सुब्रह्मण्यम स्वामी और कॉन्ग्रेस नेता सलमान निजामी ने पूछा- सिमी से जुड़ा कासिम मुस्लिमों का नुमाइंदा क्यों?

कासिम की मौजूदगी पर स्वामी ने उठाए सवाल

राम जन्मभूमि पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दायर करने की जानकारी देने के लिए ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की ओर से आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस विवादों में घिर गया है। रविवार (नवंबर 17, 2019) को आयोजित इस प्रेस कॉन्फ्रेंस को सैयद कासिम रसूल इलियास ने भी संबोधित किया। कासिम जेएनयू के विवाद छात्र नेता रहे उमर खालिद का अब्बा है। साथ ही वह प्रतिबंधित संगठन सिमी से भी जुड़ा रहा है।

उसकी मौजूदगी को लेकर सवाल उठाने वालों में भाजपा सांसद सुब्रह्मण्यम स्वामी और कॉन्ग्रेस नेता सलमान निजामी भी शामिल हैं। स्वामी ने ट्वीट कर कहा है, “क्या प्रतिबंधित संगठन सिमी के सदस्य अब पर्सनल लॉ बोर्ड जैसे मुस्लिम संगठनों के नेता हैं? गृह मंत्रालय को इसपर संज्ञान लेना चाहिए।

https://twitter.com/Swamy39/status/1196246878372786176?ref_src=twsrc%5Etfw

वहीं, कॉन्ग्रेस नेता सलमान निजामी ने कासिम पर सवाल उठाते हुए उसकी पूरी कुंडली सार्वजनिक कर दी है। निजामी ने ट्वीट किया है, “ये कासिम कौन है? जो 2019 लोकसभा चुनाव में अपनी जमानत राशि भी नहीं बचा पाया, जिसे केवल 1% वोट मिले। क्या अब वो 20 करोड़ मुस्लिमों का प्रतिनिधित्व करेगा। अब प्रत्यक्ष रूप से AIMPLB अतिवादियों के नियंत्रण में है। कासिम उस संगठन का अध्यक्ष था जिसे आतंकी गतिविधियों के कारण प्रतिबंधित कर दिया गया और उसका बेटा उमर खालिद भी नास्तिक है। हमें बेवकूफ मत बनाओ।

https://twitter.com/SalmanNizami_/status/1196024121949220868?ref_src=twsrc%5Etfw

गौरतलब है कि कासिम किसी ज़माने में सिमी का अध्यक्ष भी रह चुका है। साल 1985 में उसने खुद को इस संगठन से अलग कर लिया था। वेलफेयर पार्टी ऑफ़ इंडिया के टिकट पर पश्चिम बंगाल के मुस्लिम बहुल सीट जंगीपुर से वह लोकसभा का भी चुनाव लड़ चुका है।

सिमी जैसे संगठन से लेकर मुस्लिम बहुल इलाके से लोकसभा पहुँचने की कोशिश कर चुका कासिम अब ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड में है। जमात-ए-इस्लामी हिंद की केन्द्रीय समिति का सदस्य भी है। वह बाबरी मस्जिद को-आर्डिनेशन कमिटी का संयोजक भी रह चुका है।

कासिम का बेटा उमर खालिद खुद को नास्तिक कहता है। हालाँकि कमलेश तिवारी की हत्या के बाद इस्लामिक चरमपंथ को लेकर उसकी सहानुभूति उजागर हो गई थी। संभव है कि खालिद ने नास्तिकता का चोला इसलिए भी ओढ़ रखा हो ताकि इस्लामिक समाज में फैली व्यापक असहिष्णुता पर कोई चर्चा न हो।

गैर-मुस्लिम को झूठ बोलकर फँसाने के इस कदम को तक़िया भी कहा जाता है जो इस्लाम की धार्मिक मान्यताओं के अनुकूल है। इसके तहत एक मुस्लिम गैर-मुस्लिम को भरोसे में लेकर यह जताता है कि वह दरअसल इस्लाम में विश्वास नहीं रखता।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया