वो अहमद पटेल, जिसे राज्यसभा सीट जिताने के लिए कॉन्ग्रेस ने खो दिया था पूरे गुजरात को

सोनिया गाँधी के करीबी अहमद पटेल (फाइल फोटो)

8 अगस्त 2017, कॉन्ग्रेस ने गुजरात में अपने नेता अहमद पटेल की राज्यसभा सीट को बचाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया था। राज्य में तीन सीटों पर दोबारा चुनाव होने थे और दावेदार 4 थे। यही वो समय था जब गुजरात 1996 के बाद पहली दफा राज्यसभा चुनावों को देख रहा था क्योंकि इससे पहले हर राज्यसभा चुनाव निर्विरोध होता आ रहा था।

उस साल दो सीटों पर अमित शाह और स्मृति ईरानी की जीत सुनिश्चित थी, लेकिन तीसरी सीट के लिए भाजपा ने गुजरात में कॉन्ग्रेस के अहमद पटेल के सामने कॉन्ग्रेस के ही पूर्व चीफ व्हिप बलवंत सिंह राजपूत को उतार दिया था।

उस समय अहमद पटेल गुजरात से 7वीं बार सांसद (3 बार लोकसभा और 4 बार राज्यसभा) थे। वह सोनिया गाँधी के सलाहकार भी थे। अगस्त के पहले हफ्ते तक ऐसा स्पष्ट हो चुका था कि कॉन्ग्रेस की नैया इस बार डूब ही जाएगी, क्योंकि वैसे तो राज्यसभा में अपने नेता की सीट बचाने के लिए कॉन्ग्रेस को 45 वोट चाहिए थे और उनके पास 57 विधायक थे, लेकिन 1 अगस्त को इनमें से 6 विधायकों ने इस्तीफा दे दिया था, जिसकी वजह से मुकाबला बराबर का हो गया था।

अब ऐसे में कॉन्ग्रेस क्या करती? तो इन्होंने अपनी राजनीति का पुराना तरीका अपनाया और भाजपा से अपने विधायकों को दूर रखने के लिए फौरन उन्हें एक शानदार रिजॉर्ट में किडनैप कर लिया। शर्मनाक बात यह थी कि जिस समय कॉन्ग्रेस ने यह चाल चली, उस दौरान गुजरात बाढ़ से प्रभावित था।

एक ओर कॉन्ग्रेस के विधायक रिजॉर्ट में नाश्ते का आनंद फरमा रहे थे और दूसरी तरफ उस समय गुजराती पूरे दशक की सबसे खराब बाढ़ की मार झेल रहे थे। बनासकांठा (Banaskantha) का धानेरा (Dhanera) बाढ़ से सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्रों में से एक था। वहीं उस इलाके की कॉन्ग्रेस विधायक जोइताभाई पटेल उन 44 विधायकों में से एक थी, जो कॉन्ग्रेस शासित बेंगलुरु में आराम फरमा रही थीं।

प्राकृतिक आपदा से निपटने के लिए जब जनता अपने प्रतिनिधि की ओर ताक रही थी, तब उन्होंने अपने फोन स्विच ऑफ किए हुए थे। इन लोगों के लिए अलग से शेफ तक की व्यवस्था की गई थी जबकि इनके राज्य में तो बाढ़ आई हुई थी, जनता दाने-जाने को मोहताज थी।

चुनावों के लिए चली गई चाल का ड्रामा मतदान के बाद भी आधी रात तक चला। कॉन्ग्रेस ने अपना सारा पैसा, सारी ताकत एक राज्यसभा सीट को बचाने में लगा दिया। इस चुनाव में अहमद पटेल तो जीत गए लेकिन कॉन्ग्रेस राज्य को हार गई।

खास बात यह है कि गुजरात में यह तब हुआ, जब विधानसभा चुनाव को कुछ महीने ही बाकी बचे थे। भाजपा राज्य में 20 साल से सत्ता विरोधी लहर को झेल रही थी। मतदाता का एक वर्ग कॉन्ग्रेस रहित राज्य में बड़ा हुआ था, जिसने 20 सालों में प्राकृतिक आपदा, कारसेवकों का जलना, दंगे और एनकाउंटर वाली खबरें पढ़ीं थीं। लेकिन इस बीच गुजरात इस बात का भी गवाह था कि कैसे राज्य में विदेशी निवेश में वृद्धि, नर्मदा कैनल का निर्माण और बेहतर पानी व बिजली की कनेक्टिविटी हुई।

लेकिन क्या कॉन्ग्रेस ने राज्य में जो कुछ भी किया वो सिर्फ अहमद पटेल को बचाने के लिए किया? नहीं। वो सब सिर्फ सोनिया गाँधी के चेहरे को बनाए रखने के लिए किया गया था। अहमद पटेल को नुकसान मतलब सोनिया गाँधी का नुकसान था। बीजेपी इन कोशिशों में जुटी थी कि इस हार से सोनिया गाँधी को झटका लगे। लेकिन कॉन्ग्रेस पटेल को बचाकर चाहती थी कि सोनिया की साख पर आँच न आए।

एक पार्टी जिसने वर्षों से राष्ट्र के साथ धोखा किया, उसने जब सोनिया गाँधी को बचाने के लिए पूरे गुजरात के साथ जुआ खेला, तो ये कोई हैरान करने वाली बात नहीं थी। 

आज 71 साल के अहमद पटेल का इंतकाल हो गया है। उनकी मौत का कारण मल्टिपल ऑर्गन फेल्यर बताया गया। उनसे यूपीए काल में हुए कई घोटालों के संबंध में पूछताछ की जा रही थी। उनके बाद, अब गुजरात में कॉन्ग्रेस के लिए दंगा आरोपित व देशद्रोह आरोपित हार्दिक पटेल ही पार्टी प्रमुख के रूप में बचे हुए हैं।

Nirwa Mehta: Politically incorrect. Author, Flawed But Fabulous.