कोरोना महामारी के बावजूद MGNREGS के तहत रोजगार में 243% की बढ़ोतरी, मजदूरों को ₹76800 करोड़ का पेमेंट

MGNREGS के तहत रोजगार देने में सरकार का बेहतरीन प्रदर्शन (प्रतीकात्मक चित्र साभार: IStock)

जहाँ एक तरफ कोरोना वायरस जैसी वैश्विक महामारी के कारण दुनिया भर में लॉकडाउन हुए और कई काम ठप्प हो गए, भारत में इन सबके बावजूद MGNREGS (महात्मा गाँधी ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना) के तहत रिकॉर्ड संख्या में मजदूरों को पेमेंट किए गए। मौजूदा वित्तीय वर्ष में मात्र 8 महीनों में ही कुल अलॉट किए गए फण्ड का 90% हिस्सा उपयोग कर लिया गया है, अर्थात अंतिम 4 महीनों के लिए 10% ही बचा है।

भारत का केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय दुनिया की इस सबसे बड़ी रोजगार योजना का संचालन करता है। मार्च 2021 में खत्म होने वाले वित्तीय वर्ष के लिए उसे MGNREGS के तहत खर्च करने के लिए 84,900 करोड़ रुपए का फण्ड अलॉट किया गया था। ये फण्ड दो इंस्टॉलमेंट्स में जारी किया गया था। अप्रैल से लेकर नवंबर (2020) तक इनमें से 76,800 करोड़ रुपए का पेमेंट किया जा चुका है।

वहीं अगर पिछले वर्ष की बात करें तो इन 8 महीनों में 50,000 करोड़ रुपए खर्च किए गए थे। इस हिसाब से इसमें 26,800 करोड़ रुपए की बढ़ोतरी हुई है। सारे सरकारी मंत्रालयों को मिला दें तो ये अलॉट किए गए फण्ड का सबसे ज्यादा खर्च दर है। बजट में जितना एलोकेशन हुआ था, मंत्रालय ने उससे 12% पॉइंट्स ज्यादा खर्च किए हैं। हालाँकि, ऐसा नहीं है कि बचे हुए फंड्स में से ही आगे का खर्च चलाया जाएगा।

वित्त मंत्रालय के बड़े अधिकारियों ने स्पष्ट किया है कि MGNREGS के तहत खर्च के लिए अभी और बजट अलॉट किया जाएगा। इस योजना के तहत हर गरीब ग्रामीण परिवार के किसी एक सदस्य को वर्ष में 100 दिनों के रोजगार की गारंटी दी जाती है, ऐसे में कोरोना महामारी के बीच ये सरकार की बड़ी सफलता है। इस वर्ष 1 करोड़ नए परिवारों को इस योजना के तहत जोड़ा गया। अगर ‘पर्सन डेज’ में देखें तो इसमें 243% की बढ़ोतरी हुई है।

इतना ही नहीं, MGNREGS के तहत इस बार मजदूरी भी पिछले वर्षों के मुकाबले कहीं ज्यादा दी गई है। इस वर्ष कुल 9.02 करोड़ जॉब कार्ड्स जारी किए गए, जिनमें से 83.09% ने इस रोजगार योजना के तहत काम किया। मई 2020 में सबसे ज्यादा लोगों को रोजगार दिया गया, लेकिन ओडिशा, बिहार और झारखण्ड जैसे गरीब राज्यों से मजदूर फिर महानगरों की ओर चल पड़े तो इससे काम थोड़ा धीमा हुआ।

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झारखण्ड और तमिलनाडु 100 दिन का अनिवार्य काम देने में सबसे पीछे हैं। हालाँकि, 7.5 करोड़ लोगों 13% ऐसे भी थे, जिन्हें कोई काम नहीं मिल पाया। राजस्थान का कहना है कि वहाँ कम ही ऐसे जॉब डिमांड्स थे, जिन्हें नहीं पूरा किया गया। औसत के मामले की बात करें तो इस साल लोगों को औसतन 41.59 दिनों का काम दिया गया, जो 2019-20 के 48.4 और 2018-19 के 50.88 से कम था। उत्तर प्रदेश में महिलाओं को भी जॉब कार्ड्स दिए जा रहे हैं।

आपको याद होगा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश को संबोधित करते हुए मई 12, 2020 को ‘आत्मनिर्भर भारत’ की दिशा में बड़े आर्थिक सुधारों की घोषणा करते हुए 20 लाख करोड़ रुपए के पैकेज से अर्थव्यवस्था में नई जान फूँकने की बात कही थी। इसमें से 48,100 करोड़ रुपए वीजीएफ और मनरेगा में खर्च किए जाने का खाका पेश किया गया था। मजदूरों को मुफ्त में अनाज भी दिए जा रहे हैं।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया