तालिबानी फरमान के बाद मर्द के कपड़ों में काबुल की सड़कों पर घूम रहीं अफगानी औरतें, घर से अकेले निकलने पर है पाबंदी

तालिबानी फरमान के विरोध में मर्दों के कपड़ों में काबुल में प्रदर्शन करती औरतें (फोटो साभार: द नेशनल)

अफगानिस्तान (Afghanistan) पर काबिज होने के बाद तालिबान (Taliban) ने औरतों पर कई तरह की पाबंदियाँ थोपी है। वे घर से अकेले नहीं निकल सकतीं। बाहर जाना जरूरी हो तो किसी मर्द रिश्तेदार को साथ रखना होगा। वाहनों में केवल वहीं औरत बैठ सकती हैं, जिसने हिजाब पहन रखा हो। यहाँ तक की महिला टीवी पत्रकारों को भी हिजाब पहनकर ही रिपोर्टिंग करने का फरमान है।

इन फरमानों ने उनकी औरतों की जिंदगी और दुश्वार कर दी है जो अकेली और युवा हैं। संयुक्त अरब अमीरात (UAE) की वेबसाइट द नेशनल (The National) ने एक ऐसी ही औरत की कहानी प्रकाशित की है। तालिबान के डर की वजह से उसकी असली पहचान का खुलासा नहीं किया गया है। रिपोर्ट में उसे राबिया बाल्कि (Rabia Balkhi)  नाम दिया गया है। राफिया अफगानिस्तान की एक मशहूर कवियत्री रहीं हैं।

रिपोर्ट के अनुसार 29 साल की राबिया अफगानी मर्दों की तरह ढीला-ढाला कुर्ता-पायजामा पहनकर काबुल की सड़कों पर निकलती हैं। चेहरे पर मास्क लगाकर रखती हैं। सड़क पर चलते वक्त अपनी नजर झुकाए रखती हैं ताकि किसी से आँख न मिले।

राबिया तलाकशुदा हैं। एक बच्ची की अम्मी हैं। काबुल में छिपकर रहती हैं। तालिबान के कब्जे से पहले वह काबुल में नहीं रहती थीं। एक एनजीओ के दफ्तर में काम करती थी। उन्होंने द नेशनल को बताया, “मुझे वे धमका रहे थे। दोबारा निकाह करने के लिए कह रहे थे। तालिबान के डर से मैं काबुल आ गई। किसी तरह जिंदगी गुजार रही थी। लेकिन मेरी मुश्किल तब बढ़ गई जब दिसंबर में तालिबान ने फरमान निकाला कि कोई भी औरत बिना महरम (मर्द अभिभावक) के बिना घर से निकल नहीं सकती। जग​ह-जगह​ गाड़ियों की जाँच की जाने लगी। मैं तलाकशुदा हूँ। कोई मेहरम नहीं है। आखिर मैं क्या करती?”

राबिया के अनुसार उन्होंने इसका विरोध करने का फैसला किया। मर्दों की तरह कपड़े पहने। एक सहेली ने फोटो क्लिक की और उसे सोशल मीडिया पर पोस्ट किया। पोस्ट में बताया कि वह महिला हैं और उनका कोई महरम नहीं हैं। राबिया के अनुसार इसके बाद कई औरतें उनका साथ देने आगे आईं। कुछ औरतों ने काबुल में तालिबान के खिलाफ प्रदर्शन किया, जिसमें राबिया भी शामिल हुईं। इन औरतों ने मर्दों की तरह ही कपड़े पहन रखे थे। कुछ ने उन्हें ऑनलाइन सपोर्ट भी दिया।

राबिया ने बताया कि इस प्रदर्शन के बाद तालिबान ने उन्हें पहचान लिया। खोजते हुए घर तक पहुँच गए। गिरफ्तार किया। थप्पड़ मारे। दूसरी प्रदर्शनकारी औरतों के बारे में पूछा। तालिबान के चंगुल से छूटने के बाद से राबिया अपनी बेटी को लेकर छिपती फिर रही हैं। वह कहती है, “आज मेरे पास कुछ नहीं है। न घर और न नौकरी। मुल्क भी अब मेरा कहाँ रहा? मैं काबुल की सड़कों पर मर्दों के कपड़े पहनकर निकलती हूँ। किसी से भी नजर मिलाने से बचती हूँ। चेहरे पर मास्क रहता है।”

बताया जाता है कि तालिबान प्रदर्शन में शामिल हुई अन्य औरतों की भी तलाश कर रहा है। एक ऐसी ही औरत जिसकी पहचान रिपोर्ट में लिली हमीदी बताया गया है ने कहा, “ये फरमान औरतों के लिए बेहद मुश्किल हैं। खासकर उनके लिए जिनके पास महरम नहीं हैं। हम तालिबान को बताना चाहते हैं कि वे प्रतिबंध लगाकर हमारे अधिकार नहीं छीन सकते।”

गौरतलब है कि अगस्त 2021 में तालिबान के अफगानिस्तान की सत्ता पर काबिज होने के बाद से ही वहॉं से लगातार औरतों के दमन की खबरें आ रही हैं। कई ऐसे मामले भी सामने आए हैं जब औरतों को उनके घरों से उठाकर तालिबा​नियों के साथ निकाह को मजबूर किया गया। अफगान पुलिस में रही एक महिला जो जान बचाकर किसी तरह भारत आने में कामयाब रहीं थी ने बताया था, “वे (तालिबान) शवों का भी बलात्कार करते हैं। उन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि वह व्यक्ति जिंदा है या नहीं… क्या आप इसकी कल्पना कर सकते हैं?”

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया