आतंकवाद को जायज ठहराने के आरोप में रूस में एक पत्रकार पर जुर्माना लगाया गया है। ‘सिटी ऑफ Pskov’ में स्थित कोर्ट ने सोमवार (जुलाई 7, 2020) को पत्रकार स्वेटलाना प्रोकोप्येवा (Svetlana Prokopyeva) पर 5 लाख रूबल्स (5.25 लाख रुपए) का जुर्माना ठोका। स्वेटलाना प्रोकोप्येवा (Svetlana Prokopyeva) पर आरोप है कि उन्होंने आतंकवादी के साथ सहानुभूति जताई।
स्वेटलाना प्रोकोप्येवा (Svetlana Prokopyeva) पर रूस में लगे जुर्माने के बाद वहाँ ‘फ्रीडम ऑफ स्पीच’ का रोना शुरू हो गया लेकिन सामान्यतः वहाँ इन आरोपों को बर्दाश्त नहीं किया जाता है। प्रोसीक्यूटरों की तो यहाँ तक माँग है कि स्वेटलाना को 6 साल के कारावास की सज़ा भी सुनाई जाए। दरअसल, नवम्बर 2018 में हुए एक आत्मघाती हमले में उत्तरी शहर Arkhangelsk में स्थित फ़ेडरल सिक्योरिटी सर्विस (FSB) दफ्तर के बाहर एक 17 वर्षीय युवा ने ख़ुद को उड़ा लिया था।
इस वारदात में उक्त हमलावर की तो मौत हो गई थी लेकिन साथ-साथ 3 FSB अधिकारी भी घायल हो गए थे। इस घटना पर स्वेटलाना प्रोकोप्येवा (Svetlana Prokopyeva) ने एक लेख लिखा था, जिसमें उन्होंने सरकार की नीतियों को ‘दमनकारी’ बताते हुए कहा था कि आज युवाओं के पास असहमति दिखाने के मौके नहीं हैं और इसी तनाव के कारण वो हताश होकर ऐसी वारदातों को अंजाम देते हैं।
https://twitter.com/RFERL/status/1280215058572808192?ref_src=twsrc%5Etfwपत्रकार स्वेटलाना प्रोकोप्येवा (Svetlana Prokopyeva) फिलहाल ‘RFE/RL’s रसियन सर्विस’ में कार्यरत हैं। उन्होंने ख़ुद को निर्दोष बताते हुए अपने ऊपर लगे आरोपों को नकार दिया है और जुर्माने को अभिव्यक्ति की आज़ादी का हनन करार दिया है। उन्होंने कहा कि वो क़ानूनी संस्थाओं की आलोचना से नहीं डरती हैं और जहाँ भी सुरक्षा एजेंसियाँ ग़लत होंगी, वो बोलने से हिचकेंगी नहीं।
स्वेटलाना कहा कि अगर उन्होंने कुछ नहीं कहा या किसी ने भी असहमति में स्वर नहीं उठाए तो चीजें और भयानक रूप ले सकती हैं। उनका कहना है कि उन्होंने सिर्फ़ अपने पत्रकारिता का कर्त्तव्य निभाया है। बकौल स्वेटलाना प्रोकोप्येवा (Svetlana Prokopyeva), उन्होंने ऐसा कुछ भी नहीं किया जो पत्रकारिता के अंतर्गत नहीं आता। उन्होंने इस फैसले के ख़िलाफ़ अपील करने की भी बात कही है। कई मानवाधिकार संगठनों ने उनका समर्थन किया है।
भारत में भी मीडिया के एक धड़े द्वारा आतंकवादियों को क्लीन चिट देने की कोशिश की जाती रही है। इनका पहला कर्तव्य यह साबित करना तो है ही कि कश्मीर घाटी में सुरक्षबलों द्वारा मारे जाने वाले आतंकवादी निर्दोष होते हैं। साथ ही आतंकवादियों के ‘मानवीय’ चेहरे के नैरेटिव को दिशा देने का काम भी वामपंथी मीडिया संगठनों द्वारा किया जा रहा है। सोपोर में आतंकवादियों की गोली से मारे गए 65 वर्षीय बशीर अहमद के मामले में ऐसा ही किया गया था।