तालिबान का साथ देने के लिए Pak ने हजारों आतंकियों को अफगानिस्तान भेजा, LeT और JeM ने शुरू की भर्ती: बढ़ी भारत की चिंता

अफगानिस्तान में तालिबान का प्रभाव बढ़ने से चिंतित है भारत (फाइल फोटो साभार: Jim Huylebroe/NYT)

अफगानिस्तान में तालिबान का प्रभाव बढ़ने के साथ ही भारत की चिंता भी बढ़ती जा रही है, क्योंकि तालिबान को पाकिस्तान पोषित आतंकियों ने समर्थन देना शुरू कर दिया है। सुरक्षा एजेंसियों को खबर मिली है कि अमेरिका के साथ शांति समझौते का उल्लंघन करते हुए पाकिस्तान ने लश्कर-ए-तैय्यबा (LeT) और जमात-उल-दावा के आतंकियों को अफगानिस्तान में तालिबान के साथ लड़ने के लिए भेजा है।

ये आतंकी अफगानिस्तान के ज्यादा से ज्यादा इलाके पर कब्ज़ा दिलाने में तालिबान की मदद कर रहे हैं। अफगानिस्तान की सरकार को कभी भी किनारे किया जा सकता है और आशंका है कि वो दिन दूर नहीं, जब अफगानिस्तान के महत्वपूर्ण इलाकों पर भी तालिबान का ही कब्ज़ा हो। पूर्वी अफगानिस्तान में स्थित कोनार और नंगहर के अलावा दक्षिण-पश्चिमी भाग के हेलमंड और कंधार में पाकिस्तानी आतंकी सक्रिय हैं।

अफगानिस्तान और भारत क ख़ुफ़िया एजेंसियों को ये सूचना मिली है। अफगानिस्तान के चारों प्रांत पाकिस्तान के साथ अपनी सीमाएँ साझा करते हैं। जहाँ कोनार और नंगहर पाकिस्तान के पहले आदिवासी क्षेत्र रहे इलाकों से सटे हुए हैं, वहीं बाकी के दोनों प्रांत बलूचिस्तान से लगते हैं। पाकिस्तान पोषित तहरीक-ए-तालिबान पाक, लश्कर-ए-झांगवी, जमात-उल-अरहर, लश्कर-ए-इस्लाम और अल-बद्र जैसे आतंकी संगठनों ने बड़ी संख्या में आतंकियों को तालिबान के साथ मिल कर लड़ने के लिए अफगानिस्तान भेजा है।

गजनी, खोस्त, लोगर, पक्तिया और पक्तिका में पाकिस्तानी आतंकियों को देखा गया है। केवल इन इलाकों में ही पाकिस्तान के 7200 आतंकी सक्रिय हैं। LeT के सरगनाओं को सलाहकार, कमंडर और प्रशासक के पदों पर नियुक्त किया जा रहा है। इसीलिए, LeT और JeM ने अफगानिस्तान में लड़ने के लिए आतंकियों की भर्ती नए सिरे से शुरू कर दी है। तालिबान की सेना का मुखिया मुल्ला मुहम्मद याकूब के कहने पर ये सब हो रहा है।

याकूब, तालिबान के सबसे बड़े सरगना रहे मुल्ला मोहम्मद उमर का बेटा है। उमर की 2013 में ही मौत हो गई थी। पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में स्थित हैदराबाद में तालिबानी आतंकियों को प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है। ये जगह फैसलाबाद और खैबर-पख्तूनख्वा के डेरा इस्माइल खान के बीच में स्थित है। ख़ुफ़िया रिपोर्ट है कि पाकिस्तान फ़ौज ने इन आतंकियों को प्रशिक्षण दिया है। 200 के प्रत्येक समूह में पाकिस्तानी आतंकियों को अफगानिस्तान में लगाया गया है, जिनमें 5-8 आत्मघाती हमलावर होते हैं।

इन समूहों के पाकिस्तान पाकिस्तानी ख़ुफ़िया विभाग के अधिकारी भी जुड़े हुए हैं। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) की एक समिति भी कह चुकी है कि ऐसा कोई प्रमाण नहीं मिला है कि अफगानिस्तानी तालिबान ने अलकायदा या अन्य विदेशी संगठनों के साथ अपने रिश्ते ख़त्म कर लिए हों। अलकायदा के कई सरगना पाकिस्तान-अफगानिस्तान सीमा पर रहते हैं। तालिबान की सहायता करने वाले कई विदेशी तत्वों को अफगानिस्तान के कई इलाकों में बसाया गया है।

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2020 के मध्य में UN की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि अफगानिस्तान में 6500 पाकिस्तानी आतंकी सक्रिय हैं, जिनमें अधिकतर JeM और LeT के हैं। ये दोनों वही आतंकी संगठन हैं, जिन्होंने भारत में कई वारदातों को अंजाम दिया है। आज अमेरिका समर्थित अफगानिस्तान सरकार का शासन मुल्क के 20% हिस्से पर ही है। ‘हक्कानी नेटवर्क’ तालिबान और अलकायदा के बीच सेतु का काम कर रहा है।

उधर काबुल में पाकिस्तान के राजदूत ने विश्व समुदाय से मदद की अपील करते हुए कहा है कि अगर समय रहते हस्तक्षेप नहीं किया गया तो पाकिस्तान में शरणार्थियों की बाढ़ आ जाएगी। पाकिस्तान को 5 लाख शरणार्थियों के सीमा पार करने की आशंका है। चीन ने 210 नागरिकों को वापस बुला लिया है और अमेरिका की आलोचना की है। कंधार से भारत ने भी अपने कर्मचारियों को वापस बुला लिया है। काबुल और मजार-ए-शरीफ में कई भारतीय अधिकारी/कर्मचारी अब भी सक्रिय हैं।

अफगानिस्तान में तालिबान ने हाल ही में 7 पायलटों की हत्या की है, जिसके बाद वहाँ की वायुसेना के अधिकारी भी अपना घर-संपत्ति बेच कर किसी सुरक्षित जगह बसने में लगे हुए हैं। पायलटों को प्रशिक्षित करने में वर्षों लगते हैं और वो न सिर्फ थलसेना की ज़रूरी मदद करते हैं, बल्कि आतंकी ठिकानों पर बमबारी से लेकर हमले की साजिश रच रहे तालिबानी आतंकियों को निशाना बनाने की क्षमता रखते हैं।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया