ईसा के 500 वर्ष पूर्व बुद्ध एक दिन अचानक प्रोपेगंडा नगरी NDTV पहुंच गए। कमरों, गलियारों और कूचों से निकलते हुए वो रवीश जी के ऑफिस में पहुंचे और उनसे पूछा, “मैं तो ठहर गया, तुम कब ठहरोगे?” ऐसी ही एक घटना 1930 में भी हुई थी। दस दिन तक कड़ी धूप में 240 मील चलने के बाद गांधी ने दांडी में दो मुट्ठी नमक उठा कर रवीश कुमार की तरफ देखकर पूछा, “बस कर पगले रूलाएगा क्या?”
ये दोनों घटनाएं उतनी ही काल्पनिक और थिएट्रिक हैं, जितनी आज कल रवीश कुमार की पत्रकारिता हो गयी है।
2019 का बजट आया। लोग चाहते थे कि किसानों पर बात हो, किसानों पर बात हुई। लोग चाहते थे कि मिडिल क्लास पर बात हो, मिडिल क्लास पर बात हुई। लेकिन रवीश जी को इस बार किसान या मिडिल क्लास याद नहीं आया, उन्हें गंगा मैया याद आ गयी।
ये इत्तेफाक़ हो सकता है कि मीडिया में रहने के बाद भी रवीश जी को गंगा सफाई पर चल रहे कार्यक्रमों के बारे में मालूम नहीं, ये भी इत्तेफाक़ हो सकता है कि इस बार रवीश जी को याद नहीं आया कि मिडिल क्लास जैसा भी कुछ होता है, और ये भी इत्तेफाक़ हो सकता है कि रवीश जी सिनेमा में जाना चाहते थे पर उन्हें मीडिया में काम करना पड़ गया।
रवीश कुमार ने बजट पर जो ब्लॉग लिखा है, उसका एक और हिस्सा देखते हैं।
इन टिप्पणियों में जान बुझ कर की गईं दो मौलिक त्रुटियाँ मुझे बहुत परेशान कर रही हैं।
1. क्या रवीश कुमार ये चाहते हैं कि किसान और उसका परिवार सरकार के दया पर जीवित रहे? क्या रवीश कुमार ये चाहते हैं कि किसान के लिए यही पांच सौ सब कुछ हो? ये राशि किसानों के लिए सहायता (जिसे अंग्रेजी में सपोर्ट बोलते हैं) का साधन है, जिसका उपयोग वो बुरे दिनों में कर सकते हैं। ये जानते हुए भी रवीश कुमार इतिहास और भूगोल पर तंज कस रहे हैं।
2. बजट आने के पहले रवीश कुमार जैसे सोशलिस्ट ये बोल रहे थे कि अमीरों को ज्यादा टैक्स देना चाहिए और गरीबों को कम। बजट आने के बाद वो ये पूछ रहे हैं कि पाँच लाख से ज्यादा कमाने वालों का टैक्स कम क्यों नहीं हुआ। मिडिल क्लास वाले 3 करोड़ लोग, जो कुछ अधिक पैसा बचा पाएँगे, उन्हें रवीश जी छुट्टी मनाने और होली खेलने की नसीहत भी दे रहे हैं। अरे भाई, इसमें इतना जलने वाली क्या बात हो गयी?
कभी कभी रवीश कुमार को देखकर लगता है कि मीठी-मीठी बातें करने वाला आदमी इतनी ज्यादा नेगेटिविटी कैसे ले आता है।
रवीश कुमार हिंदी के दिग्गज पत्रकार हैं। हिंदी लिखने और पढ़ने वाले कई दर्शक उनके प्रशंसक हैं। इनमें वो लोग भी आते हैं, जिन्हे हिंदी में बजट सुनने में परेशानी है। रवीश कुमार चाहते तो किसानों को ये बता सकते थे कि नया बजट उनके लिए कैसे सहायक हो सकता है, लेकिन उन्होंने इसकी जगह उन्हें बेबस और लाचार बताना उचित समझा। पांच सौ रुपए बहुत तो नहीं होते, लेकिन जो किसान दस-दस रुपए के लिए परेशान होता था वो उसकी महत्ता NDTV के AC ऑफिस में बैठे रवीश कुमार से ज्यादा समझ सकता है।
रवीश जी से आग्रह है कि गंगा सफाई पर चल रहे कार्यक्रमों पर थोड़ी जाँच पड़ताल कर लें ताकि होली के दिन उन्हें दिवाली के बारे में बात करने की जरूरत ना पड़े| एक महान अर्थशास्त्री ने कहा था, “पैसे पेड़ पर नहीं उगते।” रवीश जी से ये भी आग्रह है कि मुफ्त में पैसे बाँटने वाली राजनीति से बाहर निकलें।