कॉन्ग्रेस गोत्र-मूल के ‘विकास दुबे’: कहानी रघुवर, सुशील और मनु की, शिकार बनीं बॉबी, नैना और जेसिका

पॉलिटिक्स के क्रिमिनल कल्चर की पीड़िताएँ

अपराधी का अंत हो गया, अपराध और उसको सरंक्षण देने वाले लोगों का क्या?

यह सवाल उस कॉन्ग्रेस पार्टी की महासचिव प्रियंका गॉंधी का है, जिनकी पार्टी राजनीति और अपराध का कॉकटेल तैयार करने में सबकी उस्ताद है। उस जैसा हुनरबाज कोई नहीं।

प्रियंका ने यह ट्वीट कानपुर शूटआउट में 8 पुलिसकर्मियों की हत्या के मुख्य आरोपित और 60 से अधिक मामलों में नामजद गैंगस्टर विकास दुबे के एनकाउंटर को लेकर किया था। प्रियंका पार्टी की उत्तर प्रदेश की प्रभारी हैं। लिहाजा अपनी पार्टी की दागदार अतीत को भूल इस मामले में सियासी रोटी सेंकने का कोई अवसर उन्होंने नहीं छोड़ा।

कॉन्ग्रेस का इतिहास केवल सियासी फायदे के लिए अपराधियों को संरक्षण देने का ही नहीं रहा है। बल्कि, उसकी संस्कृति आपराधिक छवि वाले लोगों को बचाने और उन्हें आगे बढ़ने का भरपूर अवसर मुहैया कराने वाले की रही है।

जवाहर लाल नेहरू के 13 साल तक निजी सचिव रहे एमओ मथाई के संस्मरणों के हवाले से वरिष्ठ पत्रकार सुरेंद्र किशोर बताते हैं कि एक बार एक कॉन्ग्रेसी केंद्रीय मंत्री के बेटे ने यूपी में हत्या कर दी। यह घटना 1950 से पहले की है। हत्यारा बेटा कथित सरकारी प्रभावों की वजह से जेल से छूटकर विदेश चला गया। उसके बाद मामले की सुनवाई पर कभी कोर्ट में हाजिर नहीं हुआ और बाद के वर्षों में मामला रफा-दफा हो गया।

आपातकाल के बाद इंदिरा गॉंधी की रिहाई के लिए विमान अगवा करने वाले देवेंद्र और भोला पांडे को को कॉन्ग्रेस ने न केवल पार्टी में आगे बढ़ाया, बल्कि वे माननीय कहला सकें इसके लिए उन्हें सांसदी और विधायकी का अवसर भी दिया।

इसी तरह राजीव गॉंधी पर एक अपराधी को बचाने के लिए दूसरे अपराधी को छोड़ देने का सौदा करने के आरोप उनके राजनीतिक विरोधी लगाते रहे हैं। कहा जाता है कि उन्होंने प्रधानमंत्री रहते हुए उन्होंने भोपाल गैस कांड के गुनहगार वॉरेन एंडरसन को इसलिए अमेरिका जाने दिया, क्योंकि उन्हें अपने दोस्त आदिल शहरयार को रिहा करवाना था। 80 के दशक में अमेरिका में शहरयार को बम विस्फोट, फर्जीवाड़े, ड्रग्स रैकेट से जुड़े होने के आरोपों के चलते 35 साल कैद की सजा सुनाई गई थी।

शायद इसी संस्कृति का असर था कि कॉन्ग्रेस के बड़े नेताओं के बच्चे और युवा नेता समय समय पर जघन्य अपराधों को लेकर चर्चा में रहे हैं। चाहे जेसिका लाल मर्डर हो या नैना सहनी की हत्या या फिर बॉबी सेक्स कांड। हर मामले में कॉन्ग्रेस परिवार के लोग आरोपित रहे हैं। लिहाजा मामलों पर लीपापोती की कोशिश भी हुई। कुछ बच गए। लेकिन कुछ को पीड़ितों के अथक संघर्ष और मीडिया के दबाव की व​जह से अपने गुनाहों की सजा भोगनी पड़ी।

शुरुआत बिहार से करते हैं। श्वेतनिशा त्रिवेदी उर्फ बॉबी बेहद आकर्षक थी। बिहार विधानसभा में टेलीफोन ऑपरेटर के पद पर काम करती थी। 1983 में एक दिन रहस्यमयी हालात में उसकी मौत हो गई और उसे गुपचुप कब्रिस्तान में दफन कर दिया गया।

उस समय पटना के एसपी रहे किशोर कुणाल को इसकी जानकारी मिली तो उन्होंने कब्र से शव निकलवाया। शुरुआती जॉंच में जहर का इंजेक्शन देकर मारने और यौन शोषण की बात सामने आई। जिन पर आरोपों के छींटे पड़े उनमें तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष और कॉन्ग्रेस के दिग्गज नेता रहे राधानंदन झा के बेटे रघुवर झा भी थे।

केंद्र से लेकर प्रदेश तक कॉन्ग्रेस की सरकार थी। मशीनरी फटाफट सक्रिय हो गई। कुणाल को किनारे कर जॉंच सीबीआई को सुपुर्द कर दिया गया। बाद में जॉंच एजेंसी ने एक बेसिर पैर की कहानी गढ़ इसे आत्महत्या करार दिया और फाइल बंद कर दी।

रघुवर झा तक तो कानून की आँच कभी नहीं पहुॅंची। लेकिन, कॉन्ग्रेस के एक और बड़े नेता और ​हरियाणा में मंत्री रहे विनोद शर्मा के बेटे मनु की किस्मत ऐसे नहीं थी। हालॉंकि उसने भी जेसिका को मारा तो इसी रुआब में था कि वह बड़े नेता का बेटा और देश के राष्ट्रपति रहे शंकरदयाल शर्मा का नाती है।

जेसिका लाल की 29 अप्रैल 1999 की रात दिल्ली के टैमरिंड कोर्ट रेस्टोरेंट में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। कारण उसने मनु शर्मा को यह कहते हुए शराब परोसने से मना कर दिया था कि अब बार बंद हो चुका है। हत्या को कई लोगों की नजरों के सामने अंजाम दिया गया था। बावजूद फरवरी 2006 में सभी आरोपी बरी हो गए।

लेकिन जेसिका के परिवार की कोशिशों और मीडिया के दबाव की वजह से यह केस दोबारा खोलना पड़ा। फास्ट ट्रैक कोर्ट में केस चला और मनु शर्मा को उम्र कैद हुई। अप्रैल 2010 में सुप्रीम कोर्ट ने भी मनु शर्मा की सजा बरकरार रखी। लेकिन इस बीच अपने पिता के राजनीतिक प्रभाव की वजह से फर्लो पर जेल से निकल उसने शादी रचाई। दिल्ली की शीला दीक्षित के नेतृत्व वाली कॉन्ग्रेस सरकार पर उसे पैरोल देने के मामले में दरियादिली के आरोप भी लगे थे।

अब बात नैना साहनी की। उनकी हत्या का मामला तंदूर कांड के नाम से भी जाना जाता है। हत्या कर नैना को तंदूर की भट्ठी में झोंकने वाला उसका ही प्रेमी सुशील शर्मा था। दोनों लिव इन में रहते थे। कई लोगों का दावा है कि चुपचाप दोनों ने शादी भी कर रखी थ। सुशील यूथ कॉन्ग्रेस का उस समय उभरता हुआ नेता था। बताते हैं कि सीधे हाईकमान तक पहुॅंच थी उसकी।

सुशील के इस कारनामे की दुनिया को भनक भी नहीं लगती यदि 2 जुलाई 1995 की उस रात दिल्ली पुलिस के कॉन्स्टेबल अब्दुल नज़ीर कुंजू और होमगार्ड चंदर पाल गश्त पर ना होते। रात के करीब साढ़े ग्यारह बज रहे थे। होटल अशोक यात्री निवास में स्थित बगिया रेस्टोरेंट से दोनों ने आग और धुआँ निकलता देखा। मौके पर पहुॅंचे तो बताया गया कि कॉन्ग्रेस पार्टी के पुराने बैनर पोस्टर जलाए जा रहे हैं। पर वे नहीं माने। पुलिस बुलाई। फायर ब्रिगेड को बुलाया गया और पता चला कि तंदूर में एक महिला की लाश जल रही है।

उस महिला की पहचान नैना साहनी के तौर पर हुई। नैना को घर में गोली मारने के बाद सुशील शर्मा जलाने के लिए लाया था। मामला खुलने के बाद सुशील ने पुलिस से बचे रहने के लिए अपने राजनीतिक संपर्कों का भरपूर इस्तेमाल किया। लेकिन, जनआक्रोश की वजह से उसे सरेंडर करना पड़ा और बाद में सजा भी हुई।

स्पष्ट है कि अपराधियों के सहयोग से सियासत करने की कॉन्ग्रेस की आदत पुरानी है। लेकिन, ऐसे वक्त में जब पार्टी अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है, उसका शीर्ष नेतृत्व चिंतन करते हुए खुद से ही सवाल करता- ‘अपराध और उसको सरंक्षण देने वाले लोगों का क्या?’, तो बेहतर होता। शायद, इससे राजनीति को अपराधियों से मुक्त कराने का रास्ता भी निकलता।

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