेड राज में बने भय के सारे रिकॉर्ड ममता बनर्जी के 8 साल के (कु)शासन में टूटते दिख ही रहे थे। ऊपर से निर्वाचन प्रक्रिया ने ममता के जंगल राज पर मुहर लगा दी है, सो अलग। आलम यह है कि बंगाल में महज 9 सीटों पर मतदान के लिए 700 से ज्यादा कम्पनियाँ केंद्रीय सुरक्षा बलों की तैनाती होगी।
हिंसा का (ज्यादा पुराना नहीं) इतिहास
बंगाल में निर्वाचन के नाम पर हिंसा का जो नंगा-नाच हो रहा है, उसकी भयावहता का ठीक-ठाक अंदाजा शायद हमारे न्यूज़ रूम से या आपके ड्रॉइंग रूम में बैठकर नहीं लगाया जा सकता। कानून व्यवस्था लगभग ध्वस्त है, और ममता बनर्जी का सम्प्रदाय विशेष का तुष्टिकरण और तृणमूल कॉन्ग्रेस के गुंडों को खुली छूट देना राज्य को चक्की के दो पाटों में पीस रहा है।
ममता बनर्जी का फोटोशॉप कार्टून बनाने पर युवती की गिरफ़्तारी और श्रीराम के जयघोष पर गिरफ़्तारी तो आपके जेहन में ताज़ा ही होंगे। साथ ही याद दिला दें कि इसी लोकसभा के निर्वाचन के बीच में बंगाल में भाजपा कार्यकर्ता पर बम मारा गया है, निर्वाचन आयोग द्वारा तैनात अधिकारी दिनदहाड़े लापता हो गए, और आयोग के विशेष पर्यवेक्षक का कहना है कि बंगाल 15 साल पहले का बिहार बनता जा रहा है जहाँ जंगलराज चलता था।