WHO को ट्रम्प ने दिया झटका: अमेरिका हुआ विश्व स्वास्थ्य संगठन से आधिकारिक तौर पर अलग, भेजा पत्र

अमेरिकी राष्ट्रपति ने रोकी WHO की फंडिंग

कोरोना वायरस से त्रस्त अमेरिका लगातार विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की भूमिका पर सवाल उठा रहा है। ऐसे में अभी तक खबर आ रही थी कि विश्व के सबसे शक्तिशाली देश ने स्वयं को WHO से अलग करने का फैसला कर लिया है। अब खबर ये है कि WHO से अपनी सदस्यता वापस लेने के लिए ट्रंप सरकार ने संबंधित पत्र भी भेज दिया है।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, 6 जुलाई, 2021 के बाद अमेरिका WHO का सदस्य नहीं रह जाएगा। 1984 में तय नियमों के तहत किसी की भी सदस्यता वापस लेने के साल भर बाद ही देश को WHO से निकाला जाता है। इसके अलावा WHO के सभी बकाए भी चुकाने होते हैं। अब अमेरिका को भी WHO के सभी बकाए चुकाने होंगे।

अमेरिकी सिनेटर रॉबर्ट मेनेन्डेज ने ट्वीट करके इस बात की पुष्टि की है। अपने ट्वीट में उन्होंने बताया कि कॉन्ग्रेस को यह नोटिफिकेशन मिली है कि POTUS ने महामारी के बीच में आधिकारिक तौर पर US को WHO से अलग कर लिया है। उनका (रॉबर्ट मेनेन्डेज) कहना है कि ट्रंप सरकार के इस फैसले से अमेरिका बीमार और अकेला पड़ जाएगा।

https://twitter.com/SenatorMenendez/status/1280556507365597190?ref_src=twsrc%5Etfw

अमेरिकी सीनेटर के अतिरिक्त न्यूजनेशन के कंसल्टिंग एडिटर दीपक चौरसिया ने भी इस संबंध में ट्वीट किया है। उन्होंने लिखा, “अमेरिका अब WHO का सदस्य नहीं रहा। डोनाल्ड ट्रंप सरकार ने WHO को इस बाबत अपना फैसला भेज दिया है। ये WHO और अन्य देशों के लिए जबरदस्त झटका हो सकता है। साथ ही अप्रैल महीने से अमेरिकी सरकार ने WHO को फंडिंग देना भी बंद कर दिया था।”

https://twitter.com/DChaurasia2312/status/1280773009716899840?ref_src=twsrc%5Etfw

गौरतलब है कि अमेरिका ने विश्व स्वास्थ्य संगठन पर अपना रवैया अप्रैल से ही सख्त कर दिया था। इससे पहले अमेरिका ने WHO को फंडिग देना बंद किया था और साथ ही ये कहा था कि कोरोना वायरस के चीन में उभरने के बाद इसके प्रसार को छिपाने और गंभीर कुप्रबंधन में संगठन की भूमिका की समीक्षा की जा रही है।

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने कहा था, “मैं अपने प्रशासन को विश्व स्वास्थ्य संगठन के वित्त पोषण को रोकने का निर्देश दे रहा हूँ। हर कोई जानता है कि वहाँ क्या चल रहा है। WHO को अमेरिकी करदाता प्रत्येक वर्ष 400-500 मिलियन डॉलर सहयोग के तौर पर देता है और वहीं इसके विपरीत चीन संगठन को लगभग 40 मिलियन डॉलर से भी कम प्रति वर्ष योगदान के रूप में देता है।”

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया