पाकिस्तानी आतंक की सड़ाँध ईरान और अफ़ग़ानिस्तान तक है

आतंकवादियों की नर्सरी- अफ़ग़ानिस्तान पाकिस्तान सीमा (Representational image)

दुनिया के पहले इस्लामिक स्टेट पाकिस्तान से केवल भारत ही नहीं अपितु उसके पड़ोसी ईरान और अफ़ग़ानिस्तान भी त्रस्त हैं। कुछ दिनों पहले ही पाकिस्तान द्वारा समर्थन प्राप्त आतंकी संगठन जैश-अल-अदल ने एक आत्मघाती हमला कर ईरान रेवोल्यूशनरी गार्ड्स के 27 फ़ौजियों को मार डाला और 10 अन्य को घायल कर दिया। यह हमला भी उसी प्रकार किया गया था जैसे कश्मीर के पुलवामा में CRPF के काफ़िले पर 14 फरवरी को किया गया था।

जैश-अल-अदल नामक सुन्नी सलाफ़ी विचारधारा वाला आतंकी संगठन ईरान के सिस्तान-बलूचिस्तान प्रांत में सक्रिय है और इसे पाकिस्तान का परोक्ष समर्थन प्राप्त है। ईरान का सिस्तान-बलूचिस्तान प्रांत, पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत से सटा हुआ है। ईरान ने पाकिस्तान को चेतावनी दी है कि वो जैश-अल-अदल पर तुरंत कार्रवाई करे अन्यथा ईरान अपने तरीके से बदला लेगा।

पाकिस्तान द्वारा पोषित आतंकवाद से भारत के बाद जो देश सबसे ज्यादा त्रस्त है वह है अफ़ग़ानिस्तान। हाल ही में पाकिस्तान में तालिबान और इमरान खान के बीच मीटिंग होने वाली थी जिसके लिए सारी तैयारियाँ की जा चुकी थीं। इस्लामाबाद में स्कूल कॉलेज बंद कर दिए गए थे और सार्वजनिक छुट्टी का ऐलान कर दिया गया था। जिस दिन तालिबान के साथ मीटिंग होने वाली थी उसी दिन सऊदी अरब के प्रिंस को भी इस्लामाबाद बुलाया गया था।

कहा तो यह भी जा रहा था कि इस्लामाबाद में तालिबान के साथ अमरीकी अधिकारियों की मीटिंग होने वाली थी। हास्यास्पद रूप से यह मीटिंग आखरी वक्त में निरस्त कर दी गई क्योंकि तालिबान के लीडरों को संयुक्त राष्ट्र और अमेरिका द्वारा आतंकवादी घोषित किया गया है इसलिए वे अंतर्राष्ट्रीय सीमा पार नहीं जा सकते।

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अफ़ग़ानिस्तान ने इस मीटिंग पर संयुक्त राष्ट्र में अपने स्थाई मिशन के हवाले से कड़ी आपत्ति जताते हुए पाकिस्तान से अपनी सरज़मीं पर पनपने वाले आतंकवाद को खत्म करने को कहा। अमेरिका के साथ होने वाली कथित गुप्त मीटिंग से करीब एक पखवाड़े पहले तालिबान के ‘प्रवक्ता’ ने एक साक्षात्कार दिया था जिसमें उसने कहा था कि तालिबान चाबहार परियोजना की सुरक्षा करेगा और अफ़ग़ानिस्तान में रहने वाले हिन्दुओं और सिखों के हितों की रक्षा करेगा।

वह गुप्त मीटिंग तो नहीं हो पाई लेकिन इस पूरे प्रकरण से जो बात निकलकर सामने आई वह यह है कि तालिबान आज भी खुद को एक शासक (ruling regime) की तरह प्रोमोट करता है। वह अमेरिका से सैन्य टुकड़ियों की वापसी (withdrawl of troops) के बारे में बात करने को इच्छुक है, वह चाबहार परियोजना और हिन्दू और सिख जैसे समुदायों की रक्षा की बात करता है। वह भी तब उसके कथित ‘लीडर’ अंतर्राष्ट्रीय मंच पर घोषित आतंकवादी हैं।

इन आतंकवादियों को पाकिस्तान और सऊदी से निरंतर खाद-पानी मिलता है। जानने लायक बात यह है कि अफ़ग़ानिस्तान की आम जनता पाकिस्तान की जनता की भाँति भारत विरोधी नहीं है। अफ़ग़ानिस्तान के लोग भारत से प्रेम करते हैं। अफ़ग़ानिस्तान के उप विदेश मंत्री हेकमत खलील करज़ई Terrorism in Indian Ocean Region पुस्तक में प्रकाशित अपने लेख में भारत और अफ़ग़ानिस्तान के मध्य संबंधों पर लिखते हैं “ये मुहब्बत है दिलों का रिश्ता, ऐसा रिश्ता जो ज़मीनों की तरह, सरहदों में कभी तक़सीम नहीं हो सकता।”

करज़ई लिखते हैं कि अफ़ग़ानिस्तान-पाकिस्तान के बॉर्डर पर सर्वाधिक आतंकी कैंप मौजूद हैं। ये अफ़ग़ानिस्तान को विश्वभर में आतंक फ़ैलाने के लॉन्च पैड के रूप में प्रयोग करते हैं। ज़ाहिर है कि इन सभी गुटों को पाकिस्तान द्वारा समर्थन और आर्थिक सहायता प्राप्त है। इनमें प्रमुख रूप से तालिबान, हक़्क़ानी नेटवर्क, तहरीक़-ए-तालिबान पाकिस्तान, लश्कर-ए-तय्यबा आदि के अलावा चीन में ऑपरेट करने वाला संगठन ईस्ट तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट और जुंदल्लाह भी शामिल है। जुंदल्लाह ही वह संगठन है जिसने 2012 में जैश-अल-अदल को जन्म दिया था जो आज ईरान में आतंकी गतिविधियों के ज़िम्मेदार है।    

सवाल यह है कि इतने सालों तक अमरीकी फ़ौज की मौजूदगी होते हुए भी अफ-पाक सीमा पर से आतंकवादियों का ख़ात्मा क्यों नहीं हो सका? उप विदेश मंत्री करज़ई इसके कारण बताते हुए लिखते हैं कि इन आतंकियों को ‘स्टेट’ (अर्थात पाकिस्तान) द्वारा संरक्षण प्राप्त है। इसके अतिरिक्त ड्रग्स, ग़ैर क़ानूनी रूप से खुदाई इत्यादि से भी होने वाली कमाई भी आतंक को पोषित करती है। यही नहीं इस क्षेत्र में सऊदी अरब से काफी पैसा आता है जो ‘टेरर फाइनेंसिंग’ में मददगार है।