ओवैसी के डर से बंगाल में दंगाइयों को खुली छूट दे रही हैं ममता!

असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी पश्चिम बंगाल में आहट दे रही है और ममता के लिए खतरे की घंटी बज चुकी है

नागरिकता संशोधन क़ानून के विरोध के नाम पर पश्चिम बंगाल में जिस तरह हिंसा हुई है उससे हर कोई हैरान है। मुस्लिम भीड़ ने रेलवे स्टेशनों को तहस-नहस कर दिया, यात्रियों को घंटों बंधक बनाया और सार्वजनिक संपत्ति को ख़ासा नुकसान पहुँचाया। पूरे देश ने देखा कि कैसे जुमे की नमाज के बाद मस्जिद से निकली भीड़ ने हिंसा की। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अभी तक इन दंगाइयों के ख़िलाफ़ कोई सख़्त कार्रवाई नहीं की है। दंगाई मुस्लिमों को नियंत्रित करने के लिए प्रशासन ने भी कुछ ख़ास नहीं किया है।

क्या यह सब सिर्फ़ मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति के कारण हो रहा है? मालूम हो कि ममता काफ़ी समय से इस नीति पर काम कर रही हैं। लेकिन ठहरिए, इसके पीछे और बड़े कारण भी हैं। मुस्लिम दंगाइयों के इस कुकृत्य से इतना तो साफ़ हो ही गया है कि पीड़ित हिन्दुओं का झुकाव अब भाजपा की तरफ़ बढ़ेगा। तृणमूल कॉन्ग्रेस पर पड़ने वाले इस्लामिक हिंसा के इस राजनीतिक दुष्प्रभाव से ममता बनर्जी भलीभाँति परिचित हैं, फिर भी वो ऐसा क्यों होने दे रही हैं?

इसका उत्तर है- असदुद्दीन ओवैसी फैक्टर। हैदराबाद के सांसद ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने 2021 बंगाल विधानसभा चुनाव लड़ने की घोषणा की है। पार्टी प्रवक्ता असीम वक़ार ने ममता को चेताते हुए कहा था:

“ये सही है कि हम संख्या में कम हैं लेकिन लेकिन कोई हमें छूने की भी हिम्मत न करे। हमलोग एटम बम हैं। दीदी (ममता बनर्जी), हमें आपकी दोस्ती भी पसंद है और हम आपकी दुश्मनी का भी स्वागत करते हैं। अब ये आपके ऊपर है कि आप हमें अपना दोस्त समझती हैं या फिर दुश्मन।”

कोलकाता के धर्मतला में एआईएमआईएम की एक बैठक हुई थी, जिसमें महाराष्ट्र के पूर्व विधायक वारिस पठान भी मौजूद थे। ममता ने नवंबर 2018 में ओवैसी भाइयों की कट्टरवादी छवि को लेकर जनता को अप्रत्यक्ष रूप से चेताया था। कूच विहार में कार्यकर्ताओं को सम्बोधित करते हुए बिना किसी का नाम लिए तृणमूल सुप्रीमो ने कहा था कि ‘उनका’ आधार हैदराबाद में है और ‘उनकी’ बातें नहीं सुनी जानी चाहिए।

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दिसंबर में जमीरुल हसन ने आरोप लगाया था कि ममता बनर्जी उनकी पार्टी एआईएमआईएम को निशाना बना रही हैं। उन्होंने कहा था:

“पूरे बंगाल में हमारे कार्यकर्ताओं को पुलिस द्वारा डराया-धमकाया जा रहा है। हमें गालियाँ दी जा रही हैं। पुलिस हमारे राजनीतिक कार्यक्रमों को रोक रही है। ऐसा मुख्यमंत्री के इशारों पर हो रहा है। ममता ने पुलिस को छूट दे रखी है कि वो एआईएमआईएम की एक भी बैठक या राजनीतिक कार्यक्रम न होने दे। हम कोलकाता में एक भव्य रैली आयोजित करेंगे, जिसमें हमारी पार्टी के मुखिया असदुद्दीन ओवैसी मुख्य वक्ता होंगे।”

ममता बनर्जी के लिए अब चीजें उतनी आसान नहीं लग रही हैं। उन्होंने मुस्लिम वोट बैंक पर अपना सब कुछ खपा दिया है। उन्होंने हिन्दुओं के एक बड़े वर्ग को लगातार नज़रअंदाज़ किया, जो अब भाजपा का वोटर बन चुका है। 2019 में भाजपा ने 18 सीटें जीतीं, जिसमें इस वोट बैंक का बड़ा योगदान है।

अब दिक्कत ये है कि असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ममता बनर्जी के मुस्लिम वोट बैंक में सेंधमारी के लिए तैयार है। मुस्लिम तुष्टिकरण के लिए मेहनत करने वाली ममता ऐसा होने नहीं देना चाहती हैं। हिन्दुओं का एक बड़ा वर्ग पहले ही भाजपा के साथ जा चुका है। नागरिकता संशोधन क़ानून को लेकर सीएम ममता के पास दो विकल्प थे। पहला, वो इसका समर्थन कर देतीं। अगर वो ऐसा करतीं तो मुस्लिम वोट बैंक उनके हाथ से स्पष्ट रूप से फिसल जाता। उन्होंने दूसरा विकल्प चुना और मुस्लिमों को ख़ुश करने के लिए सदन में बिल का विरोध किया।

ममता बनर्जी को पता था कि पहला विकल्प चुनने पर उन्हें कोई राजनीतिक लाभ नहीं होता। भाजपा के पक्ष में जा चुके हिन्दुओं का अब उनकी पार्टी का वोटर बनना मुश्किल है। विधानसभा चुनाव से पहले ममता बनर्जी ने रिस्क लिया है- अपने मुस्लिम वोट बैंक को रिझाने के लिए। ओवैसी को ममता का चुनावी गणित बिगाड़ने के लिए पूरे मुस्लिम वोट बैंक की ज़रूरत नहीं है। अगर वो 5% के आसपास वोट शेयर हासिल करने में कामयाब रहते हैं, तब भी भाजपा को इसका बड़ा फायदा मिलेगा।

हालाँकि, अभी ऐसा कहना जल्दबाजी होगा लेकिन स्पष्ट दिख रहा है कि बंगाल में मुस्लिम दंगाइयों के कारण उत्पन्न हुई अव्यवस्था के कारण हिन्दुओं में से अधिकतर भाजपा का रुख करेंगे। 2021 विधानसभा चुनाव में ममता का ये दाँव उलटा पड़ने जा रहा है, ऐसा प्रतीत हो रहा है। उन्होंने अपने हिन्दू वोट बैंक को दाँव पर लगा दिया है और मुस्लिम उनके साथ बने ही रहेंगे, इसकी भी कोई गारंटी नहीं है।

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ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया