अफगानिस्तान-वियतनाम ही नहीं… सोमालिया से भी भागना पड़ा था अमेरिकी सेना को, दो दशक पुरानी वह घटना, जिसने US को किया शर्मिंदा, बनी है फेमस फिल्म

इतिहास की वो घटना जिसने तोडा था अमेरिकी दंभ.

अफगानिस्तान से अचानक अपनी सेना हटाने के बाद दुनिया भर के देशों के सवालों के घेरे में आ चुके अमेरिका को तालिबान के विस्तार और उसके बढ़े प्रभाव के लिए जिम्मेदार माना जा रहा है। अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन के इस कदम के समर्थन और आलोचनाओं के बीच यह भी जानना जरूरी है कि क्या अमेरिका ने ऐसा पहली बार किया है। इतिहास के झरोखों से मुख्यतः वियतनाम और अफगानिस्तान की ही झलक मिलती है, लेकिन यहाँ एक छोटे से देश सोमालिया का भी उल्लेख जरूरी है। सोमालिया की घटना को इस सप्ताह 2 दशक अर्थात 20 वर्ष पूरे हो गए हैं।

किसी देश में घुस पर उनके आंतरिक मामलों में दखल देने की की आदत के चलते अमेरिका के 18 फौजियों को आज से लगभग 20 वर्ष पहले सोमालिया में अपनी जान गँवानी पड़ी थी। इस घटना को Battle of Mogadishu अर्थात मोगादिशु का युद्ध कहा जाता है। तब वर्ष 1992 में आंतरिक कलह से जूझते सोमालिया में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने शांति सेना के नाम पर अपने सैनिक भेजे थे, जिन्होंने धीरे-धीरे वहाँ के प्रशासन को अपने हाथ में ले लिया।

जनवरी 1993 में अमेरिकी सत्ता में परिवर्तन हुआ और बिल क्लिंटन ने शासन संभाला। सोमालिया में आंतरिक कलह के नाम पर कायम अमेरिकी धाक और धौंस कहीं-न-कहीं क्लिंटन शासन को भी पसंद आई और उन्होंने सोमालिया में अमेरिकी अभियान को बढ़ाने की मंजूरी दे दी। हालाँकि, राष्ट्रपति क्लिंटन को आभास नहीं था कि यह कदम अमेरिका के लिए भारी शर्मिंदगी का विषय बनने जा रहा है। रविवार का दिन था और तिथि थी 3 अक्टूबर 1993, जब अमेरिकी सेना का एक विशेष अभियान दस्ता सोमालिया की राजधानी मोगादिशु को नियंत्रण में रखने वाले मोहम्मद फराह अदीद के 2 खास सहयोगियों को पकड़ने के लिए निकला था।

अमेरिकी दस्ते को मोगादिशु में इन सभी की एक गुप्त मीटिंग की जानकारी मिली थी। महज 45 मिनट से 1 घंटे में इस अभियान को निबटाने का लक्ष्य अमेरिकी फौजों ने रखा था, लेकिन वहाँ पर जो कुछ हुआ वो उनके लिए अप्रत्याशित था। अमेरिकी कमांडो वायुमार्ग से शहर में उतरे और उनको जमीनी लड़ाई लड़कर अपने काम को खत्म कर वापस जाना था, पर सोमालिया की फौजों और आम नागरिकों ने मिलकर न सिर्फ उनके ब्लैक हॉक नाम के दो तब के उत्कृष्ट माने जाने वाले हेलीकॉप्टर मार गिराए, बल्कि 18 अमेरिकी सैनिकों को भी मार डाला। बचाव में गए 84 अमेरिकी फ़ौजी बुरी तरह घायल हो गए थे। माइक डुरंट नाम का अमेरिकी सेना के पायलट को गिरफ्तार कर लिया गया था, जिसे 11 दिन बाद तमाम प्रयासों के फलस्वरूप छुड़ाया जा सका था।

दुनिया भर को मानवाधिकार का ज्ञान देने वाले अमेरिका ने इस युद्ध में अपने कुछ सैनिकों को बचाने के लिए सैकड़ों सोमालियाई नागरिकों की जान ले ली थी। इस पूरे घटनाक्रम पर हॉलीवुड ने “ब्लैक हॉक डाउन” नाम से एक फिल्म भी बनाई है, जिसमें हमलावर अमेरिकी सैनिकों के लिए भावनात्मक समर्थन और सोमालियाई नागरिकों के आक्रामक और आतंकी रूप को चित्रित किया गया है। मोगादिशु के इस युद्ध का एक पहलू ये भी रहा कि अमेरिकी फौजों के विरुद्ध आपस में लड़ते सोमालियाई एक हो गए थे।

इस शर्मिंदगी और चोट के बाद अमेरिका को होश आया और तत्कालीन राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने 6 माह के अंदर सोमालिया से अमेरिकी सेना को क्रमवार हटाने का निर्णय लिया था। मोगादिशु के युद्ध में अपने कई सैनिकों को गँवाने के बाद भावुक होकर बिल क्लिंटन ने कहा था कि ये अमेरिका की गलती थी, जो उसने स्वयं को सोमालिया के पुलिस प्रशासक के रूप में स्थापित कर लिया था। इस घटना के बाद तत्कालीन अमेरिकी शासन ने अपनी विदेश नीति में बदलाव किये थे, लेकिन उन सभी के पीछे अमेरिका का स्वार्थ था जिसमें अमेरिकी जन-धन की हानि को भविष्य में मोगादिशु जैसी घटना से बचाना था।

अमेरिका के जाने के बाद सोमालिया भी कालांतर में अल कायदा जैसे आतंकी संगठनों का वैसा ही गढ़ बन गया, जैसा वर्तमान समय में अफगानिस्तान तालिबान का गढ़ बन गया है। यदि इस पूरे प्रकरण के सारांश में जाएँ तो अमेरिका को अफगानिस्तान से लेकर सोमालिया तक कई बार सबक मिले हैं। आज अफगानिस्तान में जो कुछ भी हुआ वो पहली बार नहीं है। जगह, स्थान और समय भले ही बदलते रहे हैं पर इन सभी में जो चीज कॉमन रही है वो रही है अमेरिका की मौजूदगी और अमेरिका की स्वार्थ से परिपूर्ण नीतियां।

राहुल पाण्डेय: धर्म और राष्ट्र की रक्षा को जीवन की प्राथमिकता मानते हुए पत्रकारिता के पथ पर अग्रसर एक प्रशिक्षु। सैनिक व किसान परिवार से संबंधित।