लद्दाख में 43 साल बंद रहा एयरस्ट्रिप, 2008 में वायुसेना ने खोला तो UPA सरकार ने पूछा- क्यों किया ऐसा?

दौलतबाग एयरस्ट्रिप को दोबारा चालू करने से पहले सरकार को भी इसकी भनक नहीं लगने दी गई थी (प्रतीकात्मक तस्वीर)

आपने दौलत बेग ओल्डी एयरस्ट्रिप का नाम सुना है? यह लद्दाख में है। चीन के साथ हालिया तनाव के बीच इसी स्ट्रिप का इस्तेमाल कर इलाके में सैनिकों की तैनाती की गई थी। सेना को लॉजिस्टिक्स सपोर्ट समय से पहुॅंचाने के लिहाज से यह बेहद महत्वपूर्ण एयरस्ट्रिप है।

लेकिन, आपको यह जानकर हैरानी होगी यह एयरस्ट्रिप 43 साल तक बंद रही थी। 2008 में वायुसेना ने इसे दोबारा शुरू किया। तत्कालीन सरकार को जानकारी दिए बिना। सरकार को तब बताया गया, जब यह काम पूरा हो गया। इसके बाद सरकार ने पूछा कि ऐसा क्यों किया? 2008 में मनमोहन सिंह की अगुवाई में केंद्र में UPA की सरकार हुआ करती थी।

https://twitter.com/ANI/status/1269627383633416193?ref_src=twsrc%5Etfw

बता दें कि लद्दाख का दौलत बाग ओल्डी (DBO) दुनिया की सबसे ऊँची एयरस्ट्रिप है। यह 16,614 फीट की ऊँचाई पर स्थित है। इसे एडवांस लैंडिंग ग्राउंड भी कहा जाता है। यह एयरस्ट्रिप 1965 से 2008 के बीच नॉन-ऑपरेशनल रहा था। 

मई 2008 में वायु सेना के तत्कालीन वाइस चीफ एयर मार्शल (retd) प्रणब कुमार बारबोरा ने इस एयरस्ट्रिप को फिर से शुरू किया। उन्होंने यहाँ पर AN-32 विमान की लैंडिंग करवाई। पीके बारबोरा उस समय पश्चिमी वायु कमांड के कमांडर इन चीफ थे। यह मिशन पूरी तरह से गुप्त था। कोई लिखित आदेश नहीं था और यहाँ तक कि तत्कालीन रक्षा मंत्री एके एंटनी को भी अँधेरे में रखा गया था। उन्हें भी मिशन पूरा होने के बाद ही पता चला था।

पीके बारबोरा ने इकोनॉमिक टाइम्स को दिए इंटरव्यू में इसका खुलासा किया कि आखिर उन्होंने ऐसा क्यों किया। जब उनसे 43 साल बाद एयरस्ट्रिप को फिर से चालू करने के बारे में पूछा गया तो उन्होंने बताया कि सबसे पहली बात कि यह दुनिया का सबसे ऊँचा लैंडिंग ग्राउंड है। दूसरा, यह काराकोरम दर्रे से कुछ ही किलोमीटर दूर है। एयरस्ट्रिप का निर्माण 1962 में चीनियों की गतिवियों की जाँच साथ ही ग्लेशियर की तरफ से पाकिस्तान से किसी भी तरह की घुसपैठ को रोकने के लिए किया गया था। लेकिन लैंडिंग ग्राउंड को 1965 में छोड़ना पड़ा। हालाँकि वहाँ सामग्री भेजने के लिए हेलिकॉप्टरों को भेजना जारी रखा गया था।

यह पूछे जाने पर कि 1965 में इस एयरस्ट्रिप को क्यों छोड़ना पड़ा, तो उन्होंने इसका जवाब देते हुए कहा कि 1962 के युद्ध के बाद, सेना के इंजीनियरों ने इस लैंडिंग ग्राउंड को बनाने में एक शानदार काम किया, लेकिन उस ऊँचाई पर किसी भी दो इंजन वाले विमान को नहीं उतारने का निर्णय लिया गया। क्योंकि टेक-ऑफ के दौरान, यदि एक इंजन विफल हो जाता है, तो सभी मारे जाते।

उस समय, Packet एकमात्र विमान था जो दौलत बेग ओल्डी के लिए उपयुक्त पाया गया था, चूँकि दो इंजन वाले विमानों में एक और छोटे इंजन को जोड़कर संशोधित किया गया था, तो व्यावहारिक रूप से यह तीन इंजनों वाला विमान था। लेकिन 1965 में Packet का लाइफ साइकल पूरा होते ही एयरस्ट्रिप का इस्तेमाल भी बंद हो गया। उन्होंने बताया कि इलाका अभी भी शत्रुतापूर्ण बना हुआ है। वहाँ ऑक्सीजन कम है, कोई वनस्पति नहीं है। चौकी तक पहुँचने के लिए कर्मियों को कई दिनों तक पैदल चलना पड़ता था।

इंटरव्यू के दौरान उनसे पूछा गया कि ऐसे में जब चीन की तरफ से लगातार धमकियाँ मिल रही हैं, तो फिर 43 साल में दौलत बेग ओल्डी को फिर से सक्रिय करने के लिए कोई प्रयास क्यों नहीं किया गया? उन्होंने इसका जवाब देते हुए कहा कि इस बीच कम से कम पाँच बार प्रयास किए गए थे।

वो कहते हैं, “जब मैंने एयरस्ट्रिप को फिर से खोलना चाहा, तो मैंने पाँच फाइलें देखीं। उन फाइलों को देखने के बाद मुझे एहसास हुआ कि अगर मैंने एक और फ़ाइल बनाई और लिखित रूप में अपना अनुरोध रखा, तो मुझे भी आने नहीं बढ़ने दिया जाएगा।। पहले की सभी फाइलें विभिन्न कारणों से ’नहीं’ के साथ बंद कर दी गईं थीं। इसलिए, मैंने बिना किसी लिखित अनुमति के दौलत बेग ओल्डी एयरस्ट्रिप को फिर से खोलने का फैसला किया।”

पीके बारबोरा आगे कहते हैं, “मैंने फैसला किया कि कोई फाइल नहीं बनने दूँगा, कुछ भी लिखित में नहीं होने दूँगा। क्योंकि यदि आप अनुमति माँगते हैं, तो सभी पुरानी फाइलें खँगाली जाएँगी आखिकार जवाब एक और ‘नहीं’ होगा। इसके बजाय, मैंने सेना में अपने समकक्षों से बात की और वायु सेना के अधिकारियों का चयन करके एयरस्ट्रिप और अन्य तैयारियों की स्थिति पर त्वरित अध्ययन किया।”

उन्होंने बताया कि इसके लिए उन्हें कुछ खास बातों का भी ध्यान रखना था। जैसे कि AN-32 को 14,000 फीट से ऊपर नहीं जाना चाहिए। इस तरह लैंडिंग से ज्यादा समस्या टेकऑफ की थी। उन्होंने अपनी सुरक्षा मानदंडों को बढ़ाने के लिए गुपचुप तरीके से विशेष प्रशिक्षण भी लिया। जैसे कि इंजन बंद हो जाए तो क्या करना होगा? बिना इंजन बंद किए टायर को बदलने की आवश्यकता पड़ी तो क्या करना होगा?

पीके बारबोरा कहते हैं, “आखिरकार वह तारीख करीब आ गई। मैंने 31 मई 2008 को वायु सेना के तत्कालीन प्रमुख (एयर चीफ मार्शल फली होमी मेजर) और दिल्ली के वायु सेना के गोल्फ कोर्स में सेना प्रमुख (जनरल दीपक कपूर) से बात की और उनकी मौखिक अनुमति ली। मैंने एयर स्टाफ के तत्कालीन उपाध्यक्ष प्रदीप नाइक को भी जानकारी दी। मगर रक्षा मंत्री (एके एंटनी) को तब ही पता चला था जब हमने मिशन पूरा कर लिया था।”

क्या हुआ था उस दिन?

पीके बारबोरा ने ET को बताया, “विमान में हम पाँच लोग थे – दो वायु सेना के पायलट, एक नेविगेटर, एक गनर और मैं। हमने चंडीगढ़ से AN -32 को उड़ाया। हम सुबह नौ बजे से पहले दौलत बेग ओल्डी पर उतरे। हमने पूरे ऑपरेशन को गुप्त रखा। मेरी पत्नी को किसी तरह भनक लग गई था, लेकिन अन्य चालक दल की पत्नी को मिशन के बारे में कुछ भी पता नहीं था।”

वो आगे कहते हैं, “हमने कुछ समय शीर्ष पर बिताया। लौटते समय सेना के एक बड़े अधिकारी हमारे साथ थे। जब हमने दौलत बेग ओल्डी से उड़ान भरी, तो यह एक ऊँचे मैदान पर ऊँट की सवारी की तरह था। लेकिन हमने विमान को सफलतापूर्वक उतार दिया। हमारे विमान की निगरानी के लिए एक अतिरिक्त विमान था। हम तुरंत दिल्ली पहुँचे। हाँ, हमने दौलत बेग ओल्डी को फिर से शुरू कर दिया था।”

अंत में वो कहते हैं, “हमने साबित किया कि हम सक्षम थे। हमने चीनियों को चौंका दिया। बाद में, 2013 में, एक चार इंजन वाला विमान C-130 हरक्यूलिस वहाँ उतरा। यह अब 2020 है, 1962 नहीं।”

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया