अर्नब गोस्वामी पर कण्ट्रोल के लिए कॉन्ग्रेस शासित राज्यों में दर्ज हुए सैकड़ों FIR: SC ने कहा- मीडिया पर नहीं होना चाहिए अंकुश

सुप्रीम कोर्ट ने कहा अर्नब गोस्वामी मामला इसलिए तत्काल सुना गया क्योंकि यह मीडिया की स्वतंत्रता से जुड़ा हुआ था

सुप्रीम कोर्ट ने आज (अप्रैल 24, 2020) रिपब्लिक टीवी के संपादक अर्नब गोस्वामी (Arnab Goswami) की याचिका पर सुनवाई करते हुए उनकी गिरफ़्तारी पर 3 सप्ताह के लिए रोक लगा दी है। इस दौरान वे अग्रिम जमानत भी माँग सकते हैं। अपने खिलाफ विभिन्न राज्यों में दर्ज एफआईआर (FIR) को लेकर अर्नब ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। उनकी ओर से वकील मुकुल रोहतगी ने राहत के लिए याचिका दायर की थी।

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मुकल रोहतगी ने आज मामले की सुनवाई शुरु होने पर कहा, अर्नब ने अपने प्रोग्राम में पुलिस के गैर जिम्मेदाराना रवैये पर सवाल खड़े किए थे। उन्होंने कॉन्ग्रेस अध्यक्ष की खामोशी पर सवाल खड़े करते हुए पूछा था कि अगर मरने वाले अल्पसंख्यक समुदाय के होते तो क्या तब भी वो यूँ ही खामोश रहतीं। मगर, 21 अप्रैल को प्रसारित हुए इस प्रोग्राम के बाद ही कई राज्‍यों में उन पर एफआईआऱ दर्ज करवा दी गई। 

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रोहतगी ने कहा, अर्नब के खिलाफ दर्ज इन FIR की भाषा एक जैसी है। कॉन्गेस नेता ऐसे ट्वीट कर रहे हैं, जैसे वो मानहानि का मुकदमा दायर करने जा रहे हैं, जबकि मानहानि का मुकदमा सिर्फ पीड़ित पक्ष की ओर से किया जा सकता है।

बता दें, आज (शुक्रवार) को सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एमआर शाह की दो सदस्यीय पीठ ने इस मामले पर सुनवाई की। जहाँ रोहतगी ने अपने मुवक्किल की ओर से कहा कि रात को घर लौटते वक्त अर्नब और उनकी पत्नी पर मोटरसाइकिल सवार दो लोगों ने हमला किया। यह अभिव्यक्ति की आजादी को दबाने की कोशिश है।

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उन्होंने कहा, सुप्रीम कोर्ट हमेशा अभिव्यक्ति की आजादी का पक्षधर रहा है। दो साधुओं की हत्या के बाद हिंदू समाज में रोष था। क्या उस गुस्से को सामने रखना, सवाल पूछना गलत है? रोहतगी ने यह भी कहा, अर्नब की डिबेट में कोई धार्मिल एंगल नहीं था। उन्होंने सिर्फ़ कॉन्ग्रेस अध्यक्ष की खामोशी, साधु समाज में रोष और पुलिस की अकर्मण्यता को लेकर सवाल किए थे।

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इसके बाद विपक्ष के वकील कपिल सिब्बल ने भी अपना पक्ष रखा। सिब्बल ने कोर्ट में आर्टिकल 32 का हवाला दिया। उन्होंने कहा यह मामला सुप्रीम कोर्ट के दखल का नहीं है। इसलिए, मुकदमा दर्ज हुआ है, तो पुलिस को अपना काम करने देना चाहिए। हाँ, सभी एफआईआर को एक साथ जोड़ा जा सकता है, ताकि एक साथ जाँच हो पर ऐसे एफआईआर रद्द नहीं की जा सकती। 

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सिब्बल ने ये भी कहा कि अगर कॉन्ग्रेस कार्यकर्ताओं ने एफआईआर दर्ज कराई है, तो उसमें दिक्कत क्या है? राहुल गाँधी ने बीजेपी कार्यकर्ताओं की ओर से दायर मानहानि के मुकदमों को झेला है। छत्तीसगढ़ के वकील विवेक तन्‍खा ने भी कहा कि अर्नब ने ब्रॉडकास्ट लाइसेंस का उल्लंघन कर सांप्रदायिक उन्माद फैलाया। उन्हें इसके लिए कोई रियायत नहीं दी जानी चाहिए।

दोनों पक्ष के मत सुनकर, SC ने माना कि अर्नब गोस्वामी के खिलाफ एक ही मामले में कई राज्यों में मुकदमा नही चलाया जा सकता। लिहाजा सभी एफआईआऱ को एक साथ जोड़ा जाए। अदालत ने अर्नब को जाँच में सहयोग करने को कहा। अब इस मामले पर सुनवाई 8 हफ्तों के बाद होगी। कोर्ट ने याचिकाकर्ता अर्नब को भी याचिका में संशोधन करने को कहा। अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता कोर्ट से सभी याचिकाओं को एक साथ जोड़े जाने का आग्रह करें।

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इसके अलावा, बता दें, इस मामले की सुनवाई में जस्टिस चंद्रचूड़ ने एक महत्तवपूर्ण बात कही। उन्होंने कहा कि मीडिया पर कोई अंकुश नहीं होना चाहिए। मैं मीडिया पर किसी भी तरह की पाबंदी लगाने का विरोधी हूँ।

गौरतलब है कि बीते दिनों कॉन्ग्रेस नेताओं ने अर्नब गोस्वामी के डिबेट के बाद उनपर आरोप लगाया था कि उन्होंने पार्टी अध्यक्ष सोनिया गाँधी को लेकर आपत्तिजनक टिप्पणी की । जिसे लेकर उनके ख़िलाफ़ महाराष्ट्र, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कॉन्ग्रेस पदाधिकारियों ने अर्नब के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई थी और रात में यूथ कॉन्ग्रेस के सदस्यों ने उनपर हमला भी किया था।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया