कई लोग मानते हैं कि 8वीं या 9वीं शताब्दी में माँ सरस्वती को जापान में बेंजाइटन के रूप में पूजा जाने लगा। लेकिन, पाँचवीं-छठी शताब्दी में लिखी गई बौद्ध पुस्तकों में बेंजाइटन का जिक्र है। उनकी प्रतिमाएँ सफ़ेद होती हैं और उनके हाथ में वीणा होता है।
आज से सवा सौ साल पहले निकोलस नोतोविच ने एक अनुभवी लामा से मुलाक़ात की। उसने प्राचीन पाली भाषा में लिखे कुछ ऐसे दस्तावेज दिखाए, जिससे निकोलस के होश उड़ गए। सिल्क रूट से हिमालय पर पहुँचे ईसा मसीह ने बौद्ध भिक्षुओं से आत्म व परमात्मा के गुर सीखे।
"मुस्लिम समुदाय सिंहलियों या बौद्धों से प्रेम नहीं करता। बौद्धों को मुस्लिमों की दुकानों का बहिष्कार करना चाहिए, विशेषतः उनके भोजनालयों से खाना न खाएँ (क्योंकि उस भोजन में नसबंदी वाले रसायन हो सकते हैं)। जो युवा लोग मुस्लिमों की दुकानों पर खा रहे हैं, ऐसा सम्भव है कि वह जैविक माता-पिता न बन पाएँ।"