फेसबुक के कंटेंट्स की निगरानी का जिम्मा संभालने वाली निकली ‘आतंकी संगठन’ की सदस्य: 20 में 18 जॉर्ज सोरोस के लोग

'मुस्लिम ब्रदरहुड' की सदस्य हैं फेसबुक की तवक्कुल करमन

फेसबुक के ओवरसाइट बोर्ड का जबसे गठन का प्रस्ताव आया, तभी से वो विवादों का हिस्सा बना हुआ है। जब सोशल मीडिया साइट फेसबुक पर कंटेंट्स को रेगुलेट करने के लिए इस प्लेटफॉर्म का सेटअप किया गया, तभी इसे लेकर खुलासा हुआ कि इसके 20 में से 18 सदस्य अमेरिकी अरबपति जॉर्ज सोरोस से जुड़े हुए हैं। यहूदी मूल के जॉर्ज सोरोस डेमोक्रेट पार्टी के बड़े वित्तीय डोनर भी हैं। ऐसे में निष्पक्षता को लेकर लोगों ने सवाल उठाए। अब फेसबुक का नाम ‘मुस्लिम ब्रदरहुड’ से जुड़ा है।

इसके बाद एक और ऐसा खुलासा हुआ है, जिसने सबकी भौहें तान दी हैं। फेसबुक ओवरसाइट बोर्ड का एक सदस्य ‘मुस्लिम ब्रदरहुड’ का हिस्सा है। ये एक आतंकी संगठन है, जिसे कई अरब और पश्चिमी देशों में प्रतिबंधित किया जा चुका है। ये विवाद तवक्कुल करमन को लेकर है, जो नोबेल शांति पुरस्कार की विजेता रह चुकी हैं। हालाँकि, उन्हें ये पुरस्कार मिलने के बाद भी काफी विवाद हुआ था और उँगलियाँ उठी थीं।

हालाँकि, अमेरिका के राष्ट्रपति रहे बराक ओबामा को भी ये पुरस्कार मिला था, जिन्होंने लीबिया पर हमला कर के उसे दासता की एक जंजीर में बाँध दिया और पूरे मध्य-पूर्व को एक तरह से अशांति के बुरे दौर में धकेल दिया। ‘मुस्लिम ब्रदरहुड’ का सदस्य होना ही अपनेआप में एक विवाद का विषय है। तवक्कुल इससे पहले वो ‘यमनी इस्लाह पार्टी (ISP)’ की सदस्य थीं, जिसे ‘मुस्लिम ब्रदरहुड’ का समर्थन हासिल था।

उन्हें 2011 में नोबेल मिला था। उन्होंने यहाँ तक कहा था कि ‘मुस्लिम ब्रदरहुड’ क्षेत्र में आधिकारिक अत्याचार और आतंकवाद के पीड़ितों में से एक है। ‘मुस्लिम ब्रदरहुड’ ने भी उनके साथ अपने जुड़ाव को स्वीकारा और नोबेल मिलने पर बधाई भी दी थी। सितम्बर 15, 2013 को बीबीसी अरबिया को दिए इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि जनवरी 2011 की मिस्र क्रांति की सबसे बड़ी सफलता थी कि आपातकाल के क़ानून को हटाया गया।

उन्होंने कहा था कि दुर्भाग्य से 2013 में इस क़ानून को फिर से लाया गया। उन्होंने कहा था, “मुस्लिम ब्रदरहुड और इसके कार्यकर्ता व समर्थक सैन्य शासन के खिलाफ रहे हैं और वो एक बड़े युद्ध में हैं, जिसकी कीमत वो अपने खून से चुका रहे हैं। वो अपनी दृढ़ता से ये लड़ाई लड़ रहे हैं। उनका लक्ष्य है कि वो इस क्रांति को सही रास्ते पर लेकर जाएँगे।” अरब में तो उन्हें फेसबुक बोर्ड में शामिल किए जाने के बाद खासा विरोध हुआ था।

राजनीतिक शास्त्र के प्रोफेसर डॉक्टर अब्दुल खलीक अब्दुल्ला का कहना है कि वो फेसबुक के कंटेंट्स को सुपरवाइज करने वाले बोर्ड में रहने की काबिल नहीं हैं। अमीरात के लेखक ओला अल शेख ने कहा कि उनकी नियुक्ति को दुर्गति बताते हुए कहा था कि इससे उन्हें अरब क्षेत्र को लेकर फेसबुक कंटेंट्स में अपने मनमाफिक काम करने की छूट मिलेगी, जो खतरनाक है। मिस्र में तो उनके खिलाफ खूब विरोध हुआ।

डॉक्टर हनी राजी का कहना है कि उनकी नियुक्ति का सीधा अर्थ है इजिप्ट, सऊदी अरब और यूएई में फेसबुक की सारी जिम्मेदारी ‘मुस्लिम ब्रदरहुड’ को दे देना। उन्होंने कहा कि या तो उन्हें कमिटी से निकाला जाएगा, या फिर फेसबुक ही बंद हो जाएगा। उन्होंने तवक्कुल को इन तीनों मुल्कों की सत्ता का घोर विरोधी करार दिया। आतंकवाद और असहिष्णुता के विशेषज्ञ हनी नसीरा ने भी उन्हें लेकर विरोध जताया।

https://twitter.com/fdeet_alnssr/status/1261807012272365568?ref_src=twsrc%5Etfw

उन्होंने बताया कि तवक्कुल को पहले तो यमनी क्रांति का प्रतीक माना जाता था, लेकिन समय के साथ वो असहिष्णुता, भेदभाव और निष्पक्षता के अभाव की एक पहचान बन गई हैं। नोबेल पुरस्कार जीतने के बाद तवक्कुल करमन को दोहा बुला कर ‘मुस्लिम ब्रदरहुड’ के नेता युसूफ अल करदावी ने सम्मानित किया था, ऐसी भी खबरें आई थीं। करदावी आत्मघाती बम हमलों का ऐलान कर चुका है और उसने हिटलर की भी सराहना करते हुए कहा था कि नाजी शासक ने यहूदियों को ‘दंड दिया’।

उनका कहना है कि तवक्कुल की वफादारी उन्हीं सरकारों के प्रति होती हैं, जिन्होंने लोकतंत्र और शासन के सारे नियमों को ताक पर रखा हुआ है, जैसे – तुर्की और क़तर। उन्होंने कहा कि ये दोनों ही मुल्क वस्तुनिष्ठता और निष्पक्षता के सारे सिद्धांतों को धता बताते हैं। उनका कहना है कि तवक्कुल की राजनीति के हिसाब से विभाजनकारी नीतियों और कट्टरवाद को बढ़ावा मिलता है, साथ ही जो उनसे सहमत नहीं होते उन्हें अलग-थलग करने की कोशिश होती है।

सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को लेकर अक्सर ऐसे आरोप लगते रहे हैं और उनका पक्षपाती रवैया सामने आता रहा है। इससे पहले फेसबुक के पूर्व कर्मचारी मार्क एस लकी ने कहा था कि कई बार वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा राजनीतिक दलों के इशारों पर कंटेंट मॉडरेशन टीम पर दबाव बनाया जाता है। इसके चलते कई बार फेसबुक को अपने ही कम्युनिटी स्टैंडर्ड से समझौता करना पड़ता है। साथ ही दावा किया था कि फेसबुक ने सही समय पर कार्रवाई की होती तो म्यांमार जनसंहार और श्रीलंका में हुए दंगों को आसानी से रोका जा सकता था।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया