सोनिया, प्रियंका किस हैसियत से हत्यारों को माफ कर रही हैं? 20 अन्य लोगों की जान की कीमत क्या?

पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गाँधी

पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गाँधी की आज 28वीं पुण्यतिथि है। गाँधी परिवार के अलावा पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी समेत अन्य पार्टी नेताओं ने वीरभूमि पर उन्हें श्रद्धांजलि दी। प्रधानमंत्री मोदी ने भी उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए ट्वीट किया, “पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गाँधी को उनकी पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि।”

https://twitter.com/narendramodi/status/1130673876999057413?ref_src=twsrc%5Etfw

एक तरफ जहाँ देश राजीव गाँधी की हत्या का शोक मना रहा है और उनकी पुण्यतिथि पर उन्हें श्रद्धांजलि दी जा रही है, वहीं उन 20 लोगों को पूरी तरह से भुला दिया जिन्होंने श्रीपेरंबदुर विस्फोट में अपनी जान गँवाई थी। जब-जब राजीव गाँधी के हत्यारों को माफ़ करने की बात सामने आती है, तो उन 20 लोगों को क्यों भुला दिया जाता है जिनके नाम के आगे गाँधी नहीं लगा हुआ था? चाहे सोनिया हों या प्रियंका गाँधी वाड्रा, आखिर किस हैसियत से ये लोग उन हत्यारों को रिहा करने या उनकी सजा कम करने की बात करती हैं? क्या ये हत्यारे सिर्फ राजीव गाँधी के हत्यारे थे? या इन्होंने अन्य 20 परिवारों से भी ऐसा करने की अनुमति ले रखी है? अगर नहीं तो कानून को अपना काम करने देना चाहिए और ऐसे मार्मिक मुद्दों पर राजनीति से बचना चाहिए।

हिन्दुस्तान टाइम्स – 22 मई 1991

राजीव गाँधी पहले देश के प्रधानमंत्री थे बाद में पिता या पति – शुद्ध राजनैतिक सिद्धांत यही कहता है। वह जनता के प्रतिनिधियों के प्रतिनिधि थे और उनकी हत्या की माफ़ी का अधिकार किसी को भी नहीं। वस्तुतः किसी भी नागरिक की हत्या की माफी का अधिकार किसी को भी नहीं है। इसलिए देश के 20 आम नागरिक जो उस हादसे की भेंट चढ़ गए थे, उन्हें इस तरह भुला देना कहीं से भी न्यायसंगत नहीं। राजनीतिक रोटियाँ सेंकने के लिए आप उनके शोक-संतप्त परिवारों की भावनाओं से नहीं खेल सकते।

राजीव गाँधी का संबंध राजनीतिक घराने से था और वर्चस्व राजनीति से। शायद इसलिए हर साल उनकी पुण्यतिथि पर उन्हें श्रद्धांजलि दी जाती है। लेकिन वो 20 लोग आम नागरिक होने ज़्यादा शायद कुछ नहीं थे, इसलिए उन्हें श्रद्धाजंलि देना तो छेड़िए, उनके हत्यारों तक को माफ करने की बात चलती है, माफ कर भी दिया जाता है, विधानसभा से राज्यपाल को चिट्ठी लिखी जाती है लेकिन लगातार हार से परेशान कॉन्ग्रेस तमिलनाडु में जीत (भले ही सहयोगियों द्वारा) का स्वर सुनने में व्यस्त है। विरोध करे भी तो कैसे करे! विरोध मतलब एक मजबूत दिख रहे सहयोगी का चला जाना।

गाँधी परिवार के लिए हो सके राजीव गाँधी को खोने का दर्द हो (और होना भी चाहिए) लेकिन उन्हें यह कतई नहीं मानना चाहिए कि उन 20 लोगों के परिवार का दर्द, गाँधी परिवार के दर्द से कुछ कम है। वो बात अलग है कि उन परिवारों का दर्द कभी सामने नहीं आ सका क्योंकि उन्हें अपना दर्द साझा करने के लिए आज तक कोई राजनीतिक मंच ही नहीं मिला। इसलिए गाँधी परिवार को हत्या और हत्यारों की माफी पर राजनीति नहीं करनी चाहिए।

गाँधी परिवार को कम से कम ऑल इंडिया कॉन्ग्रेस कमिटी के प्रवक्ता अमेरिकाई वी नारायणन को जरूर पढ़ना चाहिए। 14 जून 2018 को उन्होंने टाइम्स ऑफ इंडिया के लिए एक आर्टिकल लिखा था। इस लेख में उन्होंने भी राजीव के साथ-साथ मरने वाले अन्य लोगों के परिवार वालों की भावनाओं का सम्मान करने की बात करते हुए सजा माफी पर आपत्ति जताई थी।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया