3 हफ्ते में सरेंडर करो: भीमा कोरेगाँव मामले में 2 ‘अर्बन नक्सलियों’ की जमानत याचिका ख़ारिज, पासपोर्ट होगा जब्त

सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो)

महाराष्ट्र के भीमा-कोरेगांव हिंसा मामले में सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने माओवादियों से संबंध रखने के आरोपी गौतम नवलखा और आनंद तेलतुंबडे की अग्रिम जमानत याचिका को खारिज कर दिया। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट जज अरुण मिश्रा और जस्टिस एम. आर. शाह की बेंच ने ‘अर्बन नक्सल’ गौतम नवलखा और तेलतुंबडे को आत्मसमर्पण करने के लिए तीन हफ्तों का समय दिया है। साथ ही दो जजों की इस बेंच ने दोनों आरोपितों को जल्द से जल्द अपना पासपोर्ट जमा करने का आदेश दिया है।

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ध्यातव्य है कि अदालत ने छह मार्च को दोनों कार्यकर्ताओं को दी गई गिरफ्तारी से अंतरिम सुरक्षा को आज यानी 16 मार्च तक बढ़ा दिया था। जिस पर आज सुनवाई हुई। तेलतुंबडे और नवलखा ने अग्रिम जमानत के लिए सुप्रीम कोर्ट का रुख पिछले साल नवंबर में तब किया था जब गिरफ्तारी से बचने के लिए पुणे की सत्र अदालत ने उनकी अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी थी।

याद रहे कि 18 दिसंबर को पुलिस ने 19 के ख़िलाफ़ आरोप तय किए थे। इनमें सुधीर धावले, रोना विल्सन, सुरेंद्र गडलिंग, महेश राउत, शोमा सेन, अरुण फेरेरा, वर्नोन गोंजाल्वेस, सुधा भारद्वाज और वारवरा राव शामिल थे। ख़बर के अनुसार, इस मामले को ‘पीएम नरेंद्र मोदी की हत्या की साज़िश’, ‘सरकार को उखाड़ फेंकना’, ‘भारत सरकार के ख़िलाफ़ युद्ध छेड़ना’ ग़ैर-क़ानूनी गतिविधि निरोधक अधिनियम (UPA) के तहत दर्ज किया गया था। दर्ज किए गए मामले में कहा गया था कि कुछ लोग प्रतिबंधित भाकपा-माओवादी पार्टी के सदस्य थे। अगर ‘भारत के ख़िलाफ़ युद्ध छेड़ने’ के तहत उन्हें दोषी पाया जाता है, तो उन्हें IPC धारा-121 के अनुसार मौत की सज़ा या आजीवन कारावास का सामना करना पड़ेगा।

अपनी चार्जशीट में, पुलिस ने यह भी खुलासा किया था कि सभी 19 आरोपित पूर्व पीएम राजीव गाँधी की हत्या के समान रोड शो के दौरान पीएम नरेंद्र मोदी की हत्या की साज़िश रच रहे थे। इसके अलावा, चार्जशीट में यह भी कहा गया था कि एल्गर परिषद हिंसा आरोपितों द्वारा सरकार को उखाड़ फेंकने और भीम कोरेगाँव में झड़पों के माध्यम से लोगों को उकसाने, उपद्रव करने, भड़काने और आतंकवादी गतिविधियों के लिए कैडर की भर्ती करने समेत अवैध कार्य करना साज़िश का हिस्सा थे।

पुणे पुलिस के अनुसार, 31 दिसंबर, 2017 को शहर में आयोजित एल्गर परिषद कार्यक्रम को सीपीआई (माओवादी) द्वारा वित्त पोषित किया गया था, जो सामाजिक अशांति पैदा करने और सरकार को उखाड़ फेंकने की एक बड़ी साज़िश का हिस्सा थी। पुलिस का कहना है कि भड़काऊ बयानों के कारन 1 जनवरी, 2018 को भीमा कोरेगाँव में हिंसा भड़की थी।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया