समुदाय विशेष के 1 आदमी के लिए भी बड़ा कब्रिस्तान, हिन्दू हैं मेड़ किनारे अंतिम संस्कार करने को विवश: साक्षी महाराज

उन्नाव के भाजपा सांसद साक्षी महाराज ने उठाया शमशान-कब्रिस्तान की भूमि का मुद्दा

भाजपा सांसद साक्षी महाराज ने उत्तर प्रदेश में जनसंख्या के आधार पर कब्रिस्तान और शमशान की संख्या तय करने का मुद्दा उठाया है। उन्नाव से लगातार दूसरी बार सांसद बने साक्षी महाराज ने पूछा कि जिस गाँव में समुदाय विशेष का एक भी आदमी नहीं है, आखिर वहाँ कब्रिस्तान क्यों है? वो भाजपा प्रत्याक्षी श्रीकांत कटियार के लिए वोट माँगने उतरे थे। उन्होंने विपक्षी पार्टियों के लिए ‘खिसियानी बिल्ली खम्भा निचोड़े’ वाली कहावत का इस्तेमाल किया।

उत्तर प्रदेश में भाजपा के फायरब्रांड नेता साक्षी महाराज ने मीडिया से बातचीत करते हुए कहा कि पिछले 6 सालों में जितना विकास हुआ है, उतना 70 वर्षों में भी नहीं हुआ था। उन्होंने कहा कि विपक्ष ने सारे विकास के मुद्दे अपने हाथ में ले लिए हैं और उनके पास अनर्गल प्रलाप के बजाए और कुछ बच ही नहीं गया है। भाजपा सांसद ने कहा कि अगर किसी गाँव में कब्रिस्तान है तो वहाँ शमशान भी होना ही चाहिए।

साक्षी महाराज ने याद दिलाया कि शमसान और कब्रिस्तान के इस मुद्दे को प्रधानमंत्री नरेंद्र यदि और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी उठाया था। साथ ही कहा कि अब इस मुद्दे का पटाक्षेप होना आवश्यक हो गया है। उन्होंने तर्क दिया कि किसी भी गाँव में हिन्दुओं और दूसरे मजहब वालों की कितनी जनसंख्या है, इस आधार पर तय होना चाहिए कि वहाँ शमशान और कब्रिस्तान हो। हालाँकि, उन्होंने ये भी कहा कि अगर कहीं कब्रिस्तान नहीं है, तो होना चाहिए।

साक्षी महाराज ने दोनों समुदायों की बात करते हुए कहा कि शमशान और कब्रिस्तान, दोनों ही होने चाहिए। विपक्ष के आरोपों का जवाब देते हुए उन्नाव के सांसद ने कहा कि अब पूरा देश ही भाजपामय हो गया है, वोट तो पूरा भाजपा का ही है। उन्होंने कहा कि विपक्ष इसीलिए परेशान है क्योंकि आप कहीं भी किसी भी गली-मोहल्ले में चले जाओ, वहाँ मोदी-मोदी और योगी-योगी ही होता रहता है।

उन्होंने कहा कि वोट के लिए वो क्या करेंगे, वो तो पहले से ही भाजपा का है। साथ ही दावा किया कि भाजपा के पास वोट ही कोई कमी है ही नहीं। उन्होंने सवाल उठाया कि गाँव में अगर मजहब विशेष का एक भी आदमी होता है तो उनके लिए कब्रिस्तान बहुत बड़ा होता है और वहीं हिंदू को खेत की मेड़ या गंगा के किनारे दाह संस्कार करने के लिए विवश होना पड़ता है। उन्होंने पूछा कि जहाँ समुदाय का एक भी आदमी नहीं है, वहाँ कब्रिस्तान की क्या ज़रूरत?

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया