CAA लाओ, मुस्लिमों को नागरिकता मत दो: 2003 में कॉन्ग्रेस नेताओं ने की पैरवी, आज फैला रहे अफवाह

कॉन्ग्रेस नेता कपिल सिब्बल

नागरिकता संशोधन क़ानून (CAA) को लेकर विपक्ष का हंगामा और उसकी आड़ में हिंसा अब नई बात नहीं रही। कानून को समुदाय विशेष के खिलाफ बताकर यह सब किया जा रहा है। कॉन्ग्रेस के नेतृत्व में विपक्षी दल लगातार अफवाह फैला रहे हैं कि यह क़ानून भेदभाव वाला है। बता दें कि सीएए के तहत तीनों पड़ोसी इस्लामिक मुल्क़ों पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान और बांग्लादेश से दिसंबर 2014 तक भारत में आ चुके प्रताड़ित अल्पसंख्यक शरणार्थियों को नागरिकता मिलेगी। विपक्ष का कहना है कि इसमें मुस्लिमों को क्यों शामिल नहीं किया गया? लेकिन, सच्चाई कुछ और है। वास्तविकता ये है कि जो कॉन्ग्रेस आज इसका विरोध कर रही है, कभी इसके समर्थन में थी।

2003 में एक संसदीय समिति की रिपोर्ट आई थी, जिसमें सीएए की अनुशंसा की गई थी। गृह मामलों की इस संसदीय समिति के अध्यक्ष प्रणब मुखर्जी थे, जो आगे चल कर भारत के राष्ट्रपति बने। इसके अलावा उसमें कॉन्ग्रेस नेता कपिल सिब्बल भी शामिल थे। उस संसदीय समिति में कॉन्ग्रेस पार्टी के कई दिग्गज नेता शामिल थे। राज्य सभा के सांसदों की इस रिपोर्ट में क्या था, ये जान कर आप चौंक जाएँगे। इस रिपोर्ट को दिसंबर 12, 2003 को राज्य सभा में पेश किया गया था। ये संसदीय समिति की 107वीं रिपोर्ट थी।

यह रिपोर्ट ‘नागरिकता संशोधन बिल, 2003’ पर तैयार किया गया था। इसमें संसदीय समिति ने अनुशंसा की थी कि पाकिस्तान और बांग्लादेश से आने वाले अल्पसंख्यक शरणार्थियों को न सिर्फ़ राष्ट्रीय पहचान-पत्र देना चाहिए, बल्कि उन्हें नागरिकता और अधिकार भी दिए जाने चाहिए। इस रिपोर्ट में अपना घर-द्वार छोड़ कर आए अल्पसंख्यकों को अधिकार देने की बात कही गई थी। साथ ही, कॉन्ग्रेस नेताओं से भरी पड़ी इस संसदीय समिति की रिपोर्ट में स्पष्ट लिखा गया था कि पाकिस्तान या बांग्लादेश से आने वाले बहुसंख्यकों (अर्थात, मुस्लिमों) को नागरिकता नहीं दी जानी चाहिए, केवल अल्पसंख्यकों को ही मिलनी चाहिए।

इसी तरह भारत के पूर्व प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह ने भी कभी पड़ोसी इस्लामिक मुल्क़ों से आने वाले अल्पसंख्यक शरणार्थियों को अधिकार व नागरिकता देने की बात संसद में कही थी। उन्होंने कहा था कि उनका ध्यान रखना भारत का कर्तव्य है। आज वही कॉन्ग्रेस इस मुद्दे पर अफवाह फैला रही। हमने 2003 की जिस संसदीय समिति की रिपोर्ट का जिक्र किया, उस समिति में वरिष्ठ कॉन्ग्रेस नेता मोतीलाल वोरा, अंबिका सोनी, राजद अध्यक्ष लालू यादव और हंसराज भारद्वाज शामिल थे। इससे आज ये पता चल जाता है कि सीएए के विरोध में जो कुछ भी हो रहा है, वो महज राजनीतिक मकसद पूरा करने के लिए किया जा रहा है।

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इसी तरह एनआरसी पर भी कॉन्ग्रेस आज विरोध कर रही है। जबकि एनआरसी की प्रक्रिया की औपचारिक शुरुआत कॉन्ग्रेस के ही कार्यकाल में हुई थी। थोड़ा और पीछे जाएँ तो ख़ुद इंदिरा गाँधी ने घुसपैठियों को निकाल बाहर करने की बात की थी। एनपीआर भी यूपीए-2 के कार्यकाल में अपडेट किया गया। आज कॉन्ग्रेस सहित पूरा विपक्ष इसका भी विरोध कर रहा।

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ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया