दिशोम गुरु के बेटे ‘सरकार’ और ‘भगवान’ के परिजन बदहाल: बिरसा मुंडा के अपनों को साफ पानी भी नसीब नहीं

सब्जी बेच रही बिरसा मुंडा की परपोती (साभार: दैनिक भास्कर)

उनका संघर्ष जल, जंगल, जमीन का था। आदिवासियों के बीच वे ‘भगवान’ की तरह पूजे जाते हैं। उनका नाम लेकर राजनीति करने वाले झारखंड के ‘दिशोम गुरु’ बन गए। मुख्यमंत्री बने। केंद्र में मंत्री रहे। आज उसी दिशोम गुरु शिबू सोरेन के बेटे हेमंत सोरेन झारखंड के मुख्यमंत्री हैं। लेकिन, लगता है भगवान बिरस मुंडा का नाम लेकर अपनी राजनीति चमकाने वाले उनको भूल चुके हैं।

9 जून 2021 को उनकी 121वीं पुण्यतिथि थी। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने श्रद्धांजलि की रस्म अदायगी भी पूरी की। उनके कार्यालय ने बकायदा ट्वीट कर इसकी जानकारी भी दी है। इसमें कहा गया है, “धरती आबा ने समाज में बीमारियों को लेकर फैले अंधविश्वास को मिटाने का काम किया था। आज उनसे प्रेरणा लेकर हमें कोरोना को दूर भगाना है।” लेकिन आप बिरसा मुंडा के परिजनों का हाल जान चौंक जाएँगे। उनकी पड़पोती स्कॉलरशिप के लिए जद्दोजहद कर रही है। पड़पोता 12 साल से प्रमोशन के इंतजार में है।

https://twitter.com/JharkhandCMO/status/1402530159056416771?ref_src=twsrc%5Etfw

लिहाजा इस ट्वीट के बाद हेमंत सोरेन जनता के निशाने पर आ गए। उनसे पूछा गया कि आखिर झारखंड का गौरव जिनके नाम से है, उनका परिवार इतना बदहाल क्यों है।

https://twitter.com/MeenaRamesh91/status/1402531284568580097?ref_src=twsrc%5Etfw

इसको लेकर बिरसा मुंडा की परपोती ने सीएम को खुला पत्र भी लिखा। दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के अनुसार, इस पत्र में लिखा है:

“मैं जौनी कुमारी मुंडा। भगवान बिरसा मुंडा की वंशज। मैं अभी बिरसा कॉलेज खूँटी में बीए पार्ट-3 की छात्रा हूँ। जब शिक्षक बिरसा के आंदोलन के बारे में पढ़ाते हैं, तो गर्व होता है। लेकिन, मैं किसी को नहीं बताती कि मैं भगवान बिरसा की पड़पोती हूँ। क्योंकि लोग हमारी स्थिति देखकर निराश हो जाएँगे। सुनती हूँ कि आदिवासी छात्राओं को पढ़ाई के लिए छात्रवृत्ति का लाभ मिलता है। मैंने कई बार आवेदन दिए, लेकिन कभी नहीं मिली।

मेरे पिता सुखराम मुंडा 82 की उम्र में भी खेतों पर मेहनत करते हैं। 1,000 रुपए वृद्धावस्था पेंशन मिलती है, उसी से मेरी पढ़ाई का खर्च चलता है। भगवान बिरसा ‘अबुआ दिशुम अबुआ राज’ की बात करते थे। आज झारखंड में अबुआ राज है, लेकिन हमारी स्थिति थोड़ी भी नहीं सुधरी। मैं सरकार से कुछ नहीं माँगती। अलग से कुछ नहीं चाहिए, लेकिन जो नियम जनजातियों के लिए बने हैं, जो योजनाएँ गरीबों के लिए हैं, उनका लाभ तो मिले। मैं अपने लिए, अपने बाबा, अपनी माँ के लिए सम्मान चाहती हूँ। बस इतना ही।”

बता दें कि जौनी कुमारी, खूँटी बाजारटांड के पास आम, जामुन, कटहल बेचती हैं। सड़क के पार ही उनका कॉलेज है। वह वहाँ से मुंडाली भाषा में स्नातक कर रही हैं। उनका लक्ष्य पढ़कर गाँव के अन्य बच्चों को शिक्षित करना है। उनके तीसरे सेमेस्टर में 73.2% नंबर आए थे। उन्होंने तीन बार छात्रवृत्ति भरी, लेकिन उन्हें कभी स्कॉलरशिप नहीं मिली।

इतना ही नहीं जनजातियों को आवास देने के लिए राज्य सरकार ने जो बिरसा आवास योजना चलाई है, उसका लाभ भी परिवार को नहीं मिल रहा। ​​​​​​​एक बिरसा हरित ग्राम योजना भी है जिसके तहत एससी-एसटी लोगों को अपनी जमीन पर पौधे लगाने को कहा जाता है और उनसे वह रोजगार प्राप्त कर सकते हैं। इस योजना में वह परिवार आते हैं जिनकी आजीविका खेती पर आश्रित है। हालाँकि, इस योजना का फायदा भी बिरसा मुंडा के परिवार को नहीं मिलता है।

राँची का उलिहातू जो बिरसा मुंडा का जन्मस्थान है वहाँ आज भी उनका परिवार चुएँ का पानी पीने को मजबूर है। उनके परपोते की बहू गांगी मुंडा बताती है कि नल से पानी आता नहीं। साल भर से सोलर संचालित जलापूर्ति ठप है। साल भर से पूरा गाँव प्रदूषित पानी ही पी रहा है।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया