अक्षरधाम मंदिर में दर्शन के बाद सोशल मीडिया पर छाए ऋषि सुनक और उनकी पत्नी, जानिए क्यों एक तस्वीर में नहीं दिख रहीं अक्षता मूर्ति

अक्षरधाम मंदिर की साधुओं के साथ तस्वीरों में अकेले दिखे ब्रिटेन के प्रधानमंत्री: जानिए क्या है वजह (साभार-अक्षरधाम मंदिर)

जी-20 शिखर सम्मेलन में शामिल होने के लिए भारत आए ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक रविवार (सितंबर 10, 2023) को अन्य कार्यक्रमों की शुरुआत से पहले दर्शन के लिए दिल्ली स्थित अक्षरधाम मंदिर पहुँचे। यहाँ वह अपनी पत्नी अक्षता मूर्ति के साथ करीब 45 मिनट तक रुके, पूजा-अर्चना की, आरती में हिस्सा लिया और साधु-संतों से मुलाकात भी की। अक्षरधाम की कुछ तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हैं जिनमें ब्रिटेन के प्रधानमंत्री अकेले नजर आ रहे हैं। इन्हीं तस्वीरों को लेकर सोशल मीडिया पर चर्चा छिड़ी है। 

दरअसल, ऋषि सुनक और अक्षता मूर्ति की अक्षरधाम यात्रा की कई तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हो रही हैं। अलग-अलग तस्वीरों में यूके के पीएम और उनकी पत्नी को अक्षरधाम मंदिर परिसर में घूमते और दर्शन और आरती करते देखा जा सकता है। लोग उनकी तस्वीरों को शेयर कर उनकी तारीफ भी कर रहे हैं। उनकी ये तस्वीरें अब सोशल मीडिया पर वायरल हैं।

जहाँ बाकी सभी तस्वीरों में अक्षता मूर्ति ऋषि सुनक के साथ नजर आ रही हैं, वहीं एक-दो तस्वीरें ऐसी भी हैं, जिनमें सिर्फ ऋषि सुनक ही नजर आ रहे हैं। एक तस्वीर में ऋषि सुनक अक्षरधाम मंदिर के प्रांगण में  स्वामीनारायण संस्था के साधु-संतों के साथ दोनों हाथ जोड़े खड़े नजर आ रहे हैं। एक अन्य फोटो में उन्हें संतों को तिलक करते हुए देखा जा सकता है। इन्हीं तस्वीरों में उनकी पत्नी के साथ न होने से लेफ्ट-लिबरल गैंग सहित कुछ लोग सवाल उठा रहे हैं। 

तस्वीरों में उनकी पत्नी के न होने की क्या है वजह

बता दें कि दिल्ली स्थित अक्षरधाम मंदिर का पूरा प्रबंधन बीएपीएस स्वामीनारायण संस्था करती है। जिन तस्वीरों में साधु-संत होते हैं, उनमें ऋषि सुनक अकेले नजर आते हैं, इसका कारण यह है कि स्वामीनारायण संप्रदाय के नियमों के मुताबिक दीक्षित संतों को ब्रह्मचर्य का पालन करना होता है। इसलिए वे कभी भी किसी भी तरह से महिलाओं के संपर्क में नहीं आते हैं। प्रारंभ से ही संप्रदाय का यही नियम रहा है, जो आज भी जारी है। ये नियम संप्रदाय के संस्थापक सहजानंद स्वामी की शिक्षाओं में पाए जाते हैं। यही वजह है कि इन तस्वीरों में वह साधु-संतों के साथ अकेले नजर आ रहे हैं। 

स्वामीनारायण संप्रदाय और ब्रह्मचर्य

स्वामीनारायण संप्रदाय की स्थापना सहजानंद स्वामी (1781-1830) ने की थी। उन्होंने संतों से निष्काम,  निःस्वार्थता, स्नेह, अस्वाद, निर्माण और निर्लभता का अभ्यास करने को कहा। जिनमें से पहला है निष्काम अर्थात कर्म रहित जीवन। इसके लिए उन्होंने अष्टांग ब्रह्मचर्य का पालन करने को कहा। जिसमें आठ प्रकार से स्त्री-संग का त्याग करने की बात कही गई है।

वर्ष 1826 में सहजानंद स्वामी ने एक ‘शिक्षापत्री’ लिखी, जिसमें एक सामान्य व्यक्ति से लेकर राजा और साधु तक को कैसे व्यवहार करना चाहिए, आदर्श जीवन कैसे जीना चाहिए, इसकी शिक्षा दी गई है। इस शिक्षापत्री में साधुओं के लिए भी नियम हैं।

स्वामी सहजानंद धार्मिक ब्रह्मचारियों के लिए कहते हैं, ऐसे साधुओं को महिलाओं को छूना या उनके साथ संवाद नहीं करना चाहिए और जानबूझकर महिलाओं की ओर नहीं देखना चाहिए। (शिक्षापत्री-175) उन्होंने भिक्षुओं से महिलाओं के बारे में बात करने से भी परहेज करने को कहा गया है। (शिक्षापत्री- 176, 179)

इसके अलावा किसी महिला द्वारा पहने गए वस्त्र को न छूना और जो महिला देवी न हो उसकी मूर्ति को न छूना जैसी बातें भी कही गई हैं। हालाँकि, यह भी कहा गया था कि अगर किसी महिला की जान या खुद की जान खतरे में है और आपातकालीन स्थिति में सुरक्षा के लिए महिलाओं को छूना या उनसे संवाद करना है, तो ऐसा करें और उनकी रक्षा करें। (शिक्षापत्री-182)

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया