जब 6 दिन में इजरायल ने बदल कर रख दिया था पूरे मिडिल-ईस्ट का नक्शा: एक साथ इजिप्ट, सीरिया और जॉर्डन को चटाई थी धूल, 20000 मौतों से सन्न रह गया था अरब जगत

6 दिन के युद्ध में इजरायल ने इजिप्ट, सीरिया और जॉर्डन - तीनों के इलाकों पर स्थापित किया नियंत्रण

इजरायल आज चौतरफा हमला झेल रहा है। जहाँ एक तरफ फिलिस्तीन के हमास आतंकियों ने जल, थल और नभ से यहूदी देश में घुसपैठ कर नरसंहार शुरू कर दिया, वहीं लेबनान से आतंकी संगठन हिज़्बुल्ला ने रॉक्स दागे। हमास ने 5000 रॉकेट दाग कर इस युद्ध की शुरुआत की, जिसके बाद इजरायल ने अपने नागरिकों की रक्षा के लिए कुछ भी करने की बात कहते हुए तगड़ी जवाबी कार्रवाई की। इजरायल एक छोटा सा देश है, यहूदी भी अल्पसंख्यक हैं, ऐसे में सवाल उठता है कि इस्लामी मुल्कों को ये इतना क्यों खटकता है?

इस सवाल का जवाब तलाशने के लिए हमें थोड़ा इतिहास में जाना होगा। इस्लामी मुल्कों से घिरे इस देश ने न सिर्फ तकनीक के मामले में खुद को दुनिया के सबसे उन्नत देशों में शुमार किया है, बल्कि सामरिक सुरक्षा के मामले में भी खुद को काफी सुदृढ़ किया है। इसकी एंटी-मिसाइल तकनीक ‘आयरन डोम’ की भी काफी चर्चा होती है, जो कई रॉकेट हमलों को एक साथ नेस्तनाबूत करने की क्षमता रखता है। हालाँकि, इस बार इजरायल के लिए कड़ी परीक्षा की घड़ी है क्योंकि इसके 300 से अधिक नागरिक मारे जा चुके हैं।

6 Day War: जानिए कैसे इजरायल ने इजिप्ट, सीरिया और जॉर्डन को हराया

आज जो इजरायल की सीमाएँ हैं, उसका इतिहास बहुत हद तक 1967 में हुए अरब-इजरायल युद्ध तक जाता है। तब इजरायल ने एक साथ सीरिया, मिस्र और जॉर्डन को हरा कर खुद को स्थापित किया था। अरब ने इस नए देश को उजाड़ने की पूरी कोशिश की, लेकिन वो नाकाम रहा। इस युद्ध को ‘6 Day War’ के नाम से जाना जाता है, क्योंकि ये 6 दिनों तक चला था। ये 5 से 10 जून, 1967 तक चला था। इससे पहले 1948 में उनके बीच युद्ध हुआ था, जो अगले ही साल युद्धविराम समझौतों के बाद खत्म हो गया था।

लेकिन, तनाव बरकरार रहा था। इसके बाद आता है 1956 का समय, जब सीनाई प्रयद्वीप और अरब के अकाबा की खाड़ी को जोड़ने वाले समुद्री रास्ते (Straights Of Tiran) को लेकर जंग छिड़ गई। भूमध्य सागर और लाल सागर के बीच स्थित इस संकरे समुद्री रास्ते में इजिप्ट ने इजरायली जहाजों को रोक दिया था, जिसके बाद ये युद्ध हुआ। इसके बाद इजरायली जहाजों को फिर से अनुमति मिली, साथ ही UN इमरजेंसी फ़ोर्स की स्थापना हुई। इस तरह से अरब और इजरायल का तनाव नया नहीं है।

1967 के युद्ध में इजरायल ने सबसे अपने अपनी वायुसेना के माध्यम से इजिप्ट पर एयर स्ट्राइक किया, उसके बाद थल सेना के माध्यम से आक्रमण किया। इजरायल ने न सिर्फ सीनाई प्रयद्वीप पर अपना नियंत्रण स्थापित किया, बल्कि गाजा पट्टी को भी अपने कब्जे में ले लिया। पहले इन दोनों पर इजिप्ट का कब्ज़ा था। इतना ही नहीं, इजरायल ने जॉर्डन से वेस्ट बैंक और ईस्ट जेरुसलम भी ले लिया। साथ ही सीरिया से पहाड़ी क्षेत्र गोलन हाइट्स का नियंत्रण भी इजरायल की सेना के पास चला गया।

इस तरह इस युद्ध में इन तीनों इस्लामी मुल्कों को बड़ी भौगोलिक क्षति पहुँचा कर इजरायल ने एक तरह से पूरे मिडिल-ईस्ट का नक्शा बदल दिया। जब तक UN ने समझौता कराया, इजरायल का काम हो चुका था। 1948 में पहले अरब-इजरायल युद्ध के दौरान इस छोटे से यहूदी देश को मिटाने की जो कोशिश शुरू हुई थी, वो आज भी जारी है। वहीं 1956 वाले युद्ध को ‘Suez Crisis’ के नाम से जाना जाता है। तब स्वेज़ नहर को मिस्र के तत्कालीन राष्ट्रपति जमाल अब्देल नसर ने इस नहर का संचालन करने वाली ब्रिटिश-फ्रेंच स्वामित्व वाली कंपनी का राष्ट्रीयकरण कर दिया था।

उसके बाद इजरायल ने गाजा पट्टी के माध्यम से हमला बोला, पीछे से UK और फ्रांस भी पहुँचे। इजरायल के जहाज ‘स्ट्रेट्स ऑफ़ तिरान’ के माध्यम से आने-जाने लगे, जिसे इजिप्ट ने पहले रोक रखा था। इजरायल को तभी से एहसास है कि उसके अस्तित्व पर बहुत बड़ा खतरा मँडरा रहा है। जहाँ तक 6 दिन वाले युद्ध का सवाल है, उसके पीछे भी कई कारण हैं। इनमें मुख्य है – फिलिस्तीन के आतंकियों को सीरिया ने संरक्षण देना शुरू कर दिया था और उसके माध्यम से इजरायल में गुरिल्ला युद्ध को अंजाम देता था।

अप्रैल 1967 में इजरायल और सीरिया सीधे आमने-सामने आ गए, जिसमें सीरिया के 6 फाइटर जेट्स तबाह हो गए। इसके बाद सोवियत यूनियन ने इजिप्ट को ख़ुफ़िया सूचना दी कि इजरायल उसकी उत्तरी सीमाओं की तरफ सेना को पूरी तैयारी के साथ भेज रहा है। ये सूचना पुष्ट नहीं थी, लेकिन इजिप्ट एक्शन में आ गया। उसने अपनी फ़ौज को सीनाई पेनिनसुला की तरफ मार्च करने का आदेश दिया। वहाँ से UN की पीसकीपिंग फ़ोर्स को हटा दिया गया।

मई 1967 में एक बार फिर से मिस्र के राष्ट्रपति जमाल अब्देल नसर ने इजरायली जहाजों के लिए तिरान जलडमरूमध्य में आवागमन को रोक दिया। इसी महीने में उन्होंने जॉर्डन की किंग हुसैन के साथ एक रक्षा समझौते पर भी हस्ताक्षर किया। उस समय डेमोक्रेटिक पार्टी के लिंडन बी जॉनसन अमेरिका के राष्ट्रपति हुआ करते थे। उनके नेतृत्व में अमेरिका ने भी तिरान के समुद्री रास्ते को कब्ज़ा मुक्त कराने का अभियान चलाया। ये योजना सफल नहीं हुई और जून 1967 में इजरायल के नेताओं ने स्ट्राइक करने के लिए वोटिंग की।

इसके साथ ही 5 जून को ऑपरेशन भी शुरू हो गया और इजरायली वायुसेना हरकत में आ गई। इजिप्ट के खिलाफ हवाई हमले किए गए, जिसे ‘ऑपरेशन फोकस’ कहा गया। इसके लिए करीब 200 फाइटर जेट्स का इस्तेमाल किया गया जिन्होंने भूमध्य सागर से होकर इजिप्ट पर हमला बोला। जमीन पर ही इजिप्ट की 90% वायुसेना को तबाह कर दिया गया। उसके 18 एयरफील्ड्स बर्बाद कर दिए गए। दिन खत्म होने-होने तक पूरे मिडिल-ईस्ट के आसमान पर इजरायल ही मँडरा रहा था और एक तरह से उसका एकाधिकार आ गया था।

हवाई हमलों के फायदा उठाने हुए उसी दिन गाजा पट्टी और सीनाई प्रायद्वीप में भी इजरायल की जमीनी सेना घुसी। इजिप्ट की सेना बिखर गई और उन्हें भारी क्षति पहुँची। उधर जॉर्डन के पास गलत खबर पहुँच गई कि इजिप्ट जीत रहा है और उसने इजरायल पर बमबारी शुरू कर दी। इसके बाद ईस्ट जेरुसलम और वेस्ट बैंक में घुस कर इजरायली सेना ने तगड़ा पलटवार किया। आखिरकार 7 जून को जेरुसलम पर इजरायल का कब्ज़ा हुआ और वेस्टर्न वॉल (2000 वर्ष प्राचीन यहूदियों के ‘सेकेण्ड टेम्पल’ का अंश) में यहूदी प्रार्थना सभा आयोजित की गई, साथ ही जीत का जश्न भी मनाया गया।

युद्ध का अंतिम चरण इजरायल की उत्तर-पूर्वी सीमा पर लड़ा गया। 9 जून को इजरायल भारी गोलीबारी के बाद सीरिया के गोलन हाइट्स में घुसा। अगले दिन वहाँ उसका नियंत्रण स्थापित हो गया। उसी दिन संयुक्त राष्ट्र ने समझौता करा कर युद्ध विराम करवाया। हालाँकि, तब तक 132 घंटे चले इस युद्ध में 20,000 अरब और 800 इजरायली मारे जा चुके थे। मिस्र के राष्ट्रपति को अपमानजनक तरीके से इस्तीफा देना पड़ा। हालाँकि, समर्थन में हुई रैलियों के बाद वो फिर वापस आ गए थे।

इस हार ने पूरे अरब जगत को सन्न कर दिया था। इससे इजरायल के भीतर एक आत्मविश्वास और वहाँ की जनता में गौरव का संचार हुआ। अगस्त 1967 में सूडान के खार्तूम में अरब नेताओं की मुलाकात हुई। उन्होंने आपस में समझौता किया कि इजरायल को कभी मान्यता नहीं दी जाएगी। इजरायल में गाजा पट्टी के साथ-साथ करीब 10 लाख फिलिस्तीनी भी आ गए थे, जिनमें से कई भाग खड़े हुए। इजरायल ने 1982 में सीनाई प्रायद्वीप और 2005 में गाजा पट्टी शांति समझौते के तहत लौटा दी, लेकिन गोलन हाइट्स पर उसका नियंत्रण बना रहा।

1967 का इजरायल-अरब युद्ध और उसके पीछे की कहानी

सोचिए, यहूदी वो समाज है जिसके 60 लाख लोगों को द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान नाज़ी जर्मनी के हिटलर ने मरवा दिया था, उसके बाद भी ये समाज उठ खड़ा हुआ। इसे खत्म करने की कोशिशें आज भी जारी हैं। 1948 के युद्ध में जमाल अब्देल नसर की उम्र 30 साल थी और वो तब मेजर हुआ करते थे। इजरायल की जीत के बावजूद फल्लुजा पॉकेट (गाजा से 30 किलोमीटर दूर स्थित एक गाँव) में इजिप्ट की फ़ोर्स ने सरेंडर करने से इनकार कर दिया था।

पहले अरब-इजरायल युद्ध के नायक थे इजरायल के दक्षिणी फ्रंट पर ऑपरेशन को अंजाम दे रहे इटझाक राबिन। 1948 के युद्ध को आज भी ‘अल-नकबा’ यानी बड़ी तबाही के रूप में जाना जाता है, क्योंकि तब भी साढ़े 7 लाख फिलिस्तीनियों को इजरायल के नियंत्रण से भागना पड़ा था। यही वो युद्ध था जिसके कारण सेना ने सत्ताओं पर कब्ज़ा करना शुरू कर दिया। सीरिया में भी कई बार मिलिट्री ने सत्ता पर कब्ज़ा किया। 1948 के युद्ध के 4 साल बाद इजिप्ट में भी नसर ने किंग को तख़्त से उतार कर सत्ता कब्ज़ा ली।

वहीं इजरायल में राबिन 1967 में सेनाध्यक्ष बने। दोनों तभी से सुलग रहे थे। ये वो समय था, जब सोवियत यूनियन इजिप्ट की मदद किया करता था, उसकी वायुसेना को आधुनिक बनाने के लिए तकनीक और हथियार दिए गए। वहीं इजरायल के उस समय भी अमेरिका के साथ संबंध अच्छे तो थे, लेकिन वो फ़्रांस से लड़ाकू विमान और ब्रिटेन से तोप खरीदा करता था। 1967 तक इजरायल ने दुनिया की सबसे ताकतवर सेनाओं में से एक तैयार कर लिया था और परमाणु बम बनाने की ओर अग्रसर था।

भले ही उस समय अरब एकता की बातें चलती थीं, लेकिन जॉर्डन और सऊदी अरब के शासकों में एक असुरक्षा की भावना थी कि जिस तरह इजिप्ट और सीरिया में राजाओं को हटा कर सेना ने सत्ता कब्ज़ा ली है, वैसी क्रांतियाँ वहाँ न होने लगें। जॉर्डन के राजा थे किंग हुसैन, जिनके दादा अब्दुल्ला को जेसुसालमन में अल-अक्सा मस्जिद के बाहर एक कट्टर फिलिस्तीनी ने ही मार डाला था। 1948 में ब्रिटेन से उस क्षेत्र से वापस जाने के दौरान अब्दुल्ला और यहूदी संस्था ‘ज्यूइश एजेंसी’ में जमीन के बँटवारे को लेकर काफी बातचीत हुई थी, बाद में जॉर्डन और इजरायल थोड़े करीब भी आए थे।

1967 के युद्ध के बाद इन अरब देशों में भी उथल-पुथल मची थी। इजिप्ट में हमने देखा कि कैसे राष्ट्रपति का इस्तीफा हुआ, फिर प्रदर्शनों के बाद वो वापस आए। सीरिया में 1970 में वायुसेना कमांडर हाफिज उल असद ने सत्ता कब्ज़ा लिया और राष्ट्रपति बने। उनकी मौत के बाद 2000 में उनके बेटे बशर राष्ट्रपति बने। ये युद्ध इजरायल की रणनीतिक तैयारियों के लिए जाना गया, जहाँ उसने 48 घंटों में ढाई लाख प्रशिक्षित सैनिकों को काम पर लगा दिया।

2 दिनों के भीतर अधिकतर इजरायली सैन्य यूनिफॉर्म में थे। उस दौरान लेवी एशकोल इजरायल के प्रधानमंत्री हुआ करते थे। हालाँकि, उन्हें रक्षा मंत्रालय युद्ध के नायकों में से एक मोशे डायन को सौंपना पड़ा था। 1969 में हार्ट अटैक से उनकी मौत की वजह भी यही चीजें मानी गईं। एक आँख वाले डायन ही थे, जिन्होंने कहा कि पहले युद्ध होगा, राजनीति बाद में देखी जाएगी। 1956 के संघर्ष में अमेरिका ने इजरायल को कब्ज़ाए हुए इलाके लौटाने को कहा था, इसी तरह 1967 में पहली गोली न चलाने की सलाह दी थी। आज अमेरिका उस दौर से ज़्यादा इजरायल के करीब है और खुल कर उसके साथ है।

अनुपम कुमार सिंह: भारत की सनातन परंपरा के पुनर्जागरण के अभियान में 'गिलहरी योगदान' दे रहा एक छोटा सा सिपाही, जिसे भारतीय इतिहास, संस्कृति, राजनीति और सिनेमा की समझ है। पढ़ाई कम्प्यूटर साइंस से हुई, लेकिन यात्रा मीडिया की चल रही है। अपने लेखों के जरिए समसामयिक विषयों के विश्लेषण के साथ-साथ वो चीजें आपके समक्ष लाने का प्रयास करता हूँ, जिन पर मुख्यधारा की मीडिया का एक बड़ा वर्ग पर्दा डालने की कोशिश में लगा रहता है।