कॉन्ग्रेसी CM मनमोहन के कानून से खफा, पहुँचे SC: कट्टरपंथी इस्लामी संगठन PFI हुआ खुश, मामला आतंक से जुड़ा

बाघेल सरकार के फैसले से खुश हुआ PFI

एक कट्टरपंथी इस्लामी संगठन है। नाम है – पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI)। इस संगठन के एक राष्ट्रीय महासचिव भी हैं। उनका नाम है – एम मोहम्मद अली जिन्ना। छत्तीसगढ़ में आजकल कॉन्ग्रेस की सरकार है। और उन्होंने कुछ ऐसा किया है, जिससे PFI खुश हो गई है। इतना खुश कि राज्य सरकार के फैसले का स्वागत करने के लिए प्रेस रिलीज तक जारी कर दी।

किसी राज्य सरकार द्वारा उठाए गए किसी कदम का स्वागत अगर कोई कट्टरपंथी इस्लामी संगठन करता है, मतलब दाल में कुछ काला है। तो खबर यह है कि नेशनल इंवेस्टिगेशन एजेंसी मतलब NIA के खिलाफ भूपेश बाघेल की सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुँची है। मुख्यमंत्री का मानना है कि एनआईए कानून संविधान के तहत राज्य को दिए गए अधिकारों का हनन करता है। और इसलिए उन्होंने इसे चुनौती देने का निर्णय किया।

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नेशनल इंवेस्टिगेशन एजेंसी (NIA) का काम ही था आतंक से संबंधित। इसे लाया ही गया था आतंक से प्रभावी तरीके से लड़ने के लिए। सोचने वाली बात यह है कि ऐसा क्या हो गया कि छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री को इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाना पड़ गया। सोचने वाली बात यह भी है कि लोकतांत्रिक तरीके से जीत कर आई किसी राज्य सरकार के लिए गए फैसले पर कोई कट्टरपंथी संगठन (जिस पर आतंक के कई आरोप लगे हैं, जिसकी जड़ें SIMI से जुड़ी हुई हैं) खुशियाँ क्यों मना रहा है!

PFI की प्रेस रिलीज

पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) ने एनआईए एक्ट को संवैधानिक रूप से सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने के छत्तीसगढ़ सरकार के फैसले का स्वागत किया है। इतना ही नहीं, PFI ने अन्य गैर-बीजेपी सरकारों से भी नेशनल इंवेस्टिगेशन एजेंसी एक्ट के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाने की अपील की है।

PFI ने जो प्रेस रिलीज जारी किया है, उसके अनुसार यह क़ानून देश के फेडरल चरित्र को कमज़ोर करता है, क्योंकि इसमें केंद्र को इतने ज़्यादा अधिकार दे दिए गए हैं कि वह राज्यों के संवैधानिक अधिकारों में भी हस्तक्षेप कर सकती है। इसीलिए छत्तीसगढ़ सरकार ने इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाकर स्वागतयोग्य कार्य किया है। PFI ने इसी आड़ में केरल सरकार द्वारा नागरिकता संशोधन कानून के ख़िलाफ सुप्रीम कोर्ट जाने को भी एक अच्छी मिसाल कायम बताई है।

NIA और मनमोहन सरकार

2008 में मनमोहन सिंह सरकार ने नेशनल इंवेस्टिगेशन एजेंसी एक्ट लाकर इसे साकार किया था। यह अमेरिका के FBI के तर्ज पर बनी एजेंसी थी। मतलब इसे इतनी शक्ति दी गई थी कि आतंक संबंधी मामलों पर यह भारत के किसी भी राज्य में जाकर केस दर्ज कर सकती थी और इसके लिए उसे संबंधित राज्य से परमिशन लेने की जरूरत नहीं थी। कुल मिलाकर NIA को CBI से ज्यादा पावरफुल और ज्यादा प्रभावी बनाने की राजनीतिक इच्छाशक्ति थी यह।

यह इसलिए लाया गया था क्योंकि तब आतंकी गतिविधियाँ अपने चरम पर थीं। तब देश की सामान्य जाँच एजेंसियों में सामन्जस्य की कमी के कारण आतंक-रोधी अभियान बहुत प्रभावी नहीं हो पाता था। सूचनाएँ मिलने के बावजूद समय पर स्थानीय प्रशासन तक इसकी जानकारी पहुँच नहीं पाती थी और आतंकी घटनाएँ आम हो गई थीं। इसे से लड़ने के लिए तब नेशनल इंवेस्टिगेशन एजेंसी एक्ट लाया गया था। और यह काफी हद तक प्रभावी भी रहा।

छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाना एक तरह से मनमोहन सरकार के लिए गए फैसले पर प्रश्नचिह्न लगाना हुआ। हास्यास्पद यह कि विरोधी राजनीतिक दल होते हुए भी मोदी सरकार ने इस कानून की अहमियत को समझा और 2019 में इसे और मजबूत बनाया। लेकिन खुद कॉन्ग्रेसी सरकार ही अब इसमें पलीता लगाने का काम कर रही है और उसे हवा दे रही है कट्टरपंथी मुस्लिम संगठन PFI! यह वही संगठन है, जिस पर खुद बैन लगने की तलवार लटक रही है।

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ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया