TIME मैगज़ीन ‘बौद्धिक’ लोगों का मंच होने की आड़ में प्रोपेगेंडा फैलाने के लिए कुख्यात रही है। अस्तित्व में आने के बाद से ही इसने वामपंथी मुखपत्र के रूप में काम किया है, जो ऐसी मिथकों और नैरेटिव को गढ़ने की कोशिश की है, जो वास्तविकता से बहुत दूर रही है। पाखंड की सीमा को पार करते हुए इसने ऑल्ट न्यूज़ (ALT News) के मोहम्मद जुबैर (Mohammad Zubair) और प्रतीक सिन्हा (Pratik Sinha) को नोबेल शांति पुरस्कार 2022 के लिए योग्य उम्मीदवार बता दिया है।
हालाँकि, नोबेल शांति पुरस्कार बहुत पहले ही अपनी विश्वसनीयता खो चुका है। पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के 2009 में जीतने के बाद मध्य-पूर्व में बम गिराकर सैकड़ों लोगों की जान लेने के बावजूद उन्हें ‘उदार’ पेश करते हुए यही अवॉर्ड दिया गया था।
TIME मैगज़ीन खुद को फैक्ट चेकर कहने वाले मोहम्मद जुबैर और प्रतीक सिन्हा को इस साल के नोबेल शांति पुरस्कार के संभावित विजेताओं की सूची में रखा है। इस सूची में अन्य नाम वलोडिमिर ज़ेलेंस्की, डब्ल्यूएचओ, डेविड एटनबरो, ग्रेटा थुनबर्ग, एलेक्सी नवलनी सहित कई नाम हैं।
मोहम्मद जुबैर वही शख्स है, जिसके कारण कट्टरपंथियों ने देश में ‘सर तन से जुदा’ का आतंक फैला रखा था। इस हिंसा के कारण उदयपुर के कन्हैया साहू और अमरावती के उमेश कोल्हे सहित कम-से-कम 6 हिंदुओं को जान गँवानी पड़ी। ऐसे व्यक्ति को नोबेल शांति पुरस्कार 2022 की सूची में स्थान देना अत्यंत निंदनीय है और यह टाइम मैगज़ीन के निम्न मानकों को भी दर्शाता है।
TIME मैगज़ीन ने वही किया है, जो पश्चिमी मीडिया भारत के बारे में समाचारों को कवर करने के लिए जाने जाते हैं: अश्लीलता का सहारा लेना, तथ्यों को विकृत करना और एकतरफा स्टोरी प्रस्तुत करना। इसने सिन्हा और जुबैर को ऑनलाइन गलत सूचनाओं से जूझ रहे धर्मयुद्ध के रूप में वर्णित किया है। हालाँकि, ये नहीं बताया कि इन दोनों को फर्जी खबरें और झूठ फैलाते हुए रंगे हाथों पकड़ा गया था।
TIME ने अपने आर्टिकल में लिखा है, “भारतीय फैक्ट-चेक वेबसाइट AltNews के सह-संस्थापक और पत्रकार प्रतीक सिन्हा और मोहम्मद जुबैर भारत में गलत सूचनाओं से लगातार जूझ रहे हैं, जहाँ हिंदू राष्ट्रवादी पार्टी भाजपा पर मुस्लिमों के खिलाफ अक्सर भेदभाव के आरोप लगाए जाते हैं। यह एक तरह से भारत को बदनाम करने की भी कोशिश है।
दोनों शॉर्टलिस्ट नहीं
एक तरफ दोनों के नामों का अफवाह है तो दूसरी तरफ इन दोनों से सहानुभूति रखने वालों ने गलत सूचनाएँ फैलाना शुरू कर दिया कि जुबैर और सिन्हा नोबेल शांति पुरस्कार के लिए शॉर्टलिस्ट किए गए हैं। जुबैर और सिन्हा के कई समर्थकों ने सोशल मीडिया पर फेक न्यूज फैलाने का काम किया है।
जिस तरह से अफवाह उड़ाई जा रही है, उसमें शांति नोबेल पुरस्कार पाने वालों की आधिकारिक सूची जैसा कुछ भी नहीं है। यह टाइम मैगजीन द्वारा उल्लेखित कुछ नाम हैं, जिसको लेकर उसने सिर्फ अटकलें लगाई हैं। वहीं, जुबैर और सिन्हा के चीयरलीडर्स एक मीडिया संस्था की अटकलों और शॉर्टलिस्ट की सूची के बीच अंतर नहीं कर पा रहे हैं।
जुबैर ने न सिर्फ मुस्लिमों को भड़काकर कई हत्याएँ करवाईं, बल्कि वह फैक्ट और अपने ट्वीट के जरिए हिंदू देवी-देवताओं और हिंदू धर्म पर आपत्तिजनक टिप्पणी भी करता रहा है। उसके अतीत के ट्वीट इस बात के गवाह हैं। हिंदू भगवान का मजाक उड़ाने के लिए उस पर भारतीय कानून के तहत उस पर कार्रवाई भी जारी है।
इस्लामवादियों के समर्थन में जुबैर के साथ TIME भी
इसमें आश्चर्य की बात नहीं है कि टाइम मैगजीन ने इस साल के नोबेल शांति पुरस्कार के लिए अपने पसंदीदा मोहम्मद जुबैर को चुना, क्योंकि दोनों का इतिहास और पाखंड लगभग एक जैसा है। टाइम मैगजीन का कट्टरपंथी विचारधारा और इस्लामवादियों को बचाने और उन्हें महिमामंडित करने का लंबा इतिहास है, जबकि उनके पीड़ितों को उसने हमलावर के रूप में चित्रित है।
कन्हैया लाल की निर्मम हत्या के बाद टाइम मैगजीन ने एक लेख प्रकाशित किया था, जिसमें इस्लामवादियों की करतूत को छिपाकर पीड़ित को उनकी दुर्दशा के लिए जिम्मेदार ठहरा दिया। कन्हैया लाल की हत्या पर टाइम में लिखते हुए सान्या मंसूर ने कहा था कि गरीब हिंदू दर्जी ने पूर्व भाजपा प्रवक्ता नूपुर शर्मा की ‘अपमानजनक टिप्पणियों’ का समर्थन करके इस्लामवादियों का गुस्सा मोल ले लिया था।
TIME मैगजीन द्वारा हिंदुओं के खिलाफ प्रदर्शित ऐतिहासिक पूर्वाग्रह और इस्लामवादियों के प्रति इसके पक्षपात को देखते हुए यह आश्चर्यजनक नहीं है कि मोहम्मद जुबैर को नोबेल शांति पुरस्कार के लिए चुना। यह भारत के संदर्भ में उसके प्रोपेगेंडा को और मजबूत करने वाला एक तरह आधार बनाने की जैसा है।